कानपुर। Eid ul Fitr 2020: रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है। इस पूरे माह में रोजे रखे जाते हैं। इस महीने के खत्म होते ही 10वां माह शव्वाल शुरू होता है। इस माह की पहली चांद रात ईद की चांद रात होती है। इस चांद रात को 'अल्फा' कहा जाता है। इस चांद के दीदार के बाद ही ईद-उल-फितर का ऐलान होता है। इसकी अगली सुबह ईद-उल-फितर का त्योहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। जो इस्लाम धर्म का एक पावन पर्व है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, रमजान के बाद 10वें शव्वाल की पहली तारीख को ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है। यह पर्व खासतौर पर भारतीय समाज के ताने-बाने और उसकी भाईचारे की सदियों पुरानी परंपरा का सूचक है। इस दिन विभिन्न धर्मों के लोग गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे से गले मिलकर अमन और चैन की खुदा से दुआं मांगते हैं। देखा जाए तो रमजान और उसके बाद ईद व्यक्ति को एक इंसान के रूप में सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाने का दायित्व भी सौंपती है।
When is Eid ul Fitr 2020
दुनिया में चांद देखकर रोजा रहने और चांद देखकर ईद मनाने की पुरानी परंपरा है और आज के हाईटेक युग में तमाम बहस-मुबाहिसे के बावजूद यह रिवाज कायम है। आज भी चांद के दीदार से ही ईद की तारीख तय होती है। इस बार ऐसी संभावना है कि 24 मई या 25 मई को चांद के दीदार के बाद ईद-उल-फितर पर्व मनाया जा सकता है।
History Eid ul Fitr 2020
इस्लाम की तारीख के मुताबिक ईद उल फितर की शुरुआत जंग-ए-बद्र के बाद हुई थी। इस्लामिक कैलेंडर या हिजरी के अनुसार रमजान वर्ष का नौवां महीना होता है | इस महीने के 624 ईस्वी में हजरत मुहम्मद साहब द्वारा बद्र का युद्ध लड़ा गया था, और इस जंग में उनकी फतह हुई थी, इस युद्ध का नेतृत्व स्वयं पैगंबर मुहम्मद साहब ने किया था। युद्ध फतह के बाद लोगों ने ईद मनाकर अपनी खुशी जाहिर की थी। इस दिन मीठे पकवान बनाए और खाए गए थे और अपने से छोटों को ईदी दी गयी थी। उस दिन से ही ईद मनाने की शुरूआत हुई ऐसी मान्यता है कि 624 ईस्वी में पहला ईद-उल-फितर मनाया गया था। यह भी माना जाता है कि इसी महीने में ही कुरान-ए-पाक का अवतरण हुआ था।
Importance of Eid ul Fitr 2020
ईद-उल-फितर एक रूहानी महीने में कड़ी आजमाइश के बाद रोजेदार को अल्लाह की तरफ से मिलने वाला रूहानी इनाम है। ईद समाजिक तालमेल और मोहब्बत का मजबूत धागा है, यह त्योहार इस्लाम धर्म की परंपराओं का आईना है। यह पर्व न सिर्फ हमारे समाज को जोड़ने का मजबूत डोर है, बल्कि यह इस्लाम के प्रेम और सौहार्दभरे संदेश को भी पूरी दुनिया में फैलाता है।एक रोजेदार के लिए इसकी अहमियत का अंदाजा अल्लाह के प्रति उसकी कृतज्ञता से लगाया जा सकता है। ईद रोजेदार रमजान में रखे गए रोजों के एवज में अल्लाह से मिले इनाम के रूप में मनाया जाता है। ईद का अर्थ है ख़ुशी। भारत में ईद का त्योहार यहां की गंगा-जमुनी तहजीब को और दृढ़ बनाता है। यहां हर धर्म और वर्ग के लोग इस दिन को तहेदिल से मनाते हैं। इस दिन लोग अल्लाह से दुआएं मांगते व रमजान के रोजे और इबादत की हिम्मत के लिए खुदा का शुक्र अदा करते हैं।
Celebration Eid ul Fitr 2020
