सोशल मीडिया और खास कर फ़ेसबुक पर कुछ लोगों ने उन्हें वैज्ञानिक कहे जाने पर भी सवाल उठाए हैं. पेश हैं कुछ लोगों की प्रतिक्रियाएं।
कविता श्रीवास्तव
पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम का महिमा मंडन मुझे काफ़ी असुविधाजनक लगता है। इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि उनकी अगुवाई में भारत में परमाणु परीक्षण हुआ। पर इसके बाद ही पूरे दक्षिण एशिया में तनाव बढ़ गया।
सेना के मामले में भी उन्होंने देश को नुक़सान ही पंहुचाया। भारत की सैन्य ताक़त पाकिस्तान से नौ गुणे ज़्यादा थी। 11 मई 1998 को हुए परमाणु परीक्षण के बाद पाकिस्तान ने इस बढ़त को भी पाट दिया।
उन्हें वैज्ञानिक कह कर न बुलाएं। वे एक इंजीनियर थे, टेक्नोक्रेट थे। बच्चों को दिए उनके भाषणों में भी सोचने की आज़ादी, प्रयोग, क्षमाशीलता, आत्मचिंतन वगैरह की कमी ही रहती थी। मैं उनकी फ़ैन नहीं हो सकती।
कुलदीप कुमार
सुपर-नेश्नलिस्ट एपीजे अब्दुल कलाम को कैप्टन लक्ष्मी सहगल के सामने खड़ा कर दिया गया। सिर्फ नासमझ भारतीय ही कलाम को महान वैज्ञानिक कह सकते हैं। क्या कोई शख्स कलाम का एक आविष्कार बता सकता है?
हो सकता है कि वे एक महान व्यक्ति और साधारण जीवन जीने वाले इंसान रहे हों। कोई उनके व्यक्तिगत गुणों को नहीं नकार सकता। पर बेमतलब का छाती फुलाने को कोई अर्थ नहीं है। किसी भी राष्ट्रपति की मृत्यु पर राष्ट्रीय शोक मनाया जाता है और हमें भी शांति और गरिमा से शोक मनाना चाहिए।
प्रमोद रंजन
पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर अब्दुल कलाम एक अच्छे आदमी थी, एक सीधे-साधे मानुष। हां, बच्चों और किशोरों को भी वे प्रिय थे। लेकिन न तो उनमें वैज्ञानिक चेतना थी, न ही एक अच्छे राष्ट्रपति होने के गुण।
2005 में बिहार में राज्यपाल बूटा सिंह की सिफ़ारिश पर लगाया गया राष्ट्रपति शासन उनकी राजनीतिक नासमझी का एक स्पष्ट नमूना था।
दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के लिए जहाँ वे शंकराचार्य के चरण छूते थे वहीं दूसरी ओर खुद को पांचों वक्त का नमाज़ी भी दिखाना चाहते थे। श्रद्धांजलि के शोर में सच्चाई को दफ़न नहीं होने देना चाहिए।
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