हम बात कर रहे हैं बिजली से चलने वाली फोल्डिंग कारों की, जो न सिर्फ भीड़ से बजबजाते हुए हमारे शहरों के लिए फायदेमंद हैं बल्कि ग्रीनहाउस उत्सर्जन को रोकने में भी कामयाब साबित होने जा रही हैं.

जनवरी 2012 में जब स्पेन के एक कारोबारी उपक्रम हिरिको ड्राइविंग मोबिलिटी समूह ने पहली फोल्डिंग माइक्रो-ईवी कार हिरिको फोल्ड को दुनिया के सामने पेश किया था.

उस वक्त किसी को विश्वास नहीं हुआ था कि विचार के स्तर पर अपने जन्म के महज़ दस साल के भीतर यह सपना साकार हो जाएगा. बीते मार्च महीने में दुनिया के सबसे पुराने कार शो जेनेवा मोटर शो में जब दोबारा यह कार दिखी, तो यह उत्पादन के चरण तक पहुंच चुकी थी. भारत में इसकी कीमत नौ लाख रुपए से कुछ कम आंकी गई थी.

सिर्फ डेढ़ फुट की
अब ताज़ा खबर यह है कि हिरिको को अपने घर में ही तगड़ी टक्कर मिल रही है. हालिया चुनौती स्पेन के कास्पल समूह की ओर से आई है. इसकी नई फोल्डिंग कार को डिज़ाइनर फ्रा पोदादेरा ने डिज़ाइन किया है.

हिरिको की कुल लंबाई ढाई फुट है और इसे मोड़ने के बाद यह सिर्फ डेढ़ फुट की रह जाती है. जबकि पोदादेरा की डिज़ाइन की हुई कार मुड़ने के बाद छह फुट तीन इंच लंबी रहती है. इसकी खूबी यह है कि हिरिको के मुकाबले इसकी अधिकतम गति 66 मील प्रतिघंटा है जबकि हिरिको की 31 मील प्रतिघंटा ही है.

महानगरों के लिए विशेष तौर पर बनाई गई हिरिको फोल्ड के एक प्रमुख डिज़ाइनर रायन चिन कहते हैं, ''हमारा उद्देश्य शहरों और वाहनों के रिश्ते को बुनियादी रूप से बदलना था. सवाल यह नहीं कि हम अपने शहरों को गाड़ियों के हिसाब से कैसे तैयार करते हैं, बल्कि हमारी चुनौती यह थी कि अपने शहरों के हिसाब से वाहनों को हम कैसे अनुकूलित कर सकते हैं.''

दस साल में क्रांति
सिटी कार का विचार पहली बार जनरल मोटर्स द्वारा प्रायोजित एक डिज़ाइन कार्यशाला मीडिया लैब में 2003 में जन्मा था. इसके बाद वास्तुकला, शहरी नियोजन, कंप्यूटर विज्ञान और मेकैनिकल इंजीनियरिंग आदि विविध क्षेत्रों के लोगों को एक स्टूडियो में इस परियोजना पर काम करने के लिए साथ लाया गया.

कई दौर के विमर्श के बाद बिजली से चलने वाली एक छोटी सी कार बनाने का फैसला लिया गया जिसे मोड़ कर एक कतार में पार्किंग में खड़ा किया जा सके और जिसे एशिया, अमरीका व यूरोप के शहरों में एक से ज्यादा लोग इस्तेमाल कर सकें. यहां से शुरू हुआ कारों के योग का युग. फोल्डिंग कार आज बाज़ार में उतरने की स्थिति में आ चुकी है.

भारत में टाटा ने भी ऐसी ही एक कार बनाई है हालांकि उसकी कीमत दस लाख रुपए बताई जा रही है. ज़ाहिर है, हिरिको की कारें सस्ती होने के कारण भारतीय उपभोक्ताओं के लिए ज्यादा किफायती होंगी, लेकिन इस तरह की कारों के साथ एक दिक्कत भी है.

'पहली और आखिरी पहेली'
ऐसी कारें तैयार करने वालों के सामने एक बड़ा सवाल यह आ खड़ा हुआ है कि ऐसे लोगों को कैसे इन कारों के इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा जो सार्वजनिक परिवहन लेने के लिए बस अड्डे या मेट्रो स्टेशन के करीब न रहते या काम करते हों.

शहरी योजनाकार इस समस्या को 'पहली और आखिरी पहेली' का नाम देते हैं. बर्कले में कैलिफोर्निया युनिवर्सिटी की शहरी और परिवहन योजनाकार एलिज़ाबेथ डीकिन कहती हैं, ''जैसे-जैसे पिछले 50 साल में शहरों का विस्तार हुआ है, पहली और आखिरी पहेली वैसे-वैसे और कठिन होती गई है.''

माना जा रहा है कि इस समस्या से निपटने का एक तरीका यह हो सकता है कि फोल्डिंग कारों का बेड़ा शहर में कुछ तय स्थानों पर रखा जाए जहां उन्हें चार्ज करने वाले या फिर किराये पर उठाने वाले स्टेशन भी हों. इससे लोग आसानी से ऐसे वाहन लेकर बस अड्डे या मेट्रो तक जा सकेंगे और नतीजतन सड़कों पर वाहनों का भार कम होगा. इससे शहरों की हवा भी साफ सुथरी बनी रह सकेगी.

दिल्ली दूर नहीं
फिलहाल हिरिको समूह की योजना ऐसी कारें यूरोप और दूसरे चुनिंदा शहरों में बेचने की है. विशेष तौर पर चुने गए स्थानों में बार्सिलोना, बर्लिन, माल्मो, सेन फ्रांसिस्को आदि हैं.

इसके अलावा स्पेन के बास्क इलाके में आने वाले उर्दइबे, इबिज़ा, हांगकांग और दक्षिणी ब्राज़ील के फ्लोरियानापोलिस में भी यह कार बेचे जाने की योजना है. हिरिको अपनी 400 माइक्रो ईवी कारों की पहली खेप जल्द ही बार्सिलोना में उतारने जा रही है.

एक बार यह योजना यूरोप और अमरीका में कारगर हो गई, तो दिल्ली और बंगलुरु जैसे भीड़भाड़ वाले शहरों से हिरिको फोल्ड जैसी कारें दूर नहीं रह जाएंगी.

जिस तरीके से हमारे शहरों का वातावरण वाहनों की अधिकता से तबाह हुआ है, उम्मीद की जा रही है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने में बिजली से चलने वाली फोल्डिंग कारें बेहद कारगर साबित होंगी.

 

 

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