इस आशंका के बीच कुछ उन मारक हथियारों का जायज़ा, जिनका इस्तेमाल हमले की स्थिति में दोनों पक्षों की तरफ़ से हो सकता है.
अमरीकी सेना
टॉम हॉक क्रूज़ मिसाइल
(टॉम हॉक क्रूज़ मिसाइल 1983 से इस्तेमाल हो रही है.)
ये मिसाइल जहाज या पनडुब्बी से प्रक्षेपित की जा सकती है. व्यावसायिक विमान कंपनी के विमानों की तरह ही ये मिसाइल छोटे टर्बोफ़ैन इंजन से लैस होती हैं, जिनका इस्तेमाल वे अपने लक्ष्य पर निशाना साधने के लिए करती हैं.
यह मिसाइल कम ऊंचाई पर भी उड़ान भर सकती हैं और इनका पता लगाना बेहद मुश्किल काम है. टॉमहॉक से थोड़ी गर्मी निकलती है ऐसे में इंफ्रारेड खोज के ज़रिए इस मिसाइल का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता.
ये 1,000 मील की दूरी तक हमला करने की क्षमता रखती हैं और 550 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से उड़ान भर सकती हैं. यह 450-1,360 किलोग्राम वज़न के रॉकेट ले जाने में सक्षम है.
आर्ली बर्क के नौसैनिक जहाज
(यूएसएस ग्रेवली का इस्तेमाल क्रूज़ मिसाइलें छोड़ने के लिए किया जा सकता है.)
अमरीका के पूर्वी भूमध्य सागर में आर्ली बर्क क्लास के चार लड़ाकू जहाज़ मौजूद हैं. ये नौसैनिक जहाज़ 154 मीटर लंबे हैं और ये क्रूज़ मिसाइलें ढो सकते हैं.
ये अमरीका के भारी हथियारों से लैस बड़े जंगी जहाज़ों में हैं.
यह अमेरिका का पहला ऐसा युद्धपोत था जिसमें एयर फ़िल्टरेशन सिस्टम डिज़ाइन किया गया ताकि इस पर परमाणु, जैविक और रासायनिक हमले का असर न हो.
विमानवाहक जहाज
इस क्षेत्र में अमरीका के पास यूएसएस हैरी एस ट्रूमैन और यूएसएस निमिट्ज़ दो विमानवाहक जहाज़ हैं.
परमाणु ऊर्जा से संचालित होने वाले इन दो बड़े जंगी जहाज़ों में हवाई हमले करने से भी बड़ी क्षमता है.
अगर अमरीका सीमित कार्रवाई की योजना बनाता है तो हो सकता है कि इनका इस्तेमाल न हो.
ये दुनिया के सबसे बड़े विमान वाहक जहाजों में शामिल हैं और 1,100 फीट लंबे हैं. इनमें 85 विमान रखने की क्षमता है.
एफ-16 लड़ाकू विमान
(यूएसएस निमिट्ज़ इस क्षेत्र में अमरीका के दो बड़े विमान वाहक जंगी जहाजों में से एक है.)
एफ-16 अमरीका का बेहद विश्वसनीय लड़ाकू विमान माना जाता है. ये दुनिया में बेहद प्रभावी तरीके से घात लगाकर हमला करने वाले सैन्य विमान के तौर पर मशहूर है.
ये दूसरे विमानों पर हमला करने के साथ ही ज़मीन पर भी अपने लक्ष्य पर निशाना साधने में सक्षम है.
ये लड़ाकू विमान अमरीकी वायुसेना की रीढ़ हैं. एफ-16 लड़ाकू विमानों को नियंत्रित करता है. यह अन्य लड़ाकू विमानों के मुक़ाबले लंबे समय तक युद्ध क्षेत्र में बने रह सकता है और यह 2,000 मील की सीमा तक हमला कर सकता है.
यह एक एम-61 वल्कन तोप से लैस है और इसका पायलट अच्छी तरह से अपने निशाने को देखने के लिए बिना फ़्रेम वाले एक पारदर्शी कैनोपी में बैठता है.
एफ-16 तुर्की में इंसर्लिक या इज़मिर में तैनात है या संभवतः यह जॉर्डन से भी संचालित हो रहा है. ऐसे में सीरिया के ख़िलाफ़ किसी भी संभावित हमले में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.
एफ-15 स्ट्राइक ईगल
(एफ-15 स्ट्राइक ईगल कई तरह की मारक क्षमता रखने वाला लड़ाकू विमान है.)
एफ-15 भी कई तरह की भूमिका निभाने वाला विमान है. एफ-15 लंबी दूरी और तेज़ गति से ज़मीनी हमले करने के लिए बनाया गया था.
इसके दो इंजन मिलकर ताक़त लगाते हैं, जिससे सीधे ऊपर की ओर जाते हुए भी इसकी गति तेज़ हो जाती है.
एफ़-15 ई स्ट्राइक ईगल 'लैंटर्न' नेविगेशन और लक्ष्य साधने वाले तंत्र से लैस है, जिसके ज़रिए इंफ्रारेड या लेज़र निर्देशित बमों का इस्तेमाल कर सटीक तरीक़े से हमला करने की क्षमता में सुधार किया जाता है.
इसमें ज़मीन का जायज़ा लेने वाला राडार भी है जिसे विमान के ऑटोपायलट से जोड़ा जा सकता है ताकि यह 100 फ़ीट की ऊंचाई से ज़मीन पर निगाह रख सके.
फ्रांसीसी सेना
(फ्रांस के तूलां में मौजूद चार्ल्स दि गाल)
फ्रांस अगर किसी हमले में हिस्सा लेता है तो इसके पास 300 मील तक की मारक क्षमता वाली स्कैल्प क्रूज़ मिसाइलें हैं, जिन्हें मिराज़ 2000 और रफाएल युद्धविमानों से छोड़ा जा सकता है.
