(क) 1986 वर्ल्ड कप फाइनल :
कप्तान माराडोना और कोच कार्लोस की रणनीति
सबसे पहले 1986 की बात करते हैं. अर्जेंटीना की टीम माराडोना के चमत्कार के बल पर फाइनल तक पहुंची थी वैसे ही जैसे इस बार मेसी टीम को इस मुकाम तक लाए हैं. अगर अर्जेंटीना को फाइनल जीतना है तो कप्तान मेसी और कोच सबेला को कप्तान माराडोना और कोच कार्लोस बिलार्डो की तरह सोचना होगा. फाइनल के लिए माराडोना और बिलार्डो ने रणनीति बदल थी. माराडोना को पता था कि जर्मनी माराडोना को गोल मारने से रोकने में ही पूरी ताकत खर्च कर देगा. वैसा ही हुआ. जर्मनी ने अपने सर्वश्रेष्ठ मिडफील्डर लोथर मैथायस को पूरी तरह माराडोना को मार्क करने में लगा दिया और इसके अलावा माराडोना की क्राउडेड मार्किंग के लिए कई डिफेंडरों को माराडोना के रोमिंग जोन के नजदीक रखा.
फाइनल में मारोडोना ने गोल मारा नहीं मरवाया
नतीजा ये हुआ कि वल्डानो को फ्री स्पेस मिला और माराडोना ने खुद गोल करने के बजाए वल्डानो को अपना स्कोरर बनाया उस मैच में. माराडोना थोड़ा पीछे हटकर खेले और वल्डानो और बुरुचागा के लिए मौके बनाते रहे. अर्जेंटीना के लिए दागे तीन में से दो गोल वल्डानो और बुरुचागा के थे. विनिंग गोल भी वल्डानो का था. एक गोल ब्राउन ने मारा था. सेमीफाइनल में दो गोल दागने वाले माराडोना ने फाइनल में एक भी गोल नहीं दागा था. अर्जेंटीना की जीत की सबसे बड़ी वजह यही थी कि माराडोना ने गोल मारे नहीं मरवाए थे और ये वाकायदा प्लानिंग के तहत किया था.
मेसी बनाएं हिगुएन और अगुएरो के लिए मौके
अगर अर्जेंटीना को 2014 का फाइनल जीतना है तो मेसी पर से गोल का प्रेशर हटाना होगा. मेसी प्ले मेकर की भूमिका में हिगुएन और अगुएरो के लिए मौके बना सकते हैं. मिडफील्ड से डी मारिया को बुरुचागा की तरह यूज कर सकते हैं. अगर मेसी को उसी तरह यूज किया जाए जैसे 1986 के फाइनल में माराडोना को किया गया था जो रिजल्ट भी सेम हो सकता है. इस मैच में भी मेसी की जबरदस्ट मार्किंग होगी और उनके लिए गोल मारना आसान नहीं होगा. हालांकि मेसी माराडोना की तरह चमत्कारिक प्लेयर हैं और वो हैवी मार्किंग के बाद भी गोल मार सकते हैं पर मैच की रणनीति चमत्कार के भरोसे नहीं बनाई जाती.
(ख) 1990 वर्ल्ड कप फाइनल :
स्टार खिलाडि़यों से भरी थी जर्मनी की टीम
अब जरा 1990 के फाइनल को याद करते हैं. जर्मनी की वर्तमान टीम की तरह उस समय की टीम भी स्टार खिलाडि़यों से भरी हुई थी. 1986 की हार के दौरान माराडोना को मार्क करने के लिए लगाए गए मैथायस 1990 की टीम के कैप्टन थे. रूडी वायलर, क्लिंसमैन, ब्रेमा सब एक से बढ़कर एक खिलाड़ी थे. लेकिन अर्जेंटीना की टीम में एक बड़ा फर्क था. जिस क्लाडियो कनीजिया से गोल दगवाते हुए माराडोना टीम को फाइनल तक ले गए थे वो कैनीजिया फाइनल से बाहर था क्योंकि सेमीफाइनल में हाथ से गेंद छू जाने के कारण उसे पीला कार्ड दिखा दिया गया था. चूंकि लीग मैचों में कनीजिया एक पीला कार्ड पा चुके थे इसलिए दो येलो कार्ड के बाद उन्हें अगले मैच से बाहर होना था.
