जिद, जुनुन और जज्बे ने दिलाई मंजिल
डॉ. पंकज राजहंस शुरू से ही खुद की पहचान बनाने के लिए अपना काम करना चाहते थे। पहले स्कूल, कॉलेज और फिर दिल्ली इंजीनियरिंग कॉलेज से एमसीए की डिग्री हासिल करने के बाद ये निकल गए एक सुनहरे करियर की तलाश में। मल्टी नेशनल कंपनी में जॉब मिली। जॉब तो की, लेकिन मन नहीं लगा। क्योंकि उनको पता था कि ये उनकी मंजिल नहीं है, बस एक रास्ता हो सकता है। उनका सपना तो हमेशा से कुछ अलग करने का ही था। इस बीच रेलवे में भी उन्हें जॉब मिल गई. लेकिन यह नौकरी भी उन्हें अपनी मंजिल से दूर नहीं कर पाई. लंबी उधेड़बुन के बाद आखिर उन्होंने डिसीजन लिया कि अब देर नहीं करेंगे। अपने सपने को हकीकत में तदील ही करेंगे। इसके बाद सन 2000 में वह खास दिन आ भी गया जब डॉ. पंकज ने माइक्रोटेक इंस्टीट्यूट की स्थापना की। बस यहीं से शुरू हो गया कुछ अलग करने का सफर. डॉ. राजहंस कहते हैं कि अब उन्हें यह आभास हुआ है कि वह मंजिल के करीब हैं।
प्रोफाइल
डॉ. पंकज राजहंस
पद: प्रेसीडेंट एंड एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर, माइक्रोटेक कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी
शिक्षा: पीएचडी, मैक्सिकन यूनिवर्सिटी
भाई: नीरज राजहंस, जनरल सेके्रट्री
और बढ़ता गया साम्राज्य
डॉ. राजहंस के सामने चुनौती थी सन 2000 में लगाए पौधे को वटवृक्ष बनाने की। इसमें माता-पिता व परिवार का सहयोग मिला। भाई नीरज राजहंस भी पीछे से ही सही पर कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। इसी का परिणाम है कि उन्होंने अपनी मंजिल की ओर जो कदम बढ़ा दिया वह आज तक रुका नहीं है। 2003 में माइक्रोटेककॉलेज ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी की शुरुआत हुई. प्रेसीडेंट व एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. पंकज राजहंस ने बताया कि इस कॉलेज में माखनलाल चतुर्वेदी व पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी के कोर्स संचालित होना स्टार्ट हुए. यह तो महज शुरुआत थी। जिस एरिया में साधारण कॉलेज का संचालन मुश्किल हो वहां प्रोफेशनल कॉलेज खोलना किसी चैलेंज से कम नहीं था। लेकिन डॉ. पंकज ने एक बार जो कदम बढ़ा दिया तो पीछे नहीं मुड़ कर नहीं देखा। उन्होंने शहर से दूर पिछड़े एरिया केराकत में 2013 में माइक्रोटेक कॉलेज की स्थापना की। फिर 2014 में आईटीआई व डिप्लोमा कॉलेज की शुरुआत हुई. यही नहीं 2015 में वाराणसी के बड़ागांव, बराई में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से एफिलिएटेड माइक्रोटेक कॉलेज की स्थापना की। जहां बीकॉम, बीबीए, बीसीए सहित बीएससी आईटी की पढ़ाई होती है।
डर लगा पर हिम्मत नहीं हारी
डॉ. पंकज ने बताया कि एक बार तो मन में यह सवाल उठा कि हम जिस मंजिल की ओर कदम बढ़ा रहे हैं वह मिल भी पाएगी या नहीं। कॉलेज खोलने के लिए कैंपस, इंफ्रास्ट्रक्चर, एफिलिएशन, टीचर्स और फिर प्रोफेशनल कोर्स में पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स का एडमिशन. एकदम नया एक्सपीरिएंस था। पर मैं पीछे मुडऩे में विश्वास नहीं करता। बस यही मन में था कि जब दूसरे कर सकते हैं तो मैं भी उसे कर के दिखा सकता हूं। देखते ही देखते कॉलेज के प्रेसीडेंट व एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर तक की जिम्मेदारी मिल गई. तब तो इसे हर हाल में साबित करना ही था। और आज माइक्रोटेक की तरक्की किसी से छिपी नहीं है। यहां से पास आउट 10,000 से अधिक स्टूडेंट्स आज विभिन्न क्षेत्रों में अपने साथ संस्था का नाम ऊंचा कर रहे हैं।
गुरु और भाई का सहयोग
कई बार लगा कि यह काम मेरे लिए नहीं है। मैं नहीं कर पाउंगा, पर यह भी सोचता था कि लोग मुझे अयोग्य समझेंगे। मेरी जिद को मेरे गुरु डॉ. आरपी सिंह व छोटे भाई नीरज राजहंस ने हौसला दिया। डॉ. पंकज को विश्वास था कि एक न एक दिन मंजिल जरूर मिलेगी। डॉ. पंकज ने बताया कि शुरुआत में कॉलेज हैंडल करने का एक्सपीरिएंस नहीं था। लेकिन गुरु और समय ने सब कुछ सिखा दिया। इसमें कॉलेज के जनरल सेक्रेटरी व छोटे भाई नीरज का भी बहुत बड़ा रोल है।
गांव तक पहुंचा मिशन
पंकज कहते है कि दोनों भाईयों का एक ही मिशन है। हम गांव व पिछड़े एरिया के स्टूडेंट्स को क्वालिटी एजुकेशन देने में जुट गए हैं। कॉलेज में क्वालिटी एजुकेशन का ही परिणाम है कि यहां के बीएससी कंप्यूटर साइंस सहित अन्य कोर्स में सभी सीट एडमिशन स्टार्ट होते ही फुल हो जाती हैं। हमारे स्टूडेंट्स की आज टीसीएस में बड़ी डिमांड है। इसके अलावा अन्य मल्टीनेशनल कंपनी में भी संस्था के स्टूडेंट्स को बड़ी संख्या में जॉब का मौका मिल रहा है।
अचीवमेंट्स
शिक्षा शिरोमणि अवार्ड, 2009
शिक्षा भारती अवार्ड, 2010
नेशनल एजुकेशन एक्सीलेंस अवार्ड, 2013-14
भारत निर्माण अवार्ड, 2015
एसोचेम इंडिया अवार्ड, 2015, 2016 व 2017
ये है पसंद
मूवी: वीर जारा
खाना: वेजीटेरियन
हॉबी: क्रिकेट, ट्रैवेलिंग, रीडिंग
पसंदीदा प्लेस: स्विट्जरलैंड
पसंदीदा गाड़ी: मर्सिडीज व ऑडी
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