सावन मास भगवान शिव के लिए प्रिय माना जाता है। इस महीने में लोग सोमवार को व्रत करके और भोले को जल चढ़ाकर के उनकी विशेष कृपा प्राप्त करते हैं। इस माह में भगवान शिव मात्र जल चढ़ाने से ही प्रसन्न हो जाते हैं।
आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य पंडित श्रीपति त्रिपाठी से सावन माह में शिवलिंग पर जल चढ़ाने का क्या है विशेष महत्व—
1. शास्त्रों में वर्णित है कि सावन महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं, इसलिए ये समय भक्तों, साधु-संतों सभी के लिए अमूल्य होता है। यह चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ है, जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है, जिसे 'चौमासा' भी कहा जाता है; तत्पश्चात सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं, इसलिए सावन के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं।
2. पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की; लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम 'नीलकंठ महादेव' पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया, इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का खास महत्व है। यही वजह है कि सावन मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
3. भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का एक कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।
4. शिवपुराण' में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं, इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रूप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है, जिसमें कोई संशय नहीं है।
5. मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी।
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