चार फरवरी को सीने में हुआ दर्द
हालांकि एक समय ऐसा भी आया जब डॉक्टरों ने उनके बचने की आशा छोड़ दी थी, लेकिन उनका प्रयास रंग लाया। डॉक्टरों का कहना है कि ऐसे मामले बहुत विरले ही होते हैं। आसिफ के पिता अलीगढ़ में ही चाय की दुकान चलाते हैं। इंजीनियरिंग करने के बाद आसिफ नौकरी की तलाश में दिल्ली आए थे और 15 दिन से यहीं हॉस्टल में रह रहे थे। चार फरवरी को सीने में दर्द (हार्ट अटैक) होने पर उनके दोस्त दोपहर करीब डेढ़ बजे उन्हें लेकर अस्पताल के इमरजेंसी में पहुंचे। इमरजेंसी में पहुंचने के बाद उसे गंभीर हार्ट अटैक हुआ।
धमनी में रक्त का थक्का जम गया
इस वजह से उसकी धड़कन व ब्लड प्रेशर का पता नहीं चल पा रहा था। इमरजेंसी की विभागाध्यक्ष डॉ. प्रियदर्शनी पाल सिंह ने कहा कि करीब सवा घंटे उन्हें सीपीआर (कार्डियक पल्मोनरी रिससिटेशन) दिया गया। इसे ह्रदय का मसाज भी कहा जाता है। इसके अलावा इलेक्ट्रिकल शॉक, दवाएं दी गई व वेंटिलेटर पर डाला गया। उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट के साथ ही कैथ लैब में ले जाया गया। यहां उन्हें फिर अटैक आया। फिर भी डॉक्टरों ने उसकी एंजियोप्लास्टी के जरिये मुख्य धमनी में स्टेंट डालकर ब्लॉकेज साफ किया। मुख्य धमनी में रक्त का थक्का होने के कारण आसिफ को हार्ट अटैक हुआ था।
मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी
अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग के वरिष्ठ कंसल्टेंट व संयोजक डॉ. एनएन खन्ना ने कहा कि एंजियोप्लास्टी के अलावा कई एड्रेनालाइन इंजेक्शन मरीज को देना पड़ा तब ब्लड प्रेशर में सुधार हुआ। कोमा में होने के कारण मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, ऐसे में मरीज का मस्तिष्क प्रभावित होने का खतरा था। इसलिए 35 डिग्री सेंटीग्रेड पर उनके मस्तिष्क को ठंडा कर उसमें ऑक्सीजन की जरूरत कम की गई। फिर भी वह दो दिन तक कोमा में रहे। डॉक्टर उन्हें ब्रेन डेड घोषित करने वाले थे, लेकिन तीसरे दिन जांच से पहले उसे होश आया। फिर धीरे-धीरे ह्रदय की कार्यक्षमता में भी सुधार होता चला गया। आसिफ स्वस्थ हैं और उन्हें गुरुवार को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
20 मिनट का सीपीआर काफी नहीं
डॉ. एनएन खन्ना ने कहा कि अक्सर देखा गया है कि हार्ट अटैक के मरीजों को 15-20 मिनट तक सीपीआर देने पर यदि ह्रïदय गति में सुधार नहीं होता है तो डॉक्टर सीपीआर देना बंद कर देते हैं, जबकि आसिफ के इलाज में करीब सवा घंटे तक ह्रïदय की मसाज की गई। इसलिए युवा मरीजों के मामले में 15-20 मिनट में यदि हार्ट बीट वापस न आए तो भी प्रयास बंद नहीं करना चाहिए। हार्ट बीट बंद होने के बावजूद ब्लॉकेज हटाने के लिए एंजियोप्लास्टी का फैसला किया गया और प्रयास सफल रहा। मरीज को जब अस्पताल लाया गया तो परिवार का कोई सदस्य उसके साथ नहीं था, पर अस्पताल ने इलाज के खर्च की परवाह नहीं की। बाद में उसके पिता से फोन पर संपर्क किया गया।
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