गुलाम आज़म को युद्ध के दौरान हज़ारों लोगों की हत्या और बलात्कार के मामलों में शामिल होने के लिए 90 साल की सज़ा सुनाई गई है.

आज़म इन आरोपों से इनकार करते हैं. उनके समर्थकों ने इन्हें राजनीति से प्रेरित बताया है. सोमवार को अदालत का फ़ैसला आने से पहले जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्ताओं की पुलिस से झड़पें भी हुईं.

राजधानी ढाका और देश के अन्य शहरों में हुई इन झड़पों में सैकड़ों लोग घायल हो गए.

प्रदर्शन कर रहे जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्ताओं को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने रबड़ की गोलियां चलाईं.

सज़ा-ए-मौत

युद्ध अपराध के मामलों में इस अदालत की तरफ से दी गई ये पांचवीं सज़ा है.

इस अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण का गठन 2010 में वर्तमान अवामी लीग सरकार ने किया था. इसका मकसद 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पाकिस्तान की सेना का कथित रूप से सहयोग करने वालों को सज़ा देना है.

मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि ये न्यायाधिकरण अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन नहीं करता है.

अभियोजकों का कहना है कि हज़ारों लोगों के क़त्ल और बलात्कार करने के लिए हिंसक मिलिशिया का गठन करने वाले आज़म को सज़ा-ए-मौत मिलनी चाहिए.

उन पर 60 से अधिक मामलों में मानवता के खिलाफ योजना बनाने, षड्यंत्र रचने, उकसाने, अपराधों में शामिल होने और हत्या के आरोप थे.

लेकिन उनके वकीलों का कहना है कि ये आरोप उस समय के उनके भाषणों की अख़बारों में रिपोर्टिंग पर आधारित हैं, किसी ने इन्हें साबित नहीं किया है.

आज़ादी का विरोध

आज़म 1969 से 2000 तक जमात-ए-इस्लामी के नेता थे. कई लोग उन्हें अपना आध्यात्मिक नेता मानते हैं. उनके सहयोगी उन्हें लेखक और इस्लामी विद्वान मानते हैं.

बांग्लादेश: 90 साल के नेता को 90 साल की सज़ा

आज़म ने पाकिस्तान से बांग्लादेश की आज़ादी का कड़ा विरोध किया था. उनका कहना था कि इससे मुसलमान समुदाय बंट जाएगा.

अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण के फ़ैसलों के बाद भड़की हिंसा में जनवरी से अब तक सौ से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.

ढाका में मौज़ूद बीबीसी संवाददाता मुहाफ़िज़ सिद्दीक़ी के मुताबिक़ स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुए अपराधों के लिए सज़ा देने को व्यापक समर्थन हासिल है.

नौ महीने तक चले बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में कितने लोगों की मौत हुई थी, ये अभी तक स्पष्ट नहीं है. लेकिन अधिकारिक रूप से कहा जाता है कि इस युद्ध में तीस लाख लोग मारे गए थे. लेकिन कुछ स्वतंत्र शोधकर्ताओं का कहना है कि मरने वालों की संख्या क़रीब पाँच लाख थी.

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