फाइनल में माराडोना से छिन गया स्कोरर
ये चोट अर्जेंटीना के लिए बहुत भारी थी क्योंकि फाइनल में माराडोना से उनका स्कोरर छिन गया. उसी के बाद से फीफा ने नियम में चेंज कर दिया और लीग मैचों का येलो कार्ड फाइनल में कैरी फॉरवर्ड नहीं होता. पर तब ऐसा नहीं था. नतीजा ये हुआ कि पूरे फाइनल में अर्जेंटीना और माराडोना का सिर्फ एक लक्ष्य था कि कैसे 90 मिनट और बाद का एक्ट्रा टाइम बिना गोल के कट जाए और पेनाल्टी शूट आउट हो. अगर पेनाल्टी शूट आउट होता तो जीत की संभावना अर्जेटीना की ज्यादा थी भले ही जर्मनी ज्यादा मजबूत टीम थी क्योंकि अर्जेंटीना का गोलकीपर सर्जियो गोइकाचेया पेनाल्टी स्पेशलिस्ट था जो कि यूगोस्लाविया और इटली के खिलाफ पेनाल्टी शूट आउट जिता चुका था.
और जर्मनी ने ले लिया 1986 का बदला
इटली से सेमीफाइनल पेनाल्टी शूट आउट में ही जाता था अर्जेंटीना जब गोइकाचेया ने दिग्गज रोबर्टो डोनाडोनी की पेनाल्टी किक रोक ली थी. माराडोना फाइनल में सेमीफाइनल को दोहराना चाहते थे. 85वें मिनट तक चीजें अर्जेंटीना के प्लान के मुताबिक चलीं और जर्मनी की टॉप गन्स बार बार अटैक करने के बावजूद गोल करने के लिए तरसती रहीं. लेकिन 85वीं मिनट में रेफरी ने जर्मनी को एक विवादास्पद पेनाल्टी दे दी. इस पर अनुभवी ब्रेमा ने गोल कर दिया और उसी गोल के बल पर अर्जेंटीना हार गया और जर्मनी ने 1986 का बदला ले लिया.
इस बार बदला लेने का नंबर अर्जेंटीना का
उस हार की टीस तब से आज तक हर अजेंटीनी खिलाड़ी के मन में है. क्योंकि हार की सबसे बड़ी दो वजह कनिजिया का फाइनल में न होना और पेनाल्टी दोनों एक तरह से अनफेयर थे. पिछले वर्ल्ड कप के क्वार्टर फाइनल में जर्मनी ने अर्जेंटीना को बुरी तरह हराया था. इसलिए बदला लेने का नम्बर अर्जेंटीना का है. तस्वीर साफ है. अर्जेंटीना के पास मेसी के रूप में अर्जुन हैं पर जर्मनी रूपी कौरव सेना बहुत मजबूत है. ऐसे में सामान्य रणनीति के साथ मैच जीतना मुश्किल होगा. अगर कृष्ण की तरह सबेला ने रणनीति सही बनाई तो ही जीत पाएगी अर्जेंटीना और मेसी बन पाएंगे माराडोना. रणीनिति क्या हो ये भी बता गए हैं माराडोना.
(ग) 2014 वर्ल्ड कप फाइनल :
जीत के लिए दोहरानी होगी 1986 की रणनीति
बस 1986 के फाइनल में झांकने की जरूरत है. अर्जेंटीना के पास आज भी मेसी के रूप में माराडोना है पर क्या हिग्वेन बन पाएंगे वल्डानो और डि मारिया बन पाएंगे बुरुचागा. मैच का फैसला इसी से होगा क्योंकि मेसी तो अपना काम करेंगे ही. गोल न मार पाए तो गोल के मौके बनाएंगे. उधर ब्राजील पर एकतरफा जीत से जर्मनी के हौसले बुलंद हैं. टीम बेहतर मजबूत है और एक टीम की तरह खेलती है. लाम का अनुभव, क्लोसा की स्ट्राइकिंग एबिलिटी और ओ जील की न थकने वाली दौड़ है जर्मनी के पास. वो गोल के लिए किसी एक खिलाड़ी पर निर्भर नहीं हैं.
नया माराडोना मिलेगा या नया लोथर मैथायस
क्लोसा, लाम, ओ जील, के अलावा केदीरा और श्वाइंसटाइगर भी हैं. पोडोस्की जैसा दिग्गज बेंच पर बैठा है. ऐसे में कागज पर तो जर्मनी मजबूत है पर ये भी ध्यान रखना होगा कि अर्जेंटीना के डिफेंस ने नीदरलैंड्स जैसी टीम को 120 मिनट तक एक भी गोल नहीं करने दिया था जबकि अर्जेन रॉबेन और वॉन पर्सी जैसे खतरनाक खिलाड़ी नीदरलैंड्स के पास थे. ऐसे में ये फाइनल न सिर्फ जोरदार होगा बल्कि ऐतिहासिक होगा. चाहे कोई भी टीम जीते दुनिया एक नया इतिहास बनते देखेगी. दुनिया को या तो एक नया माराडोना मिलेगा या फिर एक नया लोथर मैथायस.