गौरीतपो व्रत मार्गशीर्ष की अमावस्या से आरंभ किया जाता है, जो इस वर्ष 6 दिसम्बर को पड़ रहा है। यह व्रत केवल स्त्रियों के लिए है। यह व्रत करने से उनकी अभीष्ट सिद्ध होती है।
व्रत और पूजा विधि
उस दिन प्रातः स्नान करके हाथ में गन्ध, अक्षत, पुष्प, दूर्वा और जल लेकर
'ईशार्द्धाङ्गहरे देवि करिष्येSहं व्रतं तव।
पतिपुत्रसुखावाप्तिं देहि देवि नमोस्तु ते।' से संकल्प करके मध्याह्न मे सूर्य नारायण को अर्घ्य देकर
' अहं देवि व्रतमिदं कर्तुमिच्छामि शाश्वतम्।
तवाज्ञया महादेवि निर्विघ्नं कुरु तत्र वै।'
से प्रार्थना करें।
इसके बाद अपने निवास स्थान मे जाकर गौरी का पूजन और उपवास करें। पूजन में आवाहनादि षोडशोपचार से पूजन कर गौरी के दक्षिण भाग मे गणेश जी का और वाम भाग मे कार्तिकेय जी का पूजन करें।
आठ बत्ती वाला दीपक जलाएं
तत्पश्चात तांबे अथवा मिट्टी के दीपक को गौ के घी से पूर्ण करके उसमें आठ बत्ती जलाएं और रात्रि भर प्रज्वलित रखें। फिर ब्रह्म मुहूर्त में स्नानादि करने के अनन्तर द्विज दम्पती का पूजन करके तीन धातुओं (तांबे, पीतल और शीशे) के बने हुए पात्र में गुड़ पक्वान्न( हलुआ,पूरी-पुआ), तिल तण्डुल और सौभाग्य द्रव्य रखकर उन पर उपर्युक्त दीपक रखें।
पक्षियों को दे पकवान
जब तक कौए आदि पक्षीगण अपना कलरव करते हुए उसको ग्रहण न करें, तबतक वहीं बैठे रहें। यदि वहां से उठ जाते हैं तो उससे सौभाग्य की हानि होती।
इस प्रकार वर्ष में अमावस्या से, दूसरे प्रतिपदा से और तीसरे में द्वितीया से इस क्रम से चौथे, पांचवे आदि वर्षों में तृतीया, चतुर्थी आदि तिथियों को व्रत करके सोलहवें वर्ष के मार्गशीर्ष पूर्णिमा को आठ द्विज दम्पती बुलवाकर मध्याह्न के समय अक्षतों के अष्टदल कमल पर( सुपूजित गौरी के समीप) सोम और शिव का पूजन करें।
आठ पदार्थों का भोग
नैवेद्य में सुहाली, कसार, पुआ, पूरी, खीर, घी, शर्करा और मोदक-इन आठ पदार्थों का भोग लगाएं। फिर इन्ही आठ पदार्थों से आठ कटोरदान (ढक्कनदार भोजनपात्र) भरकर उपुर्युक्त आठ दम्पती (जोड़ा-जोड़ी) को भोजन करवाकर वस्त्रालंकारादि से भूषित कर एक एक करके आठों कटोरदान दान करें।
व्रत का लाभ
यह व्रत स्त्रियों के करने का है- इससे सभी स्त्रियों को पुत्रादि की प्राप्ति हो सकती है और उनके अभीष्टसिद्ध हो सकते हैं।
— ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र, शोध छात्र, ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
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