कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। डॉ. त्रिलोकीनाथ (ज्योतिर्विद्)। Dussehra 2024: विजय दशमी त्यौहार का मूल उदेश्य बुराई का नाश करके अच्छाई की विजय दिखाना है। आध्यात्मिक अधार पर यदि चिन्तन करे तो मनाव मन में दो प्रवृतियाँ काम करती है। अच्छी-प्रवृति और बुरी-प्रवृति। बुरी प्रवृति के अनुसार लोभ, माया, लालच, बुरी कामवासना वाली प्रवृतियाँ जो बुराई की प्रतीक है। इस बुरी प्रवृति को हम दश-भागों में भी विभाजित करते है। यही दश बुरी प्रवृतियाँ दशानन अर्थात रावण की प्रतीक है। सत्य, निष्ठा, प्रेम-भावना, छोटे का बडे के प्रति, बड़े का छोटे के प्रति, भाई का बहन के प्रति, स्त्री-पुरूष के बीच जो सत्य-निष्ठा रूपी कर्तव्य-भावना है उसके प्रतीक राम है। हम अपने अंदर की बुराईयों का अपने अंदर की अच्छाईयों से कुठाराधात करते है। हमारे अंदर की बुराईयाँ जब रावण की तरह जल कर नष्ट हो जाती है और हमारअंतर-मन में निर्मल, स्वच्छ-भावना बहने लगती है। मन, बुद्धि और हदय शुद्ध एवं निर्मल हो जाते है।
रावण के रूप में बुराईयों का पुतला जलाते
विजय दशमी का त्यौहार बाह्य कथानक के रूप देखा जाये तो रावण एवं उसके साथ लड़ने वाले खड्दूषण, मेघनाथ एवं रावण के जितने सहयोगी है वे सब बुरी प्रवृतियों का प्रतिनीधित्व करते है। राम,लक्ष्मण,हनुमान, सीता जी अच्छी प्रवृतियों का प्रतिनीधित्व करते है। बुरे मानव पर अच्छे मानव की विजय की अतंर कथा राम-रावण के रूप में कई शताब्दियों से चली आ रही है। रावण बुराई का पुतला मात्र नही है उसमें मानव समाज की जितनी बुराईयाँ हो सकती है उतनी बुराईयाँ उसमें समायोजित है। हम रावण का पुतला नही जलाते है बल्कि रावण के रूप में बुराईयों का पुतला जलाते है। यह संदेश युगों-युगों से प्रसारित हो रहा है। विधर्मी मानव रूपी रावण को हम सब जलाते रहेंगे और अच्छाइयों से भरे राम का गुणगान करते रहेंगे। इस पावन पर्व विजय दशमी का भारतीय समाज में एक धार्मिक महत्व तो है। इसका सबसे बड़ा महत्व सामाजिक भी है। यह त्यौहार भारतीय समाज को जगाने और उसे प्रेरित करने वाला त्यौहार भी है। यह त्यौहार भारतीय समाज पर अमिट छाप बनाये रखने वाला उत्सव भी है।