फिल्म : दुर्गामती द मिथ
निर्देशक : जी अशोक
प्लेटफार्म : अमेज़न प्राइम वीडियो
कलाकार भूमि पेंडेकर, अरशद वारसी,करण कपाड़िया,माही गिल,जिशु सेनगुप्ता
रेटिंग: डेढ़ स्टार
क्या है कहानी
फिल्म की कहानी एक राज्य के जल संसाधन मंत्री ईश्वर( अरशद वारसी) पर है, वह सत्ता हासिल करना चाहता है। इस पूरे सत्ता के खेल में, एक आम सी लड़की कैसे मोहरा बनती है, और किस तरह उसका इस्तेमाल होता है, यही फिल्म की कहानी है। ईश्वर का पर्दा फाश करने के लिए, सीबीआई ईश्वर की दस सालों तक सचिव रही चंचल चौहान को लेकर इन्क्वारी बिठाते हैं। लेकिन कहानी में ट्विस्ट यही है कि आईएएस अफसर चंचल चौहान ( भूमि पेंडेकर) पर, अपने मंगेतर ( करण कपाड़िया) की हत्या का आरोप है, वह जेल में है, लेकिन वह बाहर आती है। एक सुनसान जंगल के बीच एक महल में उसे रखा जाता है, वहां से शुरू होती है दुर्गामती की कहानी। कौन है दुर्गा मती, उस महल का राज क्या है, क्या वाकई वहां कोई आत्मा है, क्या दुर्गामती और चंचल का कोई कनेक्शन जुड़ता है, क्या ईश्वर का सच सामने आ पाता है, यह पूरा खेल आप तब समझ पाएंगे, जब यह बोरिंग और बोझिल फिल्म देखेंगे।
क्या है अच्छा
कहानी का कांसेप्ट अच्छा है, राजनीति को लेकर आम लोग किस तरह मोहरा बनते हैं, इसे बखूबी दिखाया गया है। फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है।
क्या है बुरा
कहानी बहुत बोरिंग और प्रेडिक्टेबल है, सबकुछ पता होता है कि अगले क्षण क्या होने वाला है, नैरेटिव बहुत बोरिंग है और साथ ही मोनो लॉग जो भूमि ने किया है. वह भी बेहद उबाऊ हैं। तेलुगु फिल्म से कोई भी अंतर् नहीं हैं, कोई नयापन नहीं है। फ़िल्म की कहानी में कई मुद्दे उठाये गए हैं, जैसे राजनीति में वंशवाद, भ्रष्टाचार, मंदिर ,जल संकट, सबकुछ ऊपरी-ऊपरी दिखाया गया है, और यही वजह है कि फ़िल्म किसी भी एक मुद्दे के साथ न्याय करने से बचती है, तो मेकर का सही टेक समझ नहीं आता है। माही गिल की बंगाली और हिंदी भाषा को मिक्स करके बोलना खटकता है।भाषणबाजी ज़्यादा है। साथ ही फिल्म का क्लाइमेक्स पूरी तरह मेलो ड्रामा है। चूंकि निर्देशक दक्षिण के हैं तो उन्होंने फिल्म का पूरा टोन वैसा ही रखा है, जो कि अच्छा नहीं लगता है। बैकग्राउंड स्कोर कहानी,निर्देशन और अभिनय पक्ष कमजोर है, हॉरर फिल्म के लिहाज से यह टेक्निकली भी बुरी फिल्म है।
अभिनय
भूमि पेंडेरकर ने अबतक का सबसे खराब परफोर्मेस दिया है, जबकि वह ऐसे किरदारों में काफी अच्छी तरह ढलती हैं, लेकिन इसमें वे अपने लुक और अभिनय दोनों से ही प्रभावित करने में नाकामयाब रही हैं। अरशद वारसी और अधिक बोर करते हैं। करण कपाड़िया को एक्टिंग का बुखार अब उतार लेना चाहिए, जिशु सेनगुप्ता और बाकी के किरदारों के लिए स्पेस ही नहीं था।
वर्डिक्ट
जिन्होंने तेलुगु वाली फिल्म देखी है, उन्हें और नए दर्शक दोनों को रास नहीं आने वाली है ये फिल्म।
Review By: अनु वर्मा
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