गोवा के मुख्य चुनाव अधिकारी कुणाल ने बीबीसी को दी पूरी जानकारी।
उनका दावा है कि यह पूरी तरह से 'फ़ूल प्रूफ़' है कहीं किसी तरह की गड़बड़ी किसी सूरत में नहीं की जा सकती है।
बीबीसी से बात करते हुए कुणाल ने कहा, "ईवीएम चिप आधारित मशीन है, जिसे सिर्फ़ एक बार प्रोग्राम किया जा सकता है। उसी प्रोग्राम से तमाम डेटा स्टोर किए जा सकते हैं। लेकिन इन डेटा की कहीं से किसी तरह की कनेक्टिविटी नहीं है।"
लिहाजा, ईवीएम में किसी तरह की हैकिंग या रीप्रोग्रामिंग मुमकिन ही नहीं है। इसलिए यह पूरी तरह सुरक्षित है।
ईवीएम में वोट सीरियल नंबर से स्टोर होता है। यह पार्टी के आधार पर स्टोर नहीं किया जाता है।
कुणाल ने आगे जोड़ा, "तमाम ईवीएम मशीनें चुनाव अधिकारी यानी ज़िला मजिस्ट्रेट या कलक्टर के नियंत्रण में होता है, जिसकी चौबीसो घंटे निगरानी सुरक्षा बल करते हैं। वहां उम्मीदवारों को पूरी छूट है कि वे अपना नुमाइंदा वहां तैनात करें।"
उनके मुताबिक़, ईवीएम स्ट्रॉन्ग रूम भेजी जाती हैं। यह काम केंद्रीय सुरक्षा बलों की निगरानी में होता है। उम्मीदवारों को पूरी छूट है कि वे चाहें तो वे मशीन को लॉक कर दें, अपना दस्तख़त करें, मुहर लगा दें या अपना आदमी मशीन के साथ साथ साथ भेजें। वे चाहें तो स्ट्रॉन्ग रूप के बाहर भी अपना आदमी तैनात कर दें।"
सभी ईवीएम एक जगह ला कर उनकी सूची बना कर गिनती के लिए भेजी जाती है। यह पूरा काम सभी उम्मीदवारों के नुमाइंदगों की मौजूदगी में होता है।
कुणाल ने बीबीसी से कहा, "भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड या इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड के इंजीनियर इन मशीनों की चेकिंग करते हैं, उनमें उम्मीदवारों के नाम, उनके चिह्न वगैरह फीड करते हैं।"
ये मशीनें जब पोलिंग के लिए भेजी जाती हैं तो एक बार फिर उनकी चेकिंग की जाती है। यह दूसरे स्तर की चेकिंग हुई।
कुणाल ने कहा, "उम्मीदवारों के नाम का चयन वर्णमाला के आधार पर किया जाता है। इसके तीन सेट होते हैं, राष्ट्रीय दल, क्षेत्रीय दल और दूसरे दल और निर्दलीय उम्मीदवार। यह चयन दल नहीं, नाम के आधार पर होता है। वोट भी क्रमांक के आधार पर ही रिकॉर्ड होता है। यहां किसी तरह के छेड़छाड़ की कोई गुंजाइश ही नहीं है।"
उन्होंने कहा कि साल 2009 में चुनाव आयोग ने सभी उन लोगों को बुलाया था, जो यह दावा किया करते थे कि वे ईवीएम को 'हैक' कर देंगे। लेकिन उनमें से कोई कुछ नहीं कर सका। लिहाज़ा, अब 'हैकिंग' का दावा बेबुनियाद है।
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