मनोजवं मारूत तुल्यवेगंए जितेंन्द्रियं बुद्धिमना वरिष्ठम।
वातात्मजं वानरयूथ मुख्यंएश्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥
उक्त श्लोक द्वारा हमें सर्वतोमुखी शक्ति के प्रतीक हनुमान जी का यथार्थ चित्रण मिलता है कि कैसे वे शरीर के साथ-साथ मन से भी अपार बलशाली थे एवं उन्होंने वासना को जीत लिया था। वे जितेन्द्रिय थे और बुद्धिमानों में भी श्रेष्ठतम थे।
यह एक निर्विवाद तथ्य है कि भारत के लोगों के मन में हनुमान जी का चरित्र उनकी ईश्वर भक्ति, ईश्वर सेवा और ईश्वर के प्रति वफादारी के कारण बहुत ही प्रसिद्ध है और इसलिए ही यहां के अधिकतर घरों में उनकी मूर्ति प्रतिदिन पूजी जाती है और देश के कोन-कोने में भी उनके अनगिनत मंदिर बने हुए हैं।
जन के दिलों में स्थान पाने वाले हनुमान जी की पूजा-अर्चना करना उनके प्रति हमारी श्रद्धा का एक पहलू है, लेकिन उनके चारित्रिक गुणों से प्रेरणा लेना व उनके गुणों को जीवन में आत्मसात करना सर्वथा दूसरा पहलू है। अत: यदि हम खुद को हनुमान जी का सच्चा भक्त मानते हैं, तो हमें ऐसे महान चरित्र के चारित्रिक गुणों के प्रकाश से स्वयं को प्रकाशित करने का प्रयास करना चाहिए।
चैत्र पूर्णिमा के दिन जन्मे हनुमान जी के यूं तो अनेक नाम हैं, परन्तु सर्वाधिक प्रचलित हनुमान शब्द का अर्थ है, ऐसा व्यक्ति जो मान का हनन करने वाला हो। पौराणिक कथाकारों के अनुसार ज्ञानसूर्य परमात्मा के ज्ञान गुण शक्तियों को अपनी बुद्धि में समाहित करने वाले हनुमान जी अनेक आध्यात्मिक शक्तियों से सुसंपन्न रहे, लेकिन अपनी किसी भूल के कारण उन्हें यह शाप मिला कि समय आने पर वे अपनी शक्तियों को भूल जाएंगे और किसी के द्वारा याद दिलाये जाने पर वे शक्तियां जाग्रत हो उठेंगी।
अब यह तो हम सब भलीभांति जानते ही हैं कि शाप देने का कार्य कोई श्रेष्ठ व्यक्ति तो कर नहीं सकता, क्योंकि शाप या बद्दुआ देने वाली तो माया है, अर्थात पांच विकार, तो इसका अर्थ यह हुआ की कलियुग के अंत में जब हम सभी आत्माएं माया द्वारा शापित होकर मूच्र्छित हो जाती हैं और अपनी समस्त शक्तियां खो देती हैं, तब सर्वशक्तिमान परमात्मा हमें ज्ञान संजीवनी द्वारा फिर से सुरजीत करते हैं और माया के शाप से हमें सदा के लिए मुक्त कर देते हैं, जिसके फलस्वरूप हम अपनी सर्व आध्यात्मिक शक्तियों को पुन: प्राप्त कर लेते हैं।
कहते हैं कि इष्ट का उज्जवल चरित्र ही साधकों के जीवन को इत्र समान खुशबूदार और गुणवान बनाता है। आत्मा अमर है और उसके द्वारा किए जाने वाले महान चरित्र भी चिरंजीव ही रहते हैं। अत: हमें यह महसूस करना चाहिए कि वर्तमान समय वही युग परिवर्तन की वेला है, जब सर्व शक्तिमान परमात्मा माया रावण के चंगुल में फंसी आत्मा रूपी सीताओं की खोज में धरती पर अवतरित हो चुके हैं। ऐसे समय में भगवान श्री हनुमान जी की तरह त्याग, तपस्या और सेवा को जीवन में धारण करके ईश्वरीय सेवा में मददगार बनने वाली आत्माओं का भगवान आह्वान कर रहे हैं।
याचना की बजाय गुणों को धारण करें
आत्माएं तो हुनमान जी को अष्ट सिद्धि और नवनिधि की पूर्ति की कामना हेतु स्वार्थवश याद करती हैं, परन्तु वर्तमान समय की मांग यह है कि हम समय की नाजुकता को पहचान कर हनुमान जी से याचना करने की बजाय उन जैसे गुणों को धारण करके अनेक याचक आत्माओं की कामना पूर्ति करें और श्री हनुमान जी के गुणों की रोशनी से अपने जीवन-पथ को आलोकित करें। उनके समान ईश्वर प्रेम में रम जाएं और उनके समान ईश्वर समर्पित होकर ईश्वर समान बन जाएं।
राजयोगी ब्रह्माकुमार निकुंजजी
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