इसकी पहली वजह तो यह है कि विंबलडन की ज़्यादातर टिकट जनवरी से शुरू होने वाली लॉटरी के ज़रिए मिलते हैं.
जिन लोगों को लॉटरी से टिकट नहीं मिला, उन्हें हर दिन मैच से पहले टिकट पाने के लिए लंबी क़तारों में घंटों खड़ा होना पड़ता है.
इस तरह हर दिन 10,000 से 15,000 तक लोगों को विंबलडन का टिकट मिलता है.
वहीं हर दिन 500 टिकट ऐतिहासिक सेंटर कोर्ट के बेचे जाते हैं जहां 'पहले आओ-पहले पाओ' के आधार पर टिकट मिलता है.
लेकिन इसके लिए आपको क़तार में बहुत आगे लगना ज़रूरी है, तभी टिकट मिल पाता है.
क़तार और क़िस्मत
टिकट की आस लिए दर्शक मुक़ाबले से एक दिन पहले रात में ही विंबलडन पार्क पहुंच जाते हैं.
लेकिन सेंटर कोर्ट का टिकट तभी मिल पाएगा, जब आप कम से कम दो रात पहले क़तार में खड़े हो जाएं.
सेंटर कोर्ट और कोर्ट नंबर एक का टिकट पाना मुश्किल है. बाक़ी 19 कोर्ट में टिकट मिलना आसान है.
यहां आप आराम से टहल सकते हैं और खिलाड़ियों को निहार सकते हैं. लेकिन अफ़सोस कि चोटी के खिलाड़ी इन कोर्ट पर शायद ही कभी खेलते हैं.
यहां मेरी मुलाक़ात पेड्रो से हुई जो पुर्तगाल से आए हैं. वह अपने परिवार के छह सदस्यों के साथ तीन तम्बू और खाने-पीने का ढेर सारा सामान लेकर आए हैं. पेड्रो को उम्मीद है कि उन्हें सेंटर कोर्ट का टिकट मिल जाएगा.
इसी तरह बर्मिंघम से आए स्टेफ़नी और मेरिएता को पहली सुबह टिकट नहीं मिला और अब वो क़तार में बढ़ते-बढ़ते आगे पहुंच गए हैं, तो भरोसा मिला है कि अगले दिन टिकट मिलना पक्का है.
दिल्ली से आए आदित्य अभी तक टिकट के लिए जूझ रहे हैं. क़तार लंबी है और आदित्य मेरी नज़रों से ओझल हो गए हैं. वरना मैं उनसे कहता-लगे रहो, आज नहीं तो कल टिकट मिल जाएगा.
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