क्लिनिक चलाने वाले मेरे दोस्त हैं. उनका कहना था कि कई देशों से लोग स्किन टाइट कराने, मोटापा कम कराने और चेहरे पर से झुर्रियां हटवाने के इरादे से भारत आते हैं.
मैंने बुर्के में लिपटी अफ़ग़ानिस्तान की एक बेहद सुन्दर महिला के हाथ में कई बॉलीवुड फ़िल्मों के डीवीडी देखे. मैंने उनसे पूछ ही लिया, "क्या आप लोग भारत पहली बार आए हैं?" वो और उनके परिवार के दूसरे लोगों ने अच्छी अंग्रेज़ी में कहा कि भारत उनका दूसरा घर है.
दूसरे सज्जन मोटे से थे और वो इस क्लिनिक में अक्सर उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद से अपने मोटापे का इलाज कराने आते हैं.
दिल्ली से हवाई जहाज़ से केवल तीन घंटे में आप ताशकंद पहुँच सकते है लेकिन हमारी कल्पना में ये अमीरका और यूरोप से भी दूर लगता है.
ताशकंद का नाम हम अक्सर भूतपूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के सन्दर्भ में लेते हैं, जिनकी 1966 में इस शहर में मृत्यु हुई थी.
हिन्दी फ़िल्मों के दीवाने
उज़्बेकिस्तान की फ़िल्मों के पोस्टर. उज़्बेकिस्तान में भारतीय फ़िल्मों भी काफ़ी लोकप्रिय हैं.
लेकिन शायद भारत में लोगों को इस बात का अंदाज़ा अब तक नहीं है कि बॉलीवुड ने वहां किस तरह के गुल खिलाए हैं. मैंने इंटरनेट पर रविवार को ऐतिहासिक उज़्बेक शहर बुखारा में सालाना सांस्कृतिक समारोह की झलकियाँ देखीं.
मैं हैरान इस बात पर था कि जश्न में शामिल दर्जनों लड़कियां भारतीय सलवार कुर्ता पहने थीं. मैंने बुखारा में अपने एक उज़्बेक दोस्त से पूछा इसके पीछे राज़ क्या है? उसने कहा ‘बॉलीवुड का असर’
हमारी ये दोस्त हमारे या किसी दूसरे भारतीय के नाम के आगे ‘जी’ लगाना नहीं भूलतीं. और हमारे कई हिन्दुस्तानी शब्दों के इस्तेमाल पर बोल उठती हैं ये शब्द तो उज़्बेक और ताजिक भाषाओं में भी है.
मेरी दोस्त दिल्ली और आगरा के कई चक्कर लगा चुकी हैं और कहती हैं उन्हें भारतीय संस्कृति बहुत पसंद है. लेकिन वो और उनके देशवासी दीवाने हैं बॉलीवुड फ़िल्मों के.
इसके अलावा उज्बेकिस्तान से भारत के मुग़ल सम्राटों की तारें भी जुड़ती हैं. अगर भारतीय समाज और हिन्दू धर्म का किसी विदेशी ने गहराई से अध्ययन किया था तो वो थे उज्बेकिस्तान के वासी अल-बरूनी जिसने 1075 ईसवी में भारत आकर पहले संस्कृत भाषा सीखी थी और तब दुनिया वालों को भारत के बारे में अपनी एक पुस्तक में जानकारी दी थी.
भारत की अच्छी छवि
उज़्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद का एक फल बाज़ार. भारत की यहाँ पर काफ़ी अच्छी छवि है.
भारत की अच्छी छवि कई ऐसे देशों में ज़बरदस्त बनी हुई है जिनके बारे में भारतीय अधिक ध्यान भी नहीं देते और इसका असर इसकी विदेशी नीतियों में भी होता है.
मैंने पिछले दो सालों में जर्मनी, मिस्र, स्पेन, फ्रांस, मोरक्को और तुर्की का दौरा किया है और मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि भारत एक बड़ा सॉफ्ट पावर यानी सौम्य शक्ति बनने की भरपूर क्षमता रखता है लेकिन इस तरफ़ भारत के विदेश नीति बनाने वालों ने विशेष ध्यान अब तक नहीं दिया है.
मैं जहाँ भी गया वो मुझसे ये नहीं पूछते थे कि तुम भारतीय मुस्लिम हो या हिन्दू. मिस्र हो या मोरक्को इन देशों के लिए हम केवल भारतीय थे और वो सभी बॉलीवुड के बारे में अधिक जानकारी लेने में अधिक दिलचस्पी रखते थे.
क्या आपको मालूम है कि अमरीका का सबसे बड़ा निर्यात क्या है? हथियार? बिल्कुल भी नहीं. ये है अमरीका का शक्तिशाली मनोरंजन उद्योग जो हर साल एक खरब डॉलर से भी अधिक के टीवी सीरियल, हॉलीवुड फ़िल्में इत्यादि निर्यात करता है.
सॉफ्ट पावर
भारत, अमरीका के बाद दुनिया का सबसे बड़ा सॉफ्ट पावर बन सकता है.
यहाँ की फ़िल्में दर्जनों देशों में देखी जाती हैं, यहाँ के टीवी सीरियल को स्थानीय भाषाओं में डबिंग करके दिखाया जाता है. भारत में इलाज कराने कई देशों से मरीज़ आते हैं, यहाँ के सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की दुनिया भर में डिमांड में हैं. यहाँ के लोकतंत्र और बहुलतावादी समाज और संस्कृति के चर्चे हर देश में है.
लेकिन हैरानी की बात ये है कि कांग्रेस सरकार ने इस तरफ़ कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया. अगर भारत की सांस्कृतिक शक्ति का इस्तेमाल किया भी गया तो पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए, अपना असर डालने के लिए नहीं.
उदाहरण के तौर पर भारत कई सालों की माँग के बाद वाशिंगटन और पेरिस में अपने सांस्कृतिक केंद्र खोल रहा है.
अब तक दुनियाभर में भारत के ऐसे 40 सांस्कृतिक केंद्र हैं, इनमें से अधिकतर केंद्र उन देशों में नहीं हैं जहाँ भारत की लोकप्रियता तुलनात्मक रूप से ज़्यादा है. जैसे मोरक्को, अल्जीरिया और मध्य एशिया.
अब नई सरकार आई है. नए प्रधानमंत्री भी हैं. और एक नए दौर की शुरुआत भी हुई है. ये एक मौक़ा है. नयी सरकार के लिए. अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के हित में एक ठोस काम करना चाहें तो भारत को एक विशाल सॉफ्ट पावर बनाने की अनथक कोशिश करनी होगी. समय उनके साथ है.
International News inextlive from World News Desk