पटना (ब्यूरो)। पिछले कुछ महीने से बीमार महान गणितज्ञ बिहार विभूति वशिष्ठ नारायण सिंह ने गुरुवार को पटना के पीएमसीएच में अंतिम सांस ली। वशिष्ठ बाबू जैसे महापुरुष के लिए पटना यूनिवर्सिटी ने नियम बदलकर उन्हें एक साल में ऑनर्स की डिग्री दी थी। लेकिन देश ने उनकी प्रतिभा का सही इस्तेमाल नहीं कर पाया और गुमनामी के गणित में खो गए जीजियस में जीनियस। उन्होंने बर्कले यूनिवर्सिटी, कोलंबिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैथेमेटिक्स और नासा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

नहीं की डॉ. केली की बेटी से शादी

देश प्रेम की भावना से भरे डाॅ. वशिष्ठ नारायण सिंह ने अमेरिका के प्रोफेसर डाॅ. केली की बेटी के साथ शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया था। 1971 में वे अमेरिका से गांव लौट आए थे। आठ जुलाई 1973 में शादी वंदना रानी सिंह से हुई। बचपन से ही मेधावी रहे डाॅ. वशिष्ठ 1958 में नेतरहाट की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान हासिल किए थे। वर्ष 1963 में हायर सेकेंड्री में भी सर्वोच्च स्थान मिला। 1964 में इनके लिए पीयू के नियम में संशोधन करना पड़ा था। सीधे ऊपर की क्लास में दाखिला मिला था जहां बीएसएसी ऑनर्स में सर्वोच्च स्थान मिला। 8 सितंबर, 1965 को बार्कले यूनिवर्सिटी में दाखिला हुआ। 1966 में नासा और 1967 में कोलंबिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमेटिक्स का निदेशक नियुक्त किए गए। बार्कले यूनिवर्सिटी ने उन्हें जीनियस में जीनियस कहा था।

सिपाही थे पिता लाल बहादुर सिंह

वशिष्ठ नारायण सिंह के पिता लाल बहादुर सिंह सिपाही थे। पुत्र को अच्छी शिक्षा दिलाने की स्थिति में नहीं थे। अपनी प्रतिभा के बल पर परीक्षाओं में सर्वोच्च स्थान हासिल किया। तब कॉपी जांचने वालों ने कहा था कि उन्हें कोई पढ़ा सके ऐसा कोई टीचर नहीं। हर परीक्षा में सर्वोच्च स्थान पाया।

राजकीय सम्मान के साथ पैतृक गांव में अंतिम संस्कार

विक्षिप्त हालत में मिले थे वशिष्ठ बाबू

उल्लेखनीय है कि 1994 में छपरा के डोरीगंज बाजार में विक्षिप्त और गुमनामी की हालत में गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह बसंतपुर के कमलेश राम और सुदामा राम को मिले थे। दूरसे दिन दोनों युवक वशिष्ठ बाबू के परिजनों को लेकर डोरीगंज बाजार पहुंचे। परिजनों ने पहचान की और घर ले आए। उस समय महान गणितज्ञ मीडिया की सुर्खियों में आए। सुदामा के अनुसार वे अपनी बेटी की विदाई में पलंग समेत अन्य फर्नीचर खरीदने कमलेश के साथ डोरीगंज बाजार पहुंचे थे। वहां गांव के वैज्ञानिक चाचा यानी महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह से मुलाकात हुई थी।

मिलने पहुंचे थे तत्कालीन सीएम लालू

तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद ने वशिष्ठ बाबू का इलाज कराने के साथ ही उनके भाई हरिश्चंद्र नारायण सिंह, भतीजे संतोष सिंह और अशोक सिंह समेत उन्हें खोजने वाले गांव के कमलेश राम और सुदामा राम को नौकरी दी थी। भाई हरिश्चंद्र नारायण सिंह समाहरणालय में हैं, भतीजा संतोष सिंह अंचल कार्यालय पीरो और अशोक सिंह पुलिस विभाग में कार्यरत हैं। ग्रामीण कमलेश राम को समाहरणालय और सुदामा राम को आपूर्ति विभाग में नौकरी मिली है। पांचों आज भी सेवारत हैं। वशिष्ठ बाबू तीन भाइयों में बड़े थे। उनसे छोटे अयोध्या प्रसाद व तीसरे भाई हरिश्चंद्र नारायण सिंह हैं।

