सोच को सामने लाने का प्रयास
यहां सबकी लगी है खासकर आजकल के युवाओं में हिंदी-अंग्रेजी बोलने के चलन को केन्द्रित कर फिल्म बनाई गई है. फिल्म की कहानी कहानी मजबूत और दमदार एक्िटंग वाली मानी जा रही है. जिससे साफ कि फिल्म में सामाजिक और आर्थिक मुद्दे के साथ ही भावनात्मक पहलुओं को भी उभारा गया है. इसमें समाज में होने वाले पल के बदलाव और अपने स्वार्थों को लेकर इंसान की सोच को सामने लाने का प्रयास हुआ है. निर्देशक साताविशा बोस ने फिल्म को आज के दौर को बिल्कुल पर्दे पर उतार दिया है. यहां सबकी लगी है. ऑडियंस को सोचने की नई दिशा प्रदान करेगी. फिल्म वर्तमान समय और परिस्थितियों पर गंभीरता से विचार करने के लिए मजबूर करती है.
मल्टीलिंगवल फिल्म भी कह सकते
इस फिल्म में दर्शकों को कॉमेडी का तउ़का भी जबर्दस्त मिलेगा. कई ऐसे सीन है ऐसे हैं जो दर्शकों को छू सा जायेंगे. कुछ पलों तक उन्हें ऐसा लगेगा कि मानों वह खुद की कहानी पर्दे पर देख रहे हैं. इसके अलावा इस फिल्म में कई भाषाओं की मदद से डॉयलागों को काफी खूबसूरती से पेश किया गया है. जिससे यहां सबकी लगी है’ फिल्म को एक मल्टीलिंगवल फिल्म भी कह सकते हैं. इसमें जिंदगी की एक ऐसी कहानी है. जिसमें कोई पीड़ित और ठगा हुआ महसूस करता है. ये भारतीय अरबन यूथ की इंग्लिश स्पीकिंग को दिखाती है. जिससे साफ है कि पूरी तरह से मजाकिया फिल्म होने के बावजूद यह दार्शनिकता का स्पर्श लिए हुए है.
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खुद को ठगा हुआ सा महसूस करते
यह फिल्म खासकर इंग्लिश बोलने वाले शहरी युवाओं पर केंद्रित है. इसके अलावा फिल्म में दिखाया गया है कि में जिंदगी क्या क्या उतार चढ़ाव आते हैं. जिनमें किसी को लगता है कि उसके साथ धोखा हुआ है, या कोई खुद को ठगा हुआ सा महसूस करता है. साथ ही यह भी है कि किस प्रकार हम आराम से आर्थिक और सामाजिक पैमानों पर अंतर पैदा करने वाले क्लास सिस्टम में रहते हैं. हम किस तरह से अपने विश्वासों से बेवकूफ बनते रहते हैं. जब कोई हमे आसानी से बेवकूफ बना जाता है और बाद में खुद पर पछताते रहते हैं. इसके अलावा हम किस तरह से अपनी पसंद नापसंद को सही साबित करने पर तुले रहते हैं. हम अपनी इच्छाओं के पीछे भागते रहते हैं और उन्हें पूरा करने में जिंदगी बिता देते हैं. फिल्म में हमारी ख्वाहिशों और भावनाओं को भी दिखाया गया है.
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