कानपुर। इसी तरह दीपक का अर्थ है छोटा या बड़ा दिया। यह दूर से समझ में नहीं आता, लेकिन गरम होने का एहसास जरूर देता है। जैसे दीपक राग सुनकर शरीर गरम हो जाता है, वैसे ही दीपक रोशनी के साथ साथ कुछ न कुछ गर्मी भी प्रदान करता है।
कीट-पतंगों से निजात और खुशी का इजहार
हेमंत ऋतु के प्रारंभ में प्रचुर कीट-पतंग जन्म लेते हैं, जो फसल को क्षति पहुंचाते हैं। प्रत्येक जीव का अपना संस्कार होता है। सभी मनुष्य अपने-अपने तरीके से चलते हैं। मनुष्यों को एक कंपार्टमेंट में डाला नहीं जा सकता है। घेरा अगर टूटा हो, तो हर बैल बगान में घुस जाएगा। उसी तरह कीट-पतंगों का एक स्वाभाविक धर्म है-आग देखते ही उसकी ओर दौड़ पड़ते हैं। ये कीट-पतंग फसल नष्ट कर देते हैं। इसलिए चतुर्दशी की रात को प्रदीप जला दिए जाते थे। वे उधर दौड़ पड़ते और जलमरते। इस तरह फसलों की उनसे रक्षा होती है। साधारण ढंग से कोई बात कहने पर मनुष्य उस पर ध्यान नहीं देता। कुछ अलंकृत करके कहने पर वह उसे मान लेता है। चतुर्दशी तिथि को सबसे अधिक अंधकार रहता है। इसमें अगर बत्ती जलाई जाए, तो सभी बत्ती के पास आकर जलकर मर जाएंगे और फसल बच जाएगी। यही असली चीज है।
श्रीकृष्ण की द्वारका को बचाने वाली सत्यभामा को नमन
कथा है कि एक बार श्रीकृष्ण द्वारका से बाहर गए थे। उसी समय नरकासुर नाम के एक अनार्य सरदार ने द्वारका पर आक्रमण कर दिया। उस समय श्रीकृष्ण की प्रथमा महारानी सत्यभामा ने ससैन्य उसका मुकाबला किया था। युद्ध में नरकासुर की मृत्यु हुई थी। उस दिन चतुर्दशी तिथि थी। इस 'नरक-चतुर्दशी' तिथि को चौदह प्रदीप जलाकर उत्सव मनाया गया था और दूसरे दिन अमावस्या को सत्यभामा की पूजा की गई। सत्यभामा को 'महालक्ष्मी' देवी की संज्ञा प्रदान की गई है। दिवाली पर पश्चिम भारत यानी गुजरात- राजस्थान के लोग उस समय 'महालक्ष्मी' की पूजा करेंगे। अर्थात् वो 'सत्यभामा' की पूजा करते है।
द्वारा : श्री श्री आनन्दमूर्ति।
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