गीता का हर श्लोक विकारों को दूरकर जीवन को सुगम बनाता है। यह जीवन की हर समस्या के समाधान के लिए ज्ञान व संदेश देता है। यह मनुष्य को जीवन जीने की कला बताता है। पीछे का श्लोक आगे के श्लोक को जन्म देता है। इनके सारे श्लोक साधन और परिसाधन की क्रमबद्ध तरीके से एक श्रृंखला के रूप में हैं। बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी के लिए गीता उपयोगी है। घर हो या ऑफिस गीता सभी के जीवन को सार्थक करने वाली है। गीता सदियों तक पढ़ने लायक है।
गीता से समस्याओं का समाधान
गीता के अनुसार, जब आप एक बार परमात्मा की शरण में चले जाएंगे, तो कल्याण होगा, कभी विनाश नहीं होगा। गीता सदैव से मानव का कल्याण करने वाली थी, है और रहेगी। इसमें आज भी मानव जीवन के उतार-चढ़ाव को सुगम बनाने की पूरी क्षमता विद्यमान है। जरूरत है सद्गुरु के चरणों में लीन होकर गीता की शरण में जाने की। इसके श्लोक आज के परिपेक्ष में भी पूरे विश्व की सारी समस्याओं का समाधान करने की क्षमता से युक्त हैं। गीता के अध्ययन से प्राणी मात्र के अंदर विद्यमान अहंकार, मद, लोभ, मोह आदि सभी प्रकार के विकार दूर हो जाते हैं। समाज में व्याप्त बुराइयों का नाश अपने-आप हो जाता है। जब गीता घर-घर पढ़ी जाने लगेगी, तो संसार की सारी समस्याएं स्वत: दूर हो जाएंगी।
श्रीकृष्ण के मुख से निकला आदि धर्मग्रंथ है गीता
गीता भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकला आदि धर्मग्रंथ है। इसकी जो प्रासंगिकता आदि काल में रही है, वही वर्तमान में भी है और भविष्य में भी रहेगी। गीता में कहा गया है कि जब तक भगवान किसी को दिव्य दृष्टि नहीं देते हैं तब तक किसी को कुछ दिखाई नहीं देता है। धर्म के पूजनीय सब हैं, लेकिन धर्म को कोई नहीं जानता। धर्म के बारे में उन्हें कुछ भी ज्ञान नहीं है। वे सभी अपने-अपने लाभ के लिए जरूरत के मुताबिक इसे मोड़ने का प्रयास करते हैं। जबकि गीता समाज में किसी प्रकार का भेदभाव पैदा नहीं करती। इसके अनुसार, किसी की जाति उसके जन्म से नहीं, बल्कि उसके कर्मो से जानी जाती है। आज आवश्यकता है गांव-गांव में गीता का पाठ कराए जाने की। गीता के होते हुए कोई संप्रदाय गठित नहीं हो सकता और न ही कोई मजहब की बात हो सकती है। पूरे विश्व में सबसे ज्यादा टीकाएं गीता पर हुई हैं। सबसे अधिक संदेश भी गीता पर आए हैं।
भय से मुक्ति
गीता का ज्ञान जन्म-मृत्यु के भय से मुक्ति दिलाने वाला है। धर्म कभी बदलता नहीं, इस दर्शन को केवल तत्वदर्शी ही जानता है। ब्रह्मदर्शन की स्थिति जिसमें आ जाए वही ब्राह्मण है। ब्राह्मण जन्म से नहीं कर्म से होता है, यह गीता बताती है। गीता ही भारत को पुन: विश्वगुरु के रूप में प्रतिस्थापित कर सकती है। गीता में मनुष्य मात्र की सारी शंकाओं का समाधान समाहित है। भजन किसका करें, कैसे करें, साधना किस प्रकार करें आदि संपूर्ण शंकाओं का समाधान आपको गीता में मिल जाएगा। गीता संपूर्ण समाज का कल्याण करने वाली है। इसी से समाज में भेदभाव दूर कर एक थाली में खाने की शक्ति मिलेगी, लोगों को कंधे से कंधा मिलाकर चलने का बल मिलेगा।
जीवन का संदेश
जीवन के उतार-चढ़ाव को सुगम बनाने के लिए गीता में कहा गया है- अपि चेदसि पापेभस्थर सर्वेभ्य: पापकृत्तम:। सर्वं ज्ञानप्लवेनैव, वृजिनं सन्तरिष्यसि।। (गीता, 4/36) यदि तू सब पापियों से भी अधिक पाप करने वाला है, तब भी ज्ञान रूपी नौका द्वारा सभी पापों से नि:संदेह भली प्रकार तर जाएगा। इस पर गीता 4/37 में कहा गया है कि यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्, भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन। ज्ञानाग्नि: सर्वकर्माणि, भस्मसात्कुरुते तथा।। अर्जुन ! जिस प्रकार प्रज्वलित अग्नि ईंधन को भस्म कर देती है, ठीक उसी प्रकार ज्ञान (साक्षात्कार) रूपी अग्नि संपूर्ण कुकमरें को भस्म कर देती है। इससे मनुष्य के जीवन के उतार-चढ़ाव की स्थिति का समाधान हो जाता है।
घर हो या ऑफिस या फिर गृहस्थ जीवन में गीता के अलग-अलग श्लोक हमारी मदद करते हैं। चतुर्विधा भजन्ते मां, जना: सुकृतिनोऽर्जुन। आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी, ज्ञानी च भरतर्षभ।। (गीता, 7/16) हे भरत श्रेष्ठ अर्जुन ! नियत कर्म करने वाले अर्थार्थी (सकाम), आर्त: (दुख से छूटने की इच्छा वाले), जिज्ञासु: (प्रत्यक्ष रूप से जानने की इच्छा वाले) और ज्ञानी (जो प्रवेश की स्थिति में है) ये चार प्रकार के भक्त जन मुझे भजते हैं।
गीता के श्लोक 7/17 में कहा गया है- तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त, एकभक्तिर्विशिष्यते। प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थं, अहं स च मम प्रिय:।। अर्जुन! उनमें भी नित्य मुझ में एकी भाव स्थित अनन्य भक्ति वाला ज्ञानी विशिष्ट है, क्योंकि साक्षात्कार सहित जानने वाले ज्ञानी को मैं अत्यंत प्रिय हूं और वह ज्ञानी भी मुझे अत्यंत प्रिय है। (वह ज्ञानी मेरा ही स्वरूप है।) अर्थात एक ही साधक के ये चार स्तर और चार प्रकार के भक्त हैं, जैसी साधक की नीची-ऊंची साधना की अवस्था है वैसे ही हर स्थिति की साधना को गीता के अलग-अलग श्लोक साधना की स्थिति को बताते हैं।
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