तमिल लड़ाकों के खिलाफ 2009 में चले अभियान के दौरान श्रीलंकाई सेना के कथित दुर्व्यवहार को लेकर काफी विवाद हुआ था.
हालांकि घोषणा पत्र में कहा गया है कि राष्ट्रमंडल के नेता लोकतंत्र और मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
इससे पहले गुरुवार को श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने तमिल विद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई में मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर की जा रही आलोचनाओं को खारिज़ कर दिया था.
वक्त की दरकार
इस मौके पर आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने कहा कि उनके देश को गृह युद्ध से उबरने के लिए थोड़ा और समय चाहिए.
उन्होंने कहा कि, "यह ऐसी चीज नहीं है कि आप आज शुरू करें और कल खत्म कर दें. लड़ाई 30 वर्षों से जारी है."
इस सम्मेलन को 'विकास और समता' नाम दिया गया था और इस दौरान 50 राष्ट्रमंडल देशों ने बैठक के दौरान विकासपरक मसलों पर खास तौर से विचार किया.
सभी नेता इस बात पर सहमत थे कि दुनिया को गरीबी के चंगुल से मुक्त करना सबसे बड़ी चुनौती है.
इस सम्मेलन में हिस्सा ले रहे ब्रितानी प्रधानमंत्री डेविड कैमरन मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दे को उठाया, हालांकि श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें और वक्त चाहिए.
नहीं मिली कामयाबी
श्रीलंकाई सरकार इस तीन दिवसीय सम्मेलन को युद्ध के बाद श्रीलंका में हुए बदलाव को दिखाने के मौके के रूप में देख रही थी लेकिन इसमें उसको सफलता मिलती नहीं दिख रही है.
आलोचनाओं से नाराज़ राजपक्षे ने कहा कि केवल 2009 में ही श्रीलंका में हत्याएं नहीं हुईं, बल्कि 30 सालों से ऐसा हो रहा था और इसका शिकार बच्चे सहित गर्भवती महिलाएं भी हो रही थीं.
उन्होंने कहा कि अधिकारों के हनन का दोषी पाए जाने पर किसी के खिलाफ भी सरकार कार्रवाई के लिए तैयार है, लेकिन वह देश को बँटने नहीं देगी.
मई 2009 में श्रीलंका की सेना ने विद्रोही तमिल टाइगर्स को हराकर करीब 30 साल से चल रहे गृह युद्ध को समाप्त किया था. इस लड़ाई के दौरान और बाद में श्रीलंकाई सेना पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगे थे.
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया कि युद्ध के अंतिम चरण में कम से कम 40 हजार आम नागरिक मारे गए. इनमें से अधिकतर श्रीलंकाई सेना की गोलीबारी के शिकार हुए.
सेना पर आरोप
श्रीलंका की सेना पर हिरासत में ली गई महिलाओं के साथ रेप, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गायब करने और पत्रकारों को धमकाने के आरोप लगते रहे हैं. हालांकि सरकार इन आरोपों को खारिज़ करती रही है.
इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए आए 53 देशों के प्रतिनिधिमंडलों का श्रीलंका में जोरदार स्वागत किया गया. इस दौरान सभी नेता इस बात पर भी सहमत हुए कि जलवायु परिवर्तन की समस्या सभी देशों के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. इस बैठक में भारत, मारीशस और कनाडा के राष्ट्रध्यक्ष शामिल नहीं हुए.
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