जब हम सब्जियां या फल काटते हैं, तो क्या उसे हिंसा (चोट) नहीं माना जाना चाहिए? अनुपम सिन्हा
अगर गहराई से देखें, तो सभी प्रकार के जीवन को चोट पहुंचाना हिंसा है। लेकिन दुर्भाग्य से, हमें ऐसा नहीं बनाया गया है कि हम हवा या मिट्टी से गुजारा कर सकें। इसी कारण हमें कुछ खाने की जरूरत रहती है और भूखे रहना भी खुद पर हिंसा करने जैसा है।
लिहाजा सवाल उठता है कि हम कम से कम हिंसा करके दूसरे जीवों के साथ सद्भाव से अपना जीवन किस प्रकार बिता सकते हैं। फलों, सब्जियों और अनाज की चेतना तथा तंत्रिका तंत्र, जानवरों की अपेक्षा, कम विकसित होते हैं। इसके अलावा जानवरों को खाने के लिए मारना ही उन पर की जाने वाली एकमात्र हिंसा नहीं है। हम उन्हें हिंसा द्वारा ही पालते हैं और पशुपालन का तो पूरा उद्योग ही जलवायु परिवर्तन में सबसे बड़ा योगदानकर्ता है।
ऐसे में हमारे सामने मौजूद फल, सब्जियां और अनाज खाने का विकल्प कम हिंसक है। यह भी महत्वपूर्ण है कि हम जितना संभव हो सके, उतना कार्बनिक खाद्य पदार्थ ही खाएं क्योंकि रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक हमारे शरीर को ही नहीं, बल्कि मिट्टी और जल संसाधनों को भी बहुत नुकसान पहुंचाते हैं।
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