प्राकृतिक नियमानुसार हर चीज की मर्यादा होती है और जहां मर्यादा का उल्लंघन होता है, वहां मनुष्य को संकटों का सामना करना ही पड़ता है इसीलिए विद्वानों ने कहा है कि 'अति सर्वत्र वर्जयेत्’ अर्थात् किसी भी कार्य में अति नहीं होनी चाहिए। देखा गया है कि जब भी मनुष्य जरा सा मर्यादा के बाहर जाता है, तब उसे संकट का सामना करना ही पड़ता है। उदाहरणार्थ यदि किसी व्यक्ति की खुराक आधा सेर है और वह स्वादिष्ट भोजन के लोभवश कुछ अधिक खा लेता है, तो यह निर्विवाद है कि उसे अपचन, गैस आदि जैसी किसी-न-किसी पीड़ा को सहन करना पड़ता है।
उक्त नियम केवल मनुष्य या प्राणिमात्र के लिए ही नहीं, किंतु संसार की हर वस्तु के लिए है। यद्यपि मर्यादा कोई कानून नहीं और पाप-पुण्य की परिभाषा पर आधारित कोई आचार संहिता भी नहीं परंतु पारस्पारिक संबंधों में कलह-क्लेश की स्थिति पैदा होने से रोकने, कार्य को सुचारू रूप से चलाने तथा समाज में तालमेल, सामंजस्य, स्नेह और व्यवस्था बनाए रखने के लिए अत्यावश्यक है। सच तो यह है कि अगर मर्यादा बनी रहे तो कानून और दंड-संहिता की आवश्यकता ही नहीं होगी और तनाव से बचने के लिए डॉक्टर व गोलियों की जरूरत भी नहीं रहेगी, न ही आपस में मनमुटाव, टकराव या भाव-स्वभाव के कारण अलगाव ही पैदा होगा।
मर्यादा शब्द के कारण ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र जी आज विश्वभर में पूजे जाते हैं। मर्यादा शब्द तो केवल साढ़े तीन अक्षर का है, किंतु मर्यादा का पालन करना उतना सरल नहीं है। अनुभव से यह देखा गया है कि मर्यादा को तोड़नं से कलह-क्लेश पैदा होता है, अनुशासन टूटता है और प्रशासन भी छिन्न-भिन्न हो जाता है और इसीलिए ही यह देखा जाता है कि जिस समाज अथवा संस्था में मर्यादाएं भंग होती हैं, एक दिन वह आलोचना, हंसी, लोगों की दया अथवा स्वयं में पश्चाताप का कारण बनकर रह जाता है। अत: जो समझदार व विद्वान लोग हैं, उनका कर्तव्य है कि वे स्वयं मर्यादा के अनुसार चलें और स्वयं से नीचे की रेखा के व्यक्तियों को मर्यादा के अनुसार चलने के लिए प्रेरित करें, शिक्षा दें, प्रोत्साहन दें, सावधान करें, वचन-बद्ध करें या उल्लंघन को रोकने के लिए साधन-संविधान अपनाएं।
यदि वे हरेक से न्यायपूर्ण, स्नेहशील, सहानुभूतिपरक या कर्तव्यपूर्वक व्यवहार नहीं करते तो फिर वो रेखा से नीचे वालों को मर्यादा भंग करने पर मजबूर करते हैं। इसी प्रकार अनुजों का यह कर्तव्य है कि वे शब्द-संयम का पालन करें और मर्यादा की लकीर के अंदर रहें। आज विश्वभर में हम देख रहे हैं कि मर्यादा न रहने पर हड़ताल करना, नारे लगाना, बड़ों को अपमानित करना, उनकी आज्ञा भंग करना और स्वार्थ को लेकर या अपनी मान-शान का झंडा बुलंद करके शोरगुल करना और समूचे देश व समाज में अशांति का माहौल उत्पन्न करना आम हो चला है। ऐसा ही कुछ हाल छोटे स्तर पर परिवारों, दफ्तरों या संस्थाओं का भी होता है। अगर पुराणों में बताए गए कलियुग के लक्ष्ण की ओर हम ध्यान दें, तो आज का समय बिल्कुल उससे मिलता-जुलता लगेगा।
परमात्मा प्रदान करेंगे नवजीवन
ऐसे समय में तो केवल एक सर्व शक्तिमान परमात्मा ही हैं, जो हमें अपनी भूली हुई मर्यादाओं से अवगत कराकर गहरी मूर्छा से बाहर निकालकर नवजीवन प्रदान कर सकते हैं। मर्यादाओं का पालन करना ही प्रीत-बुद्धि व्यक्ति का लक्षण है। इसको सामने रखते हुए हरेक को अपने-अपने स्थान और संबंध के अनुसार मर्यादा का पालन करना चाहिए।
— राजयोगी ब्रह्माकुमार निकुंजजी
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