गणेश चतुर्थी के दिन रात्रि मे चन्द्रमा का दर्शन करने से मिथ्या कलंक लगता है। जिसकी कथा इस प्रकार है- एक दिन गणेश जी इसी तिथि को स्वेच्छावश कहीं जा रहे थे, दैवयोग से उनका पैर कीचड़ में कहीं फिसल गया। इस घटना पर चन्द्र देव हंस पड़े। गणेश जी ने लीलार्थ क्रुद्ध होकर चन्द्रमा को शाप दे दिया कि जो आज के दिन तुम्हारा दर्शन करेगा, उसे मिथ्या कलंक लगेगा। अतः इस दिन चन्द्र दर्शन नहीं करना चाहिये।
कलंक निवारण हेतु पहली विधि
स्यमन्तक मणि की कथा श्रवण करें। कथा इस प्रकार है- श्रीकृष्ण की द्वारा पुरी में सत्राजित् ने सूर्य की उपासना से सूर्य समान प्रकाशवाली और प्रतिदिन आठ भार सुवर्ण देने वाली 'स्यमन्तक' मणि प्राप्त की थी।
एक बार उसे संदेह हुआ कि शायद श्रीकृष्ण इसे छीन लेंगे। यह सोचकर उसने वह मणि अपने भाई प्रसेन को पहना दी। दैवयोग से वन में शिकार के लिए गये हुए प्रसेन को सिंह खा गया और सिंह से वह मणि 'जाम्बवान' छीन ले गये। इससे श्रीकृष्ण पर कलंक लगा कि उन्होंने 'मणि के लोभ से प्रसेन को मार डाला।'
अन्तर्यामी श्रीकृष्ण जाम्बवान की गुहा में गये और 21 दिन तक घोर युद्ध करके उनकी पुत्री जाम्बवती को तथा स्यमन्तक मणि को ले आये। यह देख कर सत्राजित् ने वह मणि उन्हीं को अर्पण कर दी। कलंक दूर हो गया।
कलंक निवारण के लिए दूसरी विधि
निम्न मंत्र का का ११ पाठ करें-
सिंह: प्रसेनमवधीतसिंहो जाम्बवता हत:।
सुकुमारकुमारोदीस्तवह्येष स्यमन्तक:।।
— ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र, शोध छात्र, ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
Spiritual News inextlive from Spiritual News Desk