ईद की शुरुआत सुबह दिन की पहली नमाज के साथ होती है। जिसे सलात अल-फज्र कहते हैं। इसके बाद पूरा परिवार कुछ मीठा खाता है। वैसे ईद पर खजूर खाने की परंपरा है। फिर रोजेदार नए कपड़े पहनकर ईदगाह पर जाकर एक साथ नमाज अदा करके अमन और चैन की दुआ करते हैं। और खुदा का शुक्रिया अदा करते हैं कि अल्लाह ने उन्हें महीने भर रोजा रखने की ताकत द। इसके बाद सब एक दूसरे के गले लगकर एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद देते हैं। ईद से पहले हर मुसलमान के लिए फितरा देना फर्ज है। फितरे के तहत प्रति इंसान पौने दो किलो अनाज या उसकी कीमत गरीबों को दी जाती है। ये इसलिए होता है जिससे गरीब भी ईद की खुशी मना सकें। ईद-उल-फितर को मीठी ईद के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन कई तरह के पकवान घर में बनाएं जाते हैं। खासतौर पर सेंवईं बनाई जाती है। घर आए मेहमानों को सेंवई खिलाकर उनका मुंह मीठा करवाया जाता है और उनको और अपने से छोटों को ईदी दी जाती है। क्यों रखा जाता हैं रोजा रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है। इस पूरे माह में रोजे रखे जाते हैं। मान्यता है कि अल्लाह रोजेदार और इबादत करने वाले की दुआ कूबुल करता है और इस पवित्र महीने में गुनाहों से बख्शीश मिलती है।
इस्लाम धर्म के मुताबिक रमजान के महीने को नेकियों आत्मनियंत्रण और खुद पर संयम रखने का महीना माना जाता है। रमजान महीने में रोजे रखना फर्ज माना गया है ऐसा इसलिए, ताकि इंसान को भूख-प्यास का अहसास हो सके और वह लालच से दूर होकर सही राह पर चले। साथ ही यह भी कहा जाता है कि रोजे के दौरान न बुरा सुना जाता है और न बुरा देखा जाता है। इसी वजह से हर मुसलमान रोजा रख खुद को बाहरी और अंदरूनी तरफ से पाक रखता है। बता दें कि रमजान के महीने को तीन भागों में बांटा जाता है। दस दिन के पहले भाग को रहमतों का दौर बताया गया है। साथ ही दस दिन के दूसरे भाग को माफी का दौर कहा जाता है। इसके अलावा दस दिन के तीसरे भाग को जहन्नुम से बचाने का दौर पुकारा जाता है। कुरआन के अनुसार पैगंबर इस्लाम ने कहा है कि जब अहले ईमान रमजान के पवित्र महीने के एहतेरामों से फारिग हो जाते हैं और रोजों-नमाजों तथा उसके तमाम कामों को पूरा कर लेते हैं तो अल्लाह एक दिन अपने उक्त इबादत करने वाले बंदों को बख्शीश व इनाम से नवाजता है। इसलिए इस दिन को 'ईद' कहते हैं और इसी बख्शीश व इनाम के दिन को ईद-उल-फितर का नाम देते हैं।
फितरा देना है हर रोजेदार का फर्ज
'ईद-उल-फितर' दरअसल दो शब्द हैं। 'ईद' और 'फितर', जिसमें ईद का अर्थ है खुशी और फितर का अर्थ है रुकावटों को खत्म करना या वह रकम जो आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को दिया जाए। ईद की नमाज से पहले फितर या जकात अदा करना हर रोजेदार का फर्ज मना गया है। यह जकात गरीबों, बेवाओं व यतीमों को दी जाती है। इस सबके पीछे सोच यही है कि ईद के दिन कोई खाली हाथ न रहे, क्योंकि यह खुशी का दिन है। रमजान में हर सक्षम मुसलमान को अपनी कुल संपत्ति के ढाई प्रतिशत हिस्से के बराबर की रकम निकालकर उसे गरीबों में बांटना होता है। इससे समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारी का निर्वहन तो होता ही है, साथ ही गरीब रोजेदार भी ईद का त्योहार को खुशी से मना पाते हैं।
चांद का है विशेष महत्व
मुस्लिम त्योहारों में चांद का बहुत ही महत्व है। ईद-उल-फितर हिजरी कैलेंडर के 10वें माह के पहले दिन मनाई जाती है। हिजरी कैलेंडर में नया माह चांद देखकर ही प्रारंभ होता है। जब तक चांद नहीं दिखे तब तक रमजान का महीना खत्म नहीं माना जाता। रमजान माह के खत्म होने के बाद ही नए माह के पहले दिन ईद मनाई जाती है। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन हजरत मुहम्मद मक्का शहर से मदीना के लिए निकले थे।
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