-फीस नहीं जमा करने पर कट चुका था स्कूल से नाम

-दीपक ने ससुराल में खाया था कसम, नहीं रखेंगे बेटियां संग यहां कदम

दीपक के लिए बेटियां बेटों से बढ़कर थीं. उनकी हर फरमाइश पूरी करने की कोशिश करता था. उसकी इच्छा थी कि बेटियां अच्छी शिक्षा प्राप्त करें. इसलिए कक्षा एक में नव्या, एलकेजी में अदिति और यूकेजी में रिया का एडमिशन घर के पास ही एक प्राइवेट स्कूल में कराया था. आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के चलते बेटियों की फीस समय से जमा नहीं हो पाती. अंतत: स्कूल से बेटियों का नाम काट दिया गया. कई बार स्कूल में पहुंचकर दीपक ने मिन्नतें की और हाथ भी जोड़ा लेकिन स्कूल प्रबंधन का दिल नहीं पसीजा और बेटियों का नाम काटकर स्कूल से बाहर कर दिया. कुछ माह से तीनों बेटियां घर पर ही पढ़ाई कर रही थी. 'बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ' का स्लोगन दोहराने वालों ने भी इनकी सुधी नहीं ली.

बेटियों पर छिड़कता था जान

दीपक बेटियों पर जान छिड़कता था, उनकी हर इच्छा पूरी करने के लिए प्रयासरत रहता था. आर्थिक तंगी में हाथ दबा होने के बावजूद बेटियों के लिए कोशिश करता था कि उनकी हर फरमाइश पूरी करे. यही कारण था कि बेटियां अक्सर दीपक के पास ही रहना पसंद करती थी. पत्‍‌नी से अनबन हुआ तो आठ मई को दोपहर में पत्नी अनीता को मायके पहुंचा आया. बताया जाता है कि तभी ससुराल में भी दीपक की जमकर कहासुनी हुई थी. दीपक ने पत्‍‌नी के सामने कसम खाया था कि हमारी बेटियां और मैं कभी दरवाजे पर कदम नहीं रखेंगे. इसी आवेश में उसने तीन पैकेट सल्फास खरीदा और घर आकर बेटियों सहित अपनी जिंदगी को खत्म कर लिया.

मां को तलाश रही थीं आंखें

हॉस्पिटल में तपड़ रहीं दीपक की बेटियों मां को ही पुकार रही थीं. परिवारजन यही बेटियों का दिलासा दे रहे थे कि मम्मी को सूचना दे दी गई है, बस आ रही हैं. मगर, बेटियों की अपने मां को देखने की हसरत अधूरी रह गई. कबीरचौरा से बीएचयू ट्रामा सेंटर पहुंचने के बाद चिकित्सकों ने पिता और तीन बेटियों को मृत घोषित कर दिया.