पूरे विश्व में देश का मान बढ़ाया

उनके निधन पर सीएम नीतीश कुमार ने गहरा शोक जताया है। वे श्रद्धांजलि अर्पित करने वशिष्ठ नारायण सिंह के आवास पहुंचे। उन्होंने वशिष्ठ बाबू के पार्थिव शरीर पर माल्यार्पण कर परिजनों को ढाढ़स बंधाया। राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा। इससे पहले शोक संदेश में सीएम ने कहा कि वशिष्ठ नारायण सिंह ने न सिर्फ अपना नाम रोशन किया बल्कि पूरे विश्व में भारत और बिहार का मान बढ़ाया। उनके निधन पर हम सभी दु:खी है। यह बिहार एवं देश के लिए अपूरणीय क्षति है। जयकुमार सिंह, छोटू सिंह और शैलेंद्र प्रताप सिंह आदि उनके आवास पहुंचे थे।

प्रसिद्ध गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन पर पीएम मोदी ने शोक जताया

खंडवा से हुए थे गायब

बसंतपुर से मध्यप्रदेश में इलाज कराने के लिए गणितज्ञ डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह को उनके छोटे भाई अयोध्या सिंह अपनी पत्नी के साथ 1989 में ट्रेन से ले जा रहे थे। ट्रेन में रात में दोनों को नींद लग गई। पैसेंजर्स ने बताया कि साथ वाले आदमी यानी वशिष्ठ बाबू खंडवा स्टेशन पर ही उतर गए थे। दोनों लौटकर खंडवा पहुंचे और खोजबीन की, परंतु उनका कहीं पता नहीं चला। उसी समय से महान गणितज्ञ मानसिक रूप से विक्षिप्त होने के बाद पांच वर्ष तक गुमनामी की जिंदगी जीते रहे।

पांच भाई-बहनों में सबसे बड़े थे वशिष्ठ बाबू

बसंतपुर निवासी लाल बहादुर सिंह और लहासो देवी के तीन पुत्र व दो पुत्रियां थीं हैं। डाॅ. वशिष्ठ नारायण सिंह अपने दो छोटे भाईयों अयोध्या सिंह और हरिश्चन्द्र नारायण सिंह से बड़े थे। वहीं दो बहनें सीता देवी व मीरा देवी हैं।

कॉपियां दिखा फफक पड़े छोटे भाई हरिश्चन्द्र

डाॅ. साहब के छोटे भाई हरिश्चन्द्र नारायण सिंह ने उनके द्वारा लिखे गए गणित के सूत्रों की कॉपियों को दिखाया। फिर अचानक फफक कर रो पड़े- भइया यही सब कॉपी पर लिखत रहन। आज हमनी के उ छोड़ के चल दिहलन। अब के लिखी इस सब कॉपी पर। फिर उन्होंने उनके कमरे में उन कॉपियों का रख दिया। डाॅ. वशिष्ठ नारायण सिंह दिन-रात गणित के सूत्रों में उलझे रहते थे। दिन हो या रात जब मन किया कॉपी खोलकर पेन से सूत्र लिखना शुरु कर देते। यही नहीं मन किया तो अपने घर की दीवारों पर भी गणित को सूत्र लिख डालते। ग्रामीण सत्यनारायण सिंह के अनुसार उनकी मां प्रतिदिन उनको कॉपी व खल्ली देती थीं। जब वे गांव घूमने निकलते तो बिजली के खंभों पर भी गणित के सूत्र लिखते थे। ज्ञात हो कि वे बिजली के पोल, जमीन और दीवार कहीं भी गणित के सूत्र लिख देते थे। दीवारों पर उनके द्वारा लिखे गए गणित के सूत्र आज भी विद्यमान हैं।

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