कानपुर। दीपावली आती है, तो अंधेरे पर उजाले की विजय के कई प्रसंग सामने आ जाते हैं। रावण की पराजय केवल रावण की पराजय नहीं थी। यह अंधकार की भी पराजय थी। इसलिए विजय के उत्सव की पूर्णता पर घर-घर दीप जल उठे और आज भी दीपावली की रात अमावस्या यानि अंधेरे की नहीं, बल्कि उजाले की कथा कहलाती है।
लक्ष्मी जी क्यों गईं भगवान विष्णु के साथ
दूसरी कहानी समुद्र मंथन की है, जो कहती है कि भगवती लक्ष्मी का प्राकट्य समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन हुआ और दानवों की तमस वृत्ति और देवताओं की भोग वृत्ति की उपेक्षा करके उन्होंने भगवान विष्णु का वरण किया। इसका संदेश यही था कि जो अपने पालन के लिए नहीं, बल्कि जगत के पालन के लिए अस्तित्व धरते हैं, लक्ष्मी जी वहीं सदा के लिए निवास करने चल पड़ती हैं।
एक और महत्वपूर्ण आख्यान नचिकेता और यमराज के संवाद का है। यमराज नचिकेता से वरदान में भूमि से लेकर स्वर्ण, पुत्र, पौत्र, आयु, राज्य आदि सभी कुछ मांग लेने के लिए कहते हैं, लेकिन नचिकेता आत्मतत्व का ज्ञान मांगते हैं। यह विलक्षण अवसर भी दीपावली ही था। आज भी हम दीपावली पर नचिकेता का स्मरण इसीलिए करते हैं, क्योंकि यह परम प्रकाश के ज्ञान को पाने का भी पर्व है। दीपावली के साथ-साथ जब हम बार-बार प्रकाश का उल्लेख करते हैं, तो यह प्रश्न भी उठता है कि यह प्रकाश आखिर रहता कहां है?
संशय ही ढक लेता है हमारे भीतर के प्रकाश को
माण्डूक्य उपनिषद कहता है- प्रभातं भवति स्वयं, अर्थात जो आत्म तत्व है वह स्वयं प्रकाशित है। ऐसे में प्रश्न उठते हैं कि यदि वही उजाला हमारे भीतर है, तो अंधकार की सत्ता का इतना विस्तार क्यों है? यह अंधकार इतना भयावह क्यों है? उजाला हर वक्त मौजूद होने के बाद भी कहां खो जाता है? माण्डूक्य उपनिषद उत्तर देते हुए कहता है कि हमारा संशय ही हमारे प्रकाश को ढक लेता है और हम प्रकाश के अधिकारी होकर भी अंधकार से जूझते रहते हैं। सामर्थ्य की बात करें, तो भारत के चिंतन ने एक और अद्भुत प्रतीक हमारे सामने रख दिया और यह प्रतीक है दीपक का। जरा सोचें, तो लगता है कि कहां कार्तिक अमावस्या की घोर गहन रात्रि और कहां किसी आंगन में जलता हुआ एक नन्हा-सा दीपक। यही नन्हा दीपक घोर गहन रात्रि के सामने अपने प्रकाश को पा जाता है, तो अंधेरा हारने लगता है। अमावस्या रोशनी का पर्व बनकर दीपावली हो जाती है।
विश्वास कर लो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं
महत्वपूर्ण बात यह भी है कि यह पर्व साधारण के असाधारण होने की भी संभावना को आकार देता है। राम कथा में ताकतवर तो रावण दिखाई देता है। इतना ताकतवर कि देवताओं से लेकर ऋषि-मुनियों तक का जीवन दूभर हो चला था। देवता उसका सामना नहीं कर पा रहे थे कि अचानक कोई आता है और जंगल में रहने वाले बंदर-भालुओं में यह विश्वास भर देता है कि वे रावण को हरा सकते हैं। हुआ भी यही और परम प्रतापी रावण बंदर भालुओं के साथ आए राम से हार जाता है।
काली अमावस्या भी बन जाती है प्रकाश का पर्व दीपावली
समुद्र मंथन में दानवों का बल बहुत महत्वपूर्ण था, तो देवताओं की बुद्धि, लेकिन लक्ष्मी जी चल पड़ती हैं उनके साथ, जो अपने पालन के लिए नहीं, बल्कि सबके पालन के लिए हैं। नचिकेता तो बहुत कम उम्र का बालक था, लेकिन उसके सामने तो यमराज भी नहीं टिकते। ये सारे चरित्र साधारण में असाधारण रचते हैं। इसलिए इनकी स्मृतियां पर्व बन जाती हैं। हमें याद रखना चाहिए कि दीपावली अकिंचन के सम्मान का पर्व है। वैसे देखें तो दीपक का सामर्थ्य कितना कम है। कहां वर्ष की सर्वाधिक गहरी अमावस्या का विस्तार और कहां एक छोटे से दीपक का प्रकाश। सामर्थ्य के शिखर पर बैठी अमावस्या न पूज्यनीय है और न अनुकरणीय। यह सम्मान तो मिट्टी के छोटे से दीपक के प्रकाश को प्राप्त है, जो अपनी मिट्टी की देह में सामर्थ्य का घी सहेजता है और फिर श्रद्धा की बाती को वह सहेजा हुआ सारा सामर्थ्य धीरे-धीरे सौंपता है। फिर अग्नि का स्पर्श पाकर बाती जलती है, तो प्रकाश दूर-दूर तक फैल जाता है। हमारे चिंतन ने इस दीप ज्योति को नमन करते हुए कहा, शुभम करोति कल्याणं आरोग्य धन सम्पदां शत्रु बुद्धि विनाशाय दीप ज्योति नमोस्तुते।।
अशोक जमनानी
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