कहानी :
इस बार पावर और लस्ट के बीच मे झूलता हुआ देवदास है इस कहानी का नायक। पारो और चांदनी हैं उसके पार्टनर इन क्राइम।
समीक्षा :
देवदास देखते हुए मुझे बार बार विशाल भारद्वाज की मकबूल , ओमकारा और हैदर की याद आ रही थी, नहीं नहीं कहने का मतलब ये नहीं कि ये फिल्म शक्सपेर के किसी उपन्यास पे आधारित है, बस फिल्म का ट्रीटमेंट काफी कुछ मिलता है। देवदास जो ओरिजिनली एक प्रेम और त्याग की कहानी है अगर उल्टी कर दी जाए तो बनेगी दासदेव। ये शायद सुधीर जी का अपना तरीका है इस कहानी को सुनाने का पर इस चक्कर मे पूरी फिल्म बेतरतीब इधर उधर भागने लगती है और फिल्म इतनी कंफ्यूसिंग हो जाती है कि समझना मुश्किल हो जाता है कि आखिर क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है। फिल्म की कहानी बढ़िया है पर फिल्म का स्क्रीनप्ले बिल्कुल रायते की तरह फैला है, इसी रायते पे अंत मे आके दर्शक का पैर फिसल जाता है और दर्शक चुटहिल होकर फिल्म के अंत मे गिर पड़ते हैं। मिश्रा जी की हर फिल्म की तरह ये फिल्म डार्क है और इसमें इमोशन्स भी उतने ही डार्क हैं।
अदाकारी :
राहुल भट्ट देवदास के किरदार के साथ न्याय करने की पूरी कोशिश करते हैं पर अफसोस ऐसा हो नहीं पाता और उनके किरदार के साथ आपको ज़रा भी लगाव नहीं होता, सेम यही प्रॉब्लम ऋचा के साथ भी है। अदिति राव हैदरी इस फिल्म का सबसे इंट्रस्टिंग किरदार निभाती हैं और वही अकेली हैं जो उसके साथ न्याय भी करती हैं। सौरभ शुक्ला और विनीत का काम अच्छा है।
वर्डिक्ट:
कुलमिलाकर ये फिल्म से देवदास जैसी कोई आशा लगाकर न जाएं , ये एक औसत से थोड़ा ऊपर की फिल्म है जो एक बार देखी जा सकती है अगर आप सुधीर मिश्रा और अदिति राव हैदरी के फैन हों।
रेटिंग : 3 STAR
Review by: Yohaann and Janet
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