मुंबई/नई दिल्ली (रॉयटर्स)। जब मनीत पारिख की मां कोरोना पॉजिटिव पाई गईं तो उन्हें एम्बुलेंस द्वारा मुंबई के लीलावती अस्पताल में ले जाया गया, लेकिन अधिकारियों ने बताया कि परिवार को कोई भी क्रिटिकल केयर बेड उपलब्ध नहीं मिल पाया। पांच घंटे और दर्जनों फोन कॉल के बाद परिवार को निजी बॉम्बे अस्पताल में उनके लिए बिस्तर मिला। एक दिन बाद, 18 मई को, पारिख के 92 वर्षीय मधुमेह से पीड़ित दादा को घर पर सांस लेने में कठिनाई हो रही थी, जिसके बाद उन्हें शहर के ब्रीच कैंडी अस्पताल में ले जाया गया लेकिन वहां बिस्तर नहीं थे। पारिख ने रॉयटर्स को बताया, 'मेरे पिताजी उनसे विनती कर रहे थे। उन्होंने कहा कि उनके पास बिस्तर नहीं है, सामान्य बिस्तर भी नहीं है।'
बेड की कमी के कारण हुई मौत
उस दिन बाद में, उन्हें बॉम्बे अस्पताल में एक बिस्तर मिला लेकिन उनके दादा की घंटे बाद मृत्यु हो गई। उनके परीक्षण के परिणामों से पता चला कि वह वायरस से संक्रमित थे। पारिख ने कहा कि उनका मानना है कि देरी के कारण उनके दादा की मौत हुई। लीलावती और बॉम्बे अस्पताल के अधिकारियों ने रॉयटर्स के साथ बात करने से इनकार कर दिया। ब्रीच कैंडी अस्पताल के प्रतिनिधियों ने टिप्पणी के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया। बता दें कि भारत में तेजी से बढ़ते निजी अस्पतालों ने वैसे तो काफी हद तक बेड की समस्या को खत्म कर दी है लेकिन पारिख के मामले को देखकर यह लगता है कि कोरोना वायरस की वजह से प्राइवेट अस्पताल भी बढ़ते मरीजों के चलते बेड की तंगी का सामना कर रहे हैं। बता दें कि भारत में 131,000 से अधिक संक्रमण की सूचना है, जिसमें 3,867 मौतें शामिल हैं।
सभी मरीजों को अस्पताल में भर्ती होने की नहीं है जरुरत
वहीं, भारत सरकार ने मीडिया ब्रीफिंग में कहा है कि सभी रोगियों को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं है और यह अस्पताल के बेड की संख्या बढ़ाने और स्वास्थ्य गियर की खरीद के लिए तेजी से प्रयास कर रहा है। पिछले वर्ष के संघीय सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में लगभग 714,000 अस्पताल के बिस्तर थे, जो 2009 में लगभग 540,000 थे। इस हिसाब से इस वक्त भारत में प्रति 1,000 लोगों पर 0.5 बेड हैं।
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