नब्बे प्रतिशत मामलों में पाया गया है कि महिला कर्मचारियों ने अपनी निगरानी में रह रहे किशोरों को निशाना बनाया और उनके साथ सेक्स संबंध बनाए.
मंत्रालय की ओर से जारी इस रिपोर्ट ने इस क्षेत्र में काम कर रहे लोगों के बीच एक बहस छेड़ दी है.
कैलिफ़ोर्निया स्थित ग़ैर-सरकारी संस्था जस्ट डिटेंशन इंटरनेशनल की प्रमुख लोविसा स्टैनोव ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि नाबालिग न्याय तंत्र का ये पहलू अनदेखा-अनसुना रहा है और सुधार गृहों में काम कर रहे अधिकारी भी इसे बहुत अहमियत नहीं देते.
उनका कहना था, "बहुत लोग ये दलील भी देते हैं कि ये नाबालिग़ किशोर ही महिला कर्मचारियों को बहका देते हैं और ग़लती इन किशोरों की ही है. ये सही नहीं है."
स्टैनोव का कहना है कि इन किशोरों को ये समझाने की ज़रूरत है कि इस तरह का सेक्स एक अपराध है और आगे चलकर उन पर इसका बेहद बुरा असर पड़ेगा क्योंकि इस तरह के संबंधों को आपसी सहमति से हुए सेक्स का दर्जा नहीं दिया जा सकता. और ये समझाना सुधार गृह के कर्मचारियों की ज़िम्मेदारी है.
'90 फ़ीसदी महिलाएं शोषण में शामिल'
गृह मंत्रालय को इस तरह के शोषण की जानकारी सबसे पहले 2010 में मिली जब उन्होंने नाबालिग सुधार गृहों में रह रहे 9000 किशोरों का सर्वे किया.
इनमें से 10 प्रतिशत से भी ज़्यादा ने कहा कि वहां के कर्मचारियों ने उनका यौन शोषण किया है और इनमें से 92 प्रतिशत महिला कर्मचारी थीं.
ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार पिछले तीन सालों में स्थिति में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया है. देश के 326 सुधार गृहों में हुए सर्वेक्षण के अनुसार अभी भी 90 प्रतिशत मामले ऐसे हैं जिनमें महिला कर्मचारियों ने किशोरों के साथ सेक्स संबंध बनाए हैं.
पुरूष कर्मचारियों के हाथों भी इन नाबालिग़ों का शोषण हुआ है और इसका शिकार बने दो तिहाई किशोरों का कहना था कि उन्हें सेक्स संबंध के बदले में ख़ास सुविधाएं दी गईं और तोहफ़े भी मिले.
इक्कीस प्रतिशत किशोरों का कहना था कि उन्हें सेक्स के बदले शराब और नशीली दवाएं दी गई.
स्टैनोव का कहना है कि इस मामले को और भी गंभीरता से लेने की ज़रूरत है क्योंकि समाज में महिलाओं के हाथों पुरूष का सेक्स शोषणक्लिक करें बलात्कार की तरह नहीं देखा जाता.
ओहायो के सुधार कार्यक्रम के पूर्व निदेशक रह चुके रेगी विलकिन्सन का कहना है कि इस तरह के मामलों में सहमति से सेक्स हो ही नहीं सकता क्योंकि दोनों पक्षों के बीच ताकत के संतुलन में आकाश-ज़मीन का अंतर है.
सोशल मीडिया पर बहस
इस रिपोर्ट ने सोशल मीडिया पर भी बहस छेड़ दी है.
एक पक्ष का कहना है कि यही अपराध यदि पुरुषों ने नाबालिग़ लड़की के साथ किया होता तो उन्हें 25 साल की सज़ा होती. अगर महिला कर्मचारी पर ये आरोप साबित भी होता है तो उसे दो-तीन साल से ज़्यादा की सज़ा नहीं होगी.
वहीं एक पक्ष ये भी कह रहा है कि ये नाबालिग़ किशोर दुनिया को अच्छी तरह समझते हैं और जिसे शोषण कहा जा रहा है वो दरअसल आपसी सहमति से बनाए गए शारीरिक संबंध हैं.
अमरीकी वयस्क जेलों में बलात्कार एक भारी समस्या है लेकिन वहां ये घटनाएं क़ैदियों के बीच होती है. अधिकारियों और कर्मचारियों का सीधा हाथ नहीं देखा गया है.
नाबालिग़ सुधारगृह भी इससे अछूते नहीं रहे हैं लेकिन वहां कर्मचारियों की भूमिका पर उंगली उठ रही है और ग़ैर-सरकारी संगठन इसकी तह तक जाने की मांग कर रहे हैं.
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