टोक्यो (राॅयटर्स)। नेचर में सोमवार को शोधकर्ताओं ने रिपोर्ट किया है कि कोरोना वायरस के माइल्ड संक्रमण से ठीक होने के बाद हमारा इम्युन सिस्टम महीनों बाद भी कोविड- 19 को नहीं भूलता है। एक बार ब्लड में एंटीबाॅडी कम हो जाए तो बोन मैरो में इम्युन सेल्स बची रहती हैं जो जरूरत पड़ने पर बड़ी मात्रा में कोरोना वायरस के खिलाफ नई एंटीबाॅडी बनाने को तैयार रहती हैं। संक्रमण होने के बाद थोड़े दिनों तक जीवित रहने वाली इम्युन सेल्स जल्दी से बड़ी मात्रा में प्रोटेक्टिव एंटीबाॅडी बना देती हैं। जैसे ही इम्युन सेल्स मर जाती हैं एंटीबाॅडी का स्तर कम हो जाता है। लेकिन कुछ मात्रा में इम्युन सेल्स प्लाजमा में जीवित रहती हैं जो संक्रमण खत्म होने के बाद बोन मैरो में चली जाती हैं तथा वहीं बनी रहती हैं।
लंबे समय तक बीमारी के खिलाफ बनाती हैं एंटीबाॅडी
सेंट लुइस में वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के अली एलेबेडी ने इस बारे में विस्तार से जानकारी दी। उनकी टीम ने सात महीने पहले कोविड-19 के माइल्ड संक्रमण के मरीज रह चुके एक व्यक्ति के बोन मैरो के सैंपल्स में इम्युन सेल्स की मौजूदगी पाई है। 15 ठीक हो चुके मरीजों के प्लाजमा सेल्स, जो लंबे समय तक जीवित रहते हैं, उनमें से कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबाॅडी बनीं। 15 में से पांच की संक्रमण के 11 महीनों बाद बोन मैरो की बायोप्सी में पाया गया कि उनके प्जाजमा सेल्स एसएआरएस-कोव-2 के खिलाफ एंटीबाॅडी बना रही हैं। एलेबेडी ने एक स्टेटमेंट में बताया कि ये सेल्स बोन मैरो में जाकर बैठ जाती हैं तथा जब भी जरूरत हो एंटीबाॅडी का निर्माण शुरू कर देती हैं। संक्रमण ठीक होने के बाद भी वे लंबे समय तक बीमारी के खिलाफ काम करती हैं।
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