राज्यसभा सांसद  स्मृति ईरानी को पहली बार मंत्री बनाया गया है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें एक बेहद अहम मंत्रालय की ज़िम्मेदारी दी है.

वैसे 2004 में स्मृति ईरानी ने तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी की बहुत तीखी आलोचना की थी. उन्होंने गुजरात दंगों के लिए मोदी से इस्तीफ़े तक की मांग कर डाली थी और कहा था कि वह इसके लिए भूख हड़ताल करेंगी.

हालांकि वह अनशन पर बैठी नहीं. उससे पहले ही उन्होंने एक बयान जारी कर कहा, “मैंने गुजरात के बारे में जो बयान दिया था, मैं उसे वापस लेती हूं, मुझे लगता है कि पार्टी की एक ज़िम्मेदार सदस्य होने के नाते मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था.”

साल 2004 की खटास समय के साथ मिठास में बदली और एक दशक बाद साल 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान स्मृति ईरानी ज़ोर-शोर से नरेंद्र मोदी की बड़ाई करती दिखीं.

अमेठी में अपनी चुनावी सभा में उन्होंने कहा, “गुजरात दंगों के बाद मैंने मोदी जी की आलोचना की, उसके बावजूद उन्होंने मुझे यहां से लड़ने के लिए टिकट दिया, ये उनका बड़प्पन दिखाता है.”

हालांकि हाल में बीबीसी से हुई बातचीत में स्मृति ईरानी ने साफ़ कहा था कि उन पर मोदी की आलोचना करने के आरोप लगाना ग़लत है.

बारहवीं पास

स्मृति ईरानी: कभी मांगा था मोदी का इस्तीफ़ा और आज...

मानव संसाधन विकास मंत्री के तौर पर शिक्षा और शिक्षण संस्थानों से जुड़े कई नीतिगत फ़ैसले अब स्मृति ईरानी का कार्यक्षेत्र होंगे.

चुनाव आयोग को जमा किए अपने नामांकन पत्र में स्मृति ईरानी ने लिखा है कि वह बारहवीं पास हैं और उसके बाद उन्होंने 'स्कूल ऑफ़ ओपन लर्निंग' से कॉमर्स की एक साल की पढ़ाई पूरी की है.

एनसीईआरटी के निदेशक रहे डॉक्टर जे एस राजपूत स्मृति की अधूरी पढ़ाई को बतौर मंत्री उनके काम में बाधा नहीं मानते.

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, “मंत्रालय तो विषयों की जानकारी रखने वाले कई एक्सपर्ट्स की मदद से चलता है, वह युवा हैं और इस वजह से वह स्कूल-कॉलेज जाने वाले छात्रों से ज़्यादा जुड़ पाएंगी और क्या मालूम ये उनके काम को आगे ले जाने में ज़्यादा मदद करे.”

1998 से 2004 के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्रालय मुरली मनोहर जोशी के ज़िम्मे था. उस दौर में इतिहास की स्कूली किताबों में दिए गए तथ्यों में फेरबदल किया गया जिससे काफ़ी विवाद हुआ.

उस दौर में इस नीति की आलोचना करने वाली इतिहासकार रोमिला थापर ने बीबीसी में बातचीत में कहा, “मैं स्मृति ईरानी को बिल्कुल नहीं जानती, शिक्षा में उनका कोई काम नहीं है, पर पार्टी की विचारधारा तो हिन्दुत्व से ही जुड़ी है, अब आने वाला समय ही बताएगा कि स्कूली किताबों में बदलाव के कदम फिर से उठाए जाएंगे या नहीं.”

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स्टार प्लस के कार्यक्रम, 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी', में स्मृति ईरानी ने मुख्य भूमिका निभाई थी.

‘वेटर’ से ‘एक्टर’

एक साल तक कॉलेज की पढ़ाई करने के बाद 1994 में स्मृति ईरानी ने अभिनय की दुनिया की ओर रुख़ किया. दिल्ली में पलीं बढ़ीं स्मृति मुंबई में मॉडलिंग करने निकल पड़ीं.

अपने पिता से दो लाख रुपए उधार लिए और ‘मिस इंडिया’ सौंदर्य प्रतियोगिता में नाम लिखवाया. वो जीती तो नहीं, पर आखिरी पांच में जगह बनाने में कामयाब रहीं.

पर पिता को पैसे लौटाने थे, तो कमाने का ज़रिया ढूंढना ज़रूरी था. उन्होंने मैकडोनाल्ड में नौकरी की, जहां वह लोगों को बर्गर देने के अलावा टेबल पोंछने और फ़र्श साफ़ करने तक का काम करती थीं.

इस दौरान वह विज्ञापनों के लिए छोटे-मोटे मॉडलिंग के शूट भी करती रहीं. और आख़िरकार उन्हें एकता कपूर के सीरियल 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' में मुख्य भूमिका में काम करने का मौक़ा मिला.

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स्मृति ईरानी अमेठी में कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी के ख़िलाफ़ चुनाव हार गईं.

राजनीति

सीरियल की कामयाबी ने स्मृति को आम लोगों के बीच पहचान दी. समय के साथ उन्होंने अभिनय के अलावा लेखन में भी क़दम रखा और फिर कई टीवी धारावाहिकों में निर्माता की भूमिका निभाई.

साल 2003 में स्मृति ईरानी भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुईं और उसके अगले ही साल पार्टी ने उन्हें 2004 के आम चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता कपिल सिब्बल के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए दिल्ली की चांदनी चौक सीट से टिकट भी दिया.

स्मृति ईरानी हार गईं और उसके बाद उन्होंने गुजरात दंगों के बाद पार्टी की छवि ख़राब होने का आरोप लगाते हुए गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की.

आज माहौल दूसरा है, और स्मृति ईरानी को नरेंद्र मोदी के ख़ास लोगों में से एक माना जाता है. इस दौरान उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभाला है और राज्यसभा में भारतीय जनता पार्टी की सांसद हैं.

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