तीन राज्यों से रिश्ता
क्या आप जानते हैं कि पूरे देश में अपनी पहचान बनाने वाले इस राजनेता के जीवन का सफर विशेष रूप तीन राज्यों में गुजरा है। कर्नाटक जहां बंगलुरू में इन्होंने जीवन की शुरुआत की, महाराष्ट्र जहां मुंबई में एक आग उगलने वाले मजदूर नेता के रूप में उनकी पहचान बनी और बिहार जहां उन्होंने सत्ता की राजनीति में कामयाबी हासिल की।
कई रंग थे जॉर्ज के
फ़र्नान्डिस का व्यक्तित्व बहुआयामी था। वे एक जबरदस्त ट्रेड यूनियनिस्ट, र्निभीक पत्रकार और राजनीतिज्ञ थे।
प्रीस्ट थे फ़र्नान्डिस
बहुत कम लोग जानते हैं कि राजनीति के मैदान में उतरने से पहले उन्होंने प्रीस्ट बनने का बकायदा प्रशिक्षण लिया था। परंतु बाद में उन्हें चर्च की व्यवस्था में बहुत गड़बड़ियां दिखीं और उसे छोड़ कर मुंबई चले आये।
फुटपाथ पर गुजारा समय
मुंबई आने के बाद के दौर का जिक्र करते हुए खुद फ़र्नान्डिस ने एक बार बताया था कि जब तक उन्हें काम नहीं मिला था, वे मुंबई मे चौपाटी में वो फुटपाथ पर सोया करते थे। जहां कई बार पुलिसवाला आकर उन्हें उठा कर वहां से जाने को कहता था।
तीन मंत्रालयों का दायित्व
वे अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने पर उनके मंत्री मंडल में रक्षा मंत्री थे और एक मात्र क्रिश्चियन थे। फ़र्नान्डिस ने विभिन्न सरकारों के नेतृत्व में तीन मंत्रालय का दायित्व संभाला उद्योग मंत्रालय, रेल मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय। वे बिहार से राज्य सभा के सदस्य रहे और जनता दल के महत्वपूर्ण सदस्य भी थे। फ़र्नान्डिस समता पार्टी के संस्थापक भी थे।
आपातकाल में गिरफ्तारी
इंदरा गांधी के शासन काल में वे आपातकाल का विरोध करने पर गिरफ्तारी से बचने के लिए भूमिगत हो गये थे। हालाकि बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर मशहूर बड़ौदा डाइनामाइट केस में मुकदमा चला और सजा दी गयी।
कई बंद और हड़तालों के प्रणेता
फ़र्नान्डिस ऑल इंडिया रेलवेमैन फेडरेशन के प्रेसिडेंट भी रहे और उनके नेतृत्व में ही भारतीय रेलवे की 1974 में सबसे बड़ी हड़ताल हुई। उनके कार्यकाल में ही कारगिल युद्ध हुआ जिसके बाद उन्होंने पोखरन न्यूक्लियर परीक्षण करवाया। फ़र्नान्डिस का नाम बराक मिसाइल स्कैंडल और तहलका विवाद जैसी कई कंट्रोवर्सीज से भी जुड़ा।
हवा में मिला प्यार
एक हवाई यात्रा के दौरान फ़र्नान्डिस ने विभिन्न सरकारों के नेतृत्व में तीन मंत्रालय का दायित्व संभाला उद्योग मंत्रालय, रेल मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय। की मुलाकात अपनी पत्नी लैला कबीर से हुई जो पूर्व केंद्रीय मंत्री हुमायुं कबीर की बेटी थीं। दोनों ने कुछ वक्त एक दूसरे को डेट किया और फिर शादी कर ली। उनका एक बेटा सीन फ़र्नान्डिस ने विभिन्न सरकारों के नेतृत्व में तीन मंत्रालय का दायित्व संभाला उद्योग मंत्रालय, रेल मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय। भी है जो न्यूयॉर्क में इंवेस्टमेंट बैंकर है।
पति पत्नी और वो
1980 के बीच में एक दौर ऐसा अया जब कहा जाता है की राजनीतिज्ञ और सोशल वर्कर जया जेटली से नजदीकियां बढ़ने के कारण लैला उन्हें छोड़ कर चली गयीं।
ऐसे मिला नाम जॉर्ज
3 जून 1930 को जन्में फ़र्नान्डिस की मां किंग जॉर्ज फिफ्थ की बहुत बड़ी प्रशंक थीं और उनका जन्मदिन भी तीन जून था, इसीलिए उन्होंने अपने छह बच्चों में सबसे बड़े बेट का नाम जॉर्ज रखा।
भाषाविद जॉर्ज
जॉर्ज 10 भाषाओं के ज्ञाता हैं हिंदी, इंग्लिश कोंकनी, तुलु, कन्नड़, मराठी, तमिल, उर्दू, मलयाली और लैटिन।
एकाकी जीवन
इन दिनों जॉर्ज एक बार फिर अपनी पत्नी लैला के साथ हरद्वार के बाबा रामदेव के पंतजलि आश्रम में इलाज करवा रहे हैं। लैला उनकी बीमारी के बाद 2010 में उनके पास लौट आयी थीं। फ़र्नान्डिस को अलझाइमर और पर्किंसन जैसी बीमारियों से ग्रस्त बताया जा रहा है।
विवाद
पारिवारिक विवाद के चलते जॉर्ज के भाइयों ने उन पर अपना हक जताया था पर अदालत ने आदेश दिया है कि वे लैला और सीन के साथ ही रहेंगे। हां उनके भाई जॉर्ज को देखने जा सकते हैं। कुछ अर्सा पहले अदालत ने जया जेटली को भी उनसे मिलने की आज्ञा दे दी है। जया ने जॉर्ज की पत्नी के विरोध करने के बाद अदालत की मददद मांगी थी।
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