भूमध्य सागर में फ्रांस का एक विमानवाहक पोत है और संयुक्त अरब अमीरात में हवाई अड्डे भी हैं.
फ़िलहाल फ्रांस के तूलां में मौजूद विमानवाहक जहाज़ चार्ल्स दि गाल परमाणु ऊर्जा से संचालित होता है और 40 लड़ाकू विमान को रखने में सक्षम है.
यह अमेरिका के निमिट्ज़ विमानवाहक जहाज से भले ही छोटा हो, लेकिन 860 फीट लंबा यह जहाज़ बेहद प्रभावशाली है.
रूस की सेना
रूस ने कहा है कि वो भूमध्य सागर में अपने दो युद्धपोत भेज रहा है जिनमें से एक मिसाइल क्रूज़र मस्कवा और एक पनडुब्बी रोधी जहाज है. रूस सीरिया का एक सहयोगी है और अमरीका के सैन्य हस्तक्षेप का विरोध कर रहा है.
ये दोनों जंगी जहाज़ इस क्षेत्र में कब आएंगे, यह स्पष्ट नहीं है. मगर रूस ने भूमध्य सागर में अपने जहाज़ों की तैनाती में बदलाव की योजना के तहत इनकी तैनाती का भी ज़िक्र किया है.
सीरिया के पास हथियार
एस-200 अंगारा विमानभेदी मिसाइल
(सोवियत संघ ने 1967 में एस-200 मिसाइल तैयार कराई थी.)
नैटो के लिए एस-200 मिसाइल का कोड नाम एसए-5 'गैमन' है. इसे सोवियत संघ ने 1960 के दशक में विमानभेदी मिसाइल के तौर पर तैयार किया था.
सेंटर फॉर स्ट्रैटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़ के मुताबिक सीरिया ने संभवतः अपनी दो हवाई रेजीमेंट में आठ एस-200 मिसाइलें तैनात की हैं.
इस मिसाइल में तरल ईंधन का इस्तेमाल होता है और यह 8 मैक तक की गति पर उड़ान भर सकती है. यह 217 किलो वज़न वाले बम से विस्फोट करने से पहले राडार के ज़रिए अपने लक्ष्य तक पहुंचती है.
रूस ने 20 साल से पहले ही एस-200 को उपयोग से बाहर करने का अभियान शुरू कर दिया था और सैन्य विश्लेषक इसे अप्रचलित मानते हैं.
विद्रोही गुटों के कुछ हवाई अड्डों और राडार साइटों पर कब्ज़ा कर लेने से इसके सफ़ल होने पर संदेह जताया जा रहा है.
एस-300 विमानभेदी मिसाइल
(एस-300 मिसाइल बेहद आधुनिक और सक्षम रक्षा तंत्र का हिस्सा है)
सीरिया ने रूस से आधुनिक और अधिक सक्षम मिसाइल एस-300 मंगाई हैं लेकिन अभी इस पर संदेह है कि वास्तव में ये मिसाइलें सीरिया को मिली हैं या नहीं और अगर मिल भी गई हैं तो ये काम कर रही हैं या नहीं.
एस-300 लंबी दूरी की मारक क्षमता रखती है और यह सतह से हवा में वार कर सकती है. इस मिसाइल को दुश्मन के विमानों और क्रूज़ मिसाइलों से सैन्य और औद्योगिक केंद्रों की रक्षा करने के लिए बनाया गया है.
इसमें एक एकीकृत राडार प्रणाली है जो एक समय में 100 लक्ष्यों पर नज़र रख सकती है. इसे दुनिया में सबसे शक्तिशाली हवाई रक्षा हथियारों में से एक माना जाता है.
पी-800 याकहोंट एंटीशिपिंग मिसाइल
(तटीय क्षेत्रों की रक्षा करने के लिए सुपरसोनिक पी-800 याकहोंट मिसाइलें डिज़ाइन की गईं.)
नैटो में एसएस-एन 26 नाम से मशहूर पी-800 याकहोंट रूस की एक परिष्कृत मिसाइल है जो पानी में चलने वाले जंगी जहाज़ों को अपना निशाना बनाती है.
इन सुपरसोनिक मिसाइलों का दायरा 300 किलोमीटर तक है और इसमें 200 किलो का एक विस्फोटक होता है.
यह 5 से15 मीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरने में सक्षम है, ऐसे में इसका पता लगाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है.
लड़ाकू विमान
(सीरियाई वायु सेना ने हाल में एल-39 ट्रेनिंग लड़ाकू विमान का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया है.)
सीरियाई वायु सेना के पास कई तरह के लड़ाकू विमान हैं, जिन्हें उसने रूस से ख़रीदा है लेकिन इनमें से कई पुराने और बेकार हो चुके हैं.
इस साल मई में इंस्टीट्यूट फॉर दि स्टडी ऑफ वॉर (आईएसडब्ल्यू) ने रिपोर्ट दी थी जिसके मुताबिक बेहद प्रभावी "मिग और एसयू विमान के लिए अतिरिक्त पुर्ज़ों की आपूर्ति, रखरखाव के साथ-साथ युद्ध अभियान सफल बनाने के लिए प्रशिक्षण की ज़रूरत बताई गई थी.
परिचालन से जुड़ी दिक्क़तें देखते हुए आईएसडब्ल्यू ने देखा कि संघर्ष की शुरुआत से ही वायुसेना ने विद्रोही ताक़तों के ख़िलाफ़ ज़मीनी हमले के लिए अधिक मजबूत लेकिन कम क्षमता वाले एल-39 ट्रेनर विमानों का ज़्यादा इस्तेमाल किया.
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