इस्लामी परंपरा के अनुसार, रमजान के महीने के ठीक बाद ईद-उल-फित्र और हज के महीने के बाद ईद-उल-जुहा दो महत्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं। ईद-उल-फित्र का शाब्दिक अर्थ है उपवास तोड़ने का उत्सव। यह त्योहार हर साल रमजान के अंत में इसलिए मनाया जाता है, ताकि तीस रोजों (उपवास) की समाप्ति की खुशी में रोजेदार ईश्वर का शुक्रिया अदा कर सकें।
रोजा प्रतीक है स्वयं को हर बुराई से जीवन भर दूर रखने का
उपवास का उद्देश्य केवल खाना-पीना छोड़ना नहीं होता है, बल्कि रोजा प्रतीक है स्वयं को हर बुराई से जीवन भर दूर रखने का। रोजा के लिए अरबी शब्द सियाम (सावंम) है, जिसका अर्थ 'संयम' होता है। रमजान के दौरान दिन में खाने और पानी से दूर रहने से रोजेदार याद करता है कि उसे जिम्मेदारी की भावना के साथ जीवन जीना है। उन्हें खुद को याद दिलाना है कि उन्हें संयम का जीवन अपनाना है। कुछ लेना है और कुछ छोड़ना है। यही रमजान की असली भावना है।
इसे गरीबों को फित्र (दान) बांटने के त्योहार के रूप में भी मनाया जाता है। तभी ईद-उल-फित्र गरीबों के लिए भाईचारे की भावना और सहानुभूति प्रकट करने का भी प्रतीक है। ईद में स्वादिष्ट पकवान और नए परिधान की खास व्यवस्था की जाती है और परिवार समेत दोस्तों के बीच तोहफों का आदान-प्रदान किया जाता है।
विश्व बंधुत्व को बढ़ावा देने का त्योहार है ईद
मूल रूप से ईद विश्व बंधुत्व को बढ़ावा देने का त्योहार है। इसलिए हजरत मुहम्मद ने इसे सभी धर्म के लोगों के साथ मिलकर मनाने और सबके लिए खुदा से सुख-शांति और बरकत की दुआएं मांगने की तालीम दी है। ईद-उल-फित्र का सामाजिक अर्थ भी है। इस दिन मुस्लिम अपने घरों से बाहर निकलते हैं, एक साथ नमाज पढ़ते हैं। अपने पड़ोसियों, रिश्तेदारों से मिलते हैं और अन्य लोगों को शुभकामनाएं देते हैं। अब तो इस त्योहार को सभी संप्रदाय के लोग मनाते हैं। दरअसल, इस त्योहार का असल उद्देश्य भी सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देना है। इस त्योहार की हर गतिविधि सामाजिक गतिविधि में बदल जाती है।
रामिश सिद्दीकी (इस्लामिक विषयों के जानकार)
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