27 साल की सेवा के बाद इस विमान को पहले एयर फ्रांस और फिर ब्रिटिश एयरवेज़ ने रिटायर कर दिया.
जीवन में कुछ चीज़ों का मतलब विलासिता होता है और कॉनकॉर्ड में उड़ना भी ऐसा ही था.
महंगा, लेकिन शाही सफ़र
कॉनकॉर्ड एक साथ 100 यात्रियों को लेकर उड़ सकता था और अटलांटिक तक के सफ़र के लिए हर यात्री को करीब 4,000 पाउंड (क़रीब चार लाख रुपए) चुकाने पड़ते थे.
कॉनकॉर्ड की शान थी इसकी रफ़्तार, जो राइफ़ल की गोली से भी तेज़ थी.
लेकिन हैरानी की बात है कि इतने ज़्यादा यात्रियों को लेकर उड़ने की क्षमता के बावजूद कॉनकॉर्ड न तो ब्रिटिश एयरवेज़ और न ही एयर फ़्रांस के लिए फ़ायदेमंद रहा.
कॉनकॉर्ड में सफर करना आम विमानों के मुक़ाबले काफ़ी महंगा था.
कॉनकॉर्ड पहला सुपरसोनिक विमान था. मतलब इसकी रफ़्तार आवाज़ की गति से भी तेज़ थी. इसकी चोंच जैसी नाक इसे मैक-2 की रफ़्तार देने में सक्षम थी.
इसका कॉकपिट मूविंग था. विमान के उतरने के दौरान कॉकपिट को आगे की ओर खिसकाया जा सकता था.
इंजनों की गुर्राहट
बीबीसी रेडियो के आर्काइव से 1969 की एक क्लिप मिली, जब कॉनकॉर्ड ने अपनी पहली परीक्षण उड़ान भरी थी. पहली बार लोगों ने इसके इंजनों की गुर्राहट सुनी थी.
कॉनकॉर्ड के फ्लाइट डेवलपमेंट मैनेजर जेम्स एंड्रयू बताते हैं, "कॉनकॉर्ड का नियंत्रण बहुत अच्छा था और इसे बोइंग 747 जैसे विमानों के मुक़ाबले उड़ाना आसान था. यह न सिर्फ़ पायलटों का, बल्कि यात्रियों का भी पसंदीदा विमान था."
एंड्रयू बताते हैं कि विमान में कई पारंपरिक उपकरण लगाए गए थे, लेकिन कुछ चीजें आधुनिक भी थी और कंप्यूटराइज़्ड भी.
पेरिस हादसा
कॉनकॉर्ड के 27 साल के सफ़र में सिर्फ़ एक दुर्घटना हुई. साल 2000 में पेरिस के नजदीक एक कॉनकॉर्ड हादसे का शिकार हो गया था. इसके कुछ साल बाद 2003 में कॉनकॉर्ड रिटायर हो गया.
लेकिन कॉनकॉर्ड की ही धमक थी कि इंजीनियर अब सुपरसोनिक विमान विकसित करने पर काम कर रहे हैं जो यात्रियों को लंदन से न्यूयॉर्क महज एक घंटे में पहुंचा सकेगा.
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