कानपुर। आजाद भारत के इतिहास से आपातकाल का नाम शायद ही कभी मिट पाए। मिड डे में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक कुछ लोगों ने तो इसे 'भारतीय लोकतंत्र में काला दिन' और 'तानाशाही' का नाम भी दिया। देश में 25 जून,1975 से 23 मार्च,1977 तक आपातकाल का दाैर था।
आधी रात को आपातकाल
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी के निर्वाचन को जब अवैध करार दिया था तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट ने भी इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को बरकार रखा था। इस पर पूर्व पीएम इंदिरा ने 25 जून, 1975 काे आधी रात को आपातकाल लगा दिया था।
असीमित अधिकार लिया
इंदिरा गांधी ने सविंधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में इमरजेंसी लगाकर खुद को असीमित अधिकार दे दिए थे। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर आपातकाल को लागू करने का फैसला तत्कालीन संघ कैबिनेट की मंजूरी के बिना लिया गया था।
मीडिया पर सेंसर शिप लगी
आपातकाल लगने के बाद अखबारों की खबरों पर कड़ा पहरा था।मीडिया पर सेंशरशिप लगी थी। अखबारों में क्या छपेगा क्या नहीं यह संपादक नहीं बल्कि सेंसर अधिकारी द्वारा तय किया जा रहा था। इस दाैरान कई अखबारों ने तो विरोध में पन्ने तक काले छोड़ दिए थे।
जबरन नसबंदी अभियान चला
आपातकाल के दाैरान ही इंदिरा के बेटे संजय गांधी ने पुरुष नसबंदी अभियान चलाया था। इसमें लोगों की जबरन नसबंदी कराई जा रही थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इसमें लाखों लोगों की नसबंदी कराई गई थी। गलत ऑपरेशनों से बड़ी संख्या में लोगों की मौत भी हुई थी।
जबरन जेल में डालने का फैसला
इस दाैरान नागरिक अधिकार समाप्त हो गए थे। पुलिस मनमाने तरीके से लोगों को जेल में डाल देती थी। विजयाराजे सिंधिया, जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे विपक्षी नेता गिरफ्तार हुए थे।
National News inextlive from India News Desk