56 वर्षीय संविधान विशेषज्ञ गोपाल सुब्रमण्यम और 58 वर्षीय आरऍफ़ नरीमन पिछले कई सालों से सुप्रीम कोर्ट में वकालत कर रहे हैं और इन दोनों को क़ानून के क्षेत्र में विशेषज्ञ के रूप में जाना जाता है.
आज़ादी के बाद से सिर्फ चार बार ही इस तरह की नियुक्तियों का उदाहरण देखने को मिला है.
इससे पहले एम सिकरी, संतोष हेगड़े, कुलदीप सिंह और एससी राय ऐसे चार वरिष्ठ अधिवक्ता रहे हैं जिन्हे सीधे जज नियुक्त किया गया था. हालांकि न्यायमूर्ति एससी राय का निधन नियुक्ति के चार महीनों के अंदर ही हो गया था.
न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े की 1999 में हुई नियुक्ति के बाद ये पहला मौक़ा है जब सुब्रमण्यम और नरीमन के नामों की सिफारिश की गयी है.
सूत्रों का कहना है कि दोनों की इस अप्रत्याशित नियुक्ति के लिए ज़रूरी औपचारिकताओं को पूरा कर लिया गया है और अब भारत सरकार को मुख्य न्यायाधीश आरएम लोधा के नेतृत्व वाले चार सदस्या 'कोलेजियम' की इस सिफारिश पर मुहर लगानी है.
लेकिन अभी ये तय नहीं हो पाया है की मौजूदा सरकार इस पर मुहर लगाएगी या इस मामले को आने वाली अगली सरकार के लिए छोड़ देगी.
सिफ़ारिश का स्वागत
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने इस अप्रत्याशित सिफ़ारिश का स्वागत किया है और कहा है कि इस तरह की नियुक्तियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.
गोपाल सुब्रमण्यम ने 1980 से वकालत शुरू की थी और वर्ष 2005 में उन्हें 'सॉलिसिटर जनरल' नियुक्त किया गया. वो 1993 में हुए मुंबई हमलों के मामले में सीबीआई के वकील भी रह चुके हैं. साल 2011 में वो बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष नियुक्त किए गए.
वहीं आरएफ़ नरीमन सबसे काम उम्र में ही सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता नियुक्त किये गए थे.
उल्लेखनीय है कि दोनों, यानी गोपाल सुब्रमण्यम और आरऍफ़ नरीमन, को 1993 में ही सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एमएन वेंकटचिलैया ने नियमों में संशोधन कर वरीय अधिवक्ता के रूप में मान्यता दी थी.
मगर 2011 में सुब्रमण्यम ने सॉलिसिटर जनरल के पद से इसलिए इस्तीफ़ा दे दिया था क्योंकि सरकार ने दूरसंचार विभाग से जुड़े एक मामले में नरीमन को अपना अधिवक्ता नियुक्त किया था.
इन दोनों वरिष्ठ अधिवक्ताओं के अलावा कोलेजियम ने ओडिशा और कोलकाता उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्रा और आदर्श गोयल की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति की भी सिफारिश की है.
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