1. दुष्कर्म पीड़िता को मिली गर्भपात की इजाजत :
सुप्रीम कोर्ट का यह काफी साहसिक फैसला था। गर्भवती महिला को गर्भधारण के 24 हफ्ते बाद अबॉर्शन कराने की इजाजत दी। आमतौर पर कोई भी महिला अपने 20 हफ्ते के भ्रूण का ही गर्भपात करा सकती है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाली इस महिला ने कहा था कि उसका बच्चा विकृत है। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया था। इस मेडिकल बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी थी कि भ्रूण की वजह से मां की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है। इसी को आधार मानते हुए कोर्ट ने अबॉर्शन की इजाजत दी है।
2. सिनेमा हॉल में बजेगा राष्ट्रगान :
राष्ट्रगान को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया। जिसके चलते सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स में अब फिल्मों को दिखाने से पहले राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य होगा। इसके अलावा राष्ट्रगान बजाने के दौरान परदे पर तिरंगा भी दिखाना जरूरी होगा और राष्ट्रगान को सम्मान देने के लिए दर्शकों को अपनी जगह पर खडा भी होना पडेगा। इसके साथ ही कोर्ट ने राष्ट्रगान को फायदे के लिए इस्तेमाल ना करने का भी निर्देश दिया है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक और आदेश में दिव्यांग को इस फैसले से बाहर रखा है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि दिव्यांग को सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजने पर खडे होने की जरूरत नहीं है।
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3. नाबालिगों पर भी चलेगा घरेलू हिंसा का केस :
अक्टूबर में सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में 'वयस्क पुरुष' शब्द को हटाकर घरेलू हिंसा कानून का दायरा बढा दिया। अब किसी महिला के साथ हिंसा या उत्पीडन के मामले में महिलाओं तथा नाबालिगों पर भी मुकद्दमा चलाया जा सकेगा। जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस आर.एफ. नरीमन की बेंच ने घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा के कानून 2005 की धारा 2 (क्यू) से दो शब्दों को हटाने का आदेश दिया, जो उन प्रतिवादियों से संबंधित है जिन पर ससुराल में किसी महिला को प्रताडित करने के लिए केस चलाया जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय का यह बड़ा फैसला बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक अपील पर आया। उच्च न्यायालय ने इस आधार पर घरेलू हिंसा के मामले से दो लडकियों, एक महिला और एक नाबालिग लडके सहित एक परिवार के चार लोगों को आरोप मुक्त कर दिया था कि वे 'वयस्क पुरुष' नहीं हैं और इसलिए उन पर घरेलू हिंसा कानून के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
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4. पति को मां-बाप से अलग किया तो तलाक :
तलाक के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि पत्नी अपने ही पति को मां-बाप और परिजनों से अलग करने को मजबूर करें तो वह तलाक ले सकता है। ऐसा अपराध क्रूरता की श्रेणी में आता है। सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए यह बडा आदेश दिया। पहले कर्नाटक उच्च न्यायालय ने निचली कोर्ट का फैसला पलटते हुए कहा था कि पत्नी की ख्वाहिश सही है। वह पति की कमाई परिजनों पर खर्च करने के बजाय खुद इस्तेमाल करना चाहती है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा, 'पत्नी द्वारा पति के खिलाफ झूठे आरोप, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर, आत्महत्या करने की धमकी देना भी 'मानसिक क्रूरता' है। यह भी तलाक का आधार हो सकता है।' कोर्ट का यह फैसला नरेंद्र बनाम कुमारी मीरा के मामले में आया है। इसमें पति ने कोर्ट से अपनी 24 साल की शादी को रद्द करने की अनुमति मांगी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ट्रायल कोर्ट का सोचना सही था कि पत्नी का बार-बार सुसाइड की कोशिश करना क्रूरता है।
5. राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे नहीं होगी शराब की बिक्री :
राष्ट्रीय राजमार्गों और राज्य राजमार्गों से 500 मीटर तक अब शराब की दुकानें नहीं होंगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर शराब की बिक्री नहीं होगी। अदालत ने इस फैसले में साफ कर दिया है कि जिनके पास लाइसेंस हैं वो खत्म होने तक या 31 मार्च 2017 तक जो पहले हो, तक इस तरह की दुकानें चला सकेंगे। एक अप्रैल 2017 से हाईवे पर इस तरह की दुकानें नहीं होंगी। शराब की दुकानों के लाइसेंसों का नवीनीकरण नहीं होगा। नए लाइसेंस जारी नहीं होंगे। सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में यह फैसला लागू होगा। इसके साथ ही राजमार्गों के किनारे लगे शराब के सारे विज्ञापन और साइन बोर्ड हटाए जाएंगे।
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