बड़ी संख्या में यंग एज के लडक़े यहां ईंट के भट्ठों पर मजदूरी कर रहे हैं. कभी इनके घर वालों ने इन भट्ठा मालिकों से कर्ज लिया था. उस कर्ज को चुकाने के लिए इन्होंने अपनी जिंदगी धूलभरे अंधड़ में झोंक दी है. सांचों में ईंट को ढालते इनके मासूम हाथ अपने भविष्य को आकार दे पाने में सक्षम नहीं हैं.
ख्वाहिश कुछ पर नसीब में नहीं
नांगर्हर प्रोविंस में एक ईंट भट्टे पर लेबर बॉस गुल बाचा, 18 साल के निक मुहम्मद की ओर इशारा करता है. वह बताता है कि यह यंग मैन दो बार अफगान आर्मी ज्वॉइन करने के लिए यहां से भाग चुका है, पर उसके नसीब में शायद वह नहीं है. बाचा ने बताया कि मुहम्मद के बाप ने मुझसे पैसे मांगे, तब मैंने उससे कह दिया कि उसके बेटे को यहां काम पर वापस आना होगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो पहले का लिया हुआ मेरा पूरा पैसा चुकाना होगा. यंग बाचा चुपचाप अपने बॉस की बात सुनता है.
30 साल पहले का कर्ज
बॉस के चले जाने के बाद मुहम्मद दुखी स्वर में कहता है, मैं सिर्फ 7 साल का था जब मैंने यह काम शुरू किया. 30 साल पहले मेरे पिता जार मुहम्मद ने शादी के लिए बॉस से 10,000 रुपए का कर्ज लिया था. आज यह कर्ज बढक़र 150,000 रुपए हो गया है.
मुहम्मद के तीन और भाई हैं और सभी यहीं काम करते हैं. इनमें से एक की आंखों में बड़े-बड़े सपने हैं. वह पढ़ाई करना चाहता है, डॉक्टर बनकर लोगों की सेवा करना चाहता है. मगर उसके तकदीर में ईंटें गढऩा लिख गया है
शायद. 55 साल के जार मुहम्मद को भी इस बात का अफसोस है. उसे दुख है कि उसने जो कर्ज लिया था उसे उसके बेटों को भरना पड़ेगा. अफगानिस्तान में ईंट-भट्ठा मालिक जार मोहम्मद और उसके चार बेटों को 2500 ईंटों के लिए 10 डॉलर पे करते हैं.
पीढिय़ों की गुलामी
यह लोग वह मजदूर हैं जो अनुबंधित की कैटेगरी में आते हैं. गुल बाचा ने इन्हें पाकिस्तान के एक ईंट-भट्ठा ओनर से खरीदा है. इस कर्ज के पीछे गरीबी भी बड़ी वजह है. लंबे समय के वायलेंस के बाद अफगानिस्तान में अब कुछ बैंक्स बने हैं. ईंट-भट्ठों पर काम करने वाले मजदूर इतने गरीब हैं कि लोन लेना उनके लिए मुमकिन नहीं है. ऐसे में उनकी उम्मीद उनके मालिकों पर टिक जाती है. जो उनकी सिचुएशन का पूरा फायदा उठाते हैं.
दावे और हकीकत
कानून के मुताबिक अफगानिस्तान में 15 साल से कम उम्र के बच्चों से हैवी लेबर वर्क लेना गुनाह है. गवर्नमेंट का भी कहना है कि वह ईंट-भट्ठों से बच्चों को मार्क कर उन्हें स्कूलों में भेज रही है. मगर इन सारे दावों के बावजूद एक हकीकत यह भी है कि सिर्फ सुरख््राोद डिस्ट्रिक्ट में करीब 90 ईंट-भट्ठे हैं, जहां 150 से 200 बच्चे काम करते है. यह दावा ईंट-भट्ठा यूनियन के डायरेक्टर हाजी मीरवाइज ने किया.
International News inextlive from World News Desk