भोलानाथ शहर की एक छोटी-सी गली में रहता था। वह मेडिकल की दुकान चलाता था। पूरी दुकान वह खुद संभालता था, इसलिए कौन-सी दवा कहां रखी है, उसे अच्छी तरह पता था। सब कुछ अच्छा होने के बाद भी भोलानाथ नास्तिक था। वह पूरा दिन दुकान पर काम करता और शाम को परिवार तथा दोस्तों के साथ समय गुजारता। उसे ताश खेलने का भी काफी शौक था। जब भी टाइम मिलता, वह दोस्तों के साथ ताश खेलने बैठ जाता।
एक शाम वह दुकान पर था, तभी उसके कुछ दोस्त आए। कुछ ही देर में बारिश शुरू हो गई और बिजली भी चली गई। सबने सोचा कि मोमबत्ती की रोशनी में ताश ही खेल लेते हैं। सब ताश में मगन थे कि तभी एक लड़का दौड़ा-दौड़ा आया। उसने जेब से दवा की एक पर्ची निकाली और भोलानाथ से दवा मांगी। भोलानाथ खेल में मगन था। लड़का बोला, 'मेरी मां बहुत बीमार है। सारी दुकानें बंद हो गई हैं। एक आपकी दुकान ही खुली है। भोलानाथ आधे-अधूरे मन से उठा, पर्ची देखी और अंदाजे से दवा की एक शीशी उठाकर उसे दे दी। लड़का भागते हुए चला गया। तभी बारिश थम गई। भोलानाथ के दोस्त चले गए और वह भी दुकान बंद करने लगा, तभी उसे ध्यान आया कि रोशनी कम होने के कारण उसने गलती से लड़के को चूहे मारने वाली दवा की शीशी दे दी है। भोलानाथ के हाथ-पांव फूल गए। उसकी दस साल की नेकी पर मानो जैसे ग्रहण लग गया। उस लड़के के बारे में सोचकर वह वह तड़पने लगा। एक पल वह खुद को कोसने लगा। उस लड़के का पता ठिकाना भी तो वह नहीं जानता। कैसे उस बीमार मां को बचाया जाए?
भोलानाथ को कुछ सूझ नहीं रहा था। घबराहट में वह इधर-उधर देखने लगा। उसकी नजर दीवार पर टंगी श्रीकृष्ण की तस्वीर पर पड़ी, जो उसके पिता ने जिद करके लगाई थी। तब पिता ने कहा था, 'भगवान की भक्ति में बड़ी शक्ति होती है। उसने आंखें बंदकर हाथ जोड़े। थोड़ी देर बाद वह छोटा लड़का फिर दुकान में आया। उसने कहा, 'बाबूजी, बारिश की वजह से पानी भरा था और मैं फिसल गया। दवाई की शीशी गिर कर टूट गई। क्या आप मुझे दूसरी शीशी दे सकते हैं? भोलानाथ ने राहत की सांस लेते हुए सही दवाई लड़के को दे दी। अब उसे भगवान पर विश्वास हो गया था।
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