ये अध्ययन कोलंबिया विश्वविद्यालय के फ्रांत्स मेसेरली ने किया है. चॉकलेट स्वास्थ्य के लिए अच्छा हो सकता है, ये जानने के बाद उन्होंने इसकी अहमियत के बारे में सोचना शुरू किया.

वो बताते है, “ऐसे आंकड़े मौजूद हैं जो बताते हैं कि चॉकलेट खाने से चूहे ज्यादा समय तक जीते हैं और उनके मस्तिष्क की सक्रियता भी बेहतर होती है. घोंघों में भी यही बात देखी जा सकती है.”

इसलिए मेसेरली ने विभिन्न देशों के नोबेल पुरस्कार विजेताओं की संख्या को उनकी सामान्य राष्ट्रीय बुद्धिमत्ता का सूचकांक माना और उसकी तुलना वहां राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली चॉकलेट की खपत से की.

कौन कितने चॉकलेट में

'न्यू इंग्लैंड जरनल ऑफ मेडिसन' में प्रकाशित इस अध्ययन रिपोर्ट में कई दिलचस्प वाली बातें सामने आईं.

मेसेरली बताते हैं, “जब आप इन दोनों यानी प्रति व्यक्ति चॉकलेट की खपत और नोबेल पुरस्कार विजेताओं की तुलना करते हो, तो इनके बीच बेहद करीबी संबंध देखने को मिलता है.”

वो बताते है, “ऐसे आंकड़े मौजूद हैं जो बताते हैं कि चॉकलेट खाने से चूहे ज्यादा समय तक जीते हैं और उनके मस्तिष्क की सक्रियता भी बेहतर होती है. घोंघों में भी यही बात देखी जा सकती है.”

इसलिए मेसेरली ने विभिन्न देशों के नोबेल पुरस्कार विजेताओं की संख्या को उनकी सामान्य राष्ट्रीय बुद्धिमत्ता का सूचकांक माना और उसकी तुलना वहां राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली चॉकलेट की खपत से की.

कौन कितने चॉकलेट में

'न्यू इंग्लैंड जरनल ऑफ मेडिसन' में प्रकाशित इस अध्ययन रिपोर्ट में कई दिलचस्प वाली बातें सामने आईं.

मेसेरली बताते हैं, “जब आप इन दोनों यानी प्रति व्यक्ति चॉकलेट की खपत और नोबेल पुरस्कार विजेताओं की तुलना करते हो, तो इनके बीच बेहद करीबी संबंध देखने को मिलता है.”

उन्होंने कहा कि इसकी दूसरी वजह ये भी है कि स्वीडन के लोग बेहद संवेदनशील होते हैं और उन्हें दिमागी तौर पर सक्रिय करने के लिए जरा सी चीज काफी होती है. मेसेरली के अनुसार वहां इतने ज्यादा नोबेल विजेता होने की ये भी एक वजह हो सकती है.

चॉकलेट के दीवाने

2010 में अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले 'लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स' के क्रिस्टोफर पिसाराइड्स कहते हैं, “बचपन से ही मैं चॉकलेट खाता रहा हूं. मैं चॉकलेट रोजाना खाता हूं. ये वो चीज है जिसे मैं अपने आपको खुश करने के लिए खाता हूं.”

वो आगे कहते हैं, “नोबेल पुरस्कार जीतने के लिए आपको कुछ ऐसा करना होता है जो किसी और ने ना किया हो और चूंकि चॉकलेट आपको खुश करने में मददगार होती है, इसलिए इस पुरस्कार में कुछ योगदान तो इसका भी है. बेशक ये बड़ी वजह नहीं है. लेकिन अगर कोई चीज आपकी जिंदगी और सोचने के तरीके को बेहतर बनाती है, तो उससे आपका काम भी सुधरता है.”

चिकित्सा के क्षेत्र में 1996 में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले रॉल्फ जिंगरनागेल इस बात से सहमत नहीं हैं. वो कहते हैं, “मैं दूसरों से ज्यादा नहीं खाता हूं और मैंने कभी भी एक साल में आधा किलो से ज्यादा चॉकलेट नहीं खाई है.”

अमरीकी वैज्ञानिक रॉबर्ट ग्रब्स ने 2005 में रसायन विज्ञान के क्षेत्र में साझा तौर पर नोबेल पुरस्कार जीता था. उनका कहना है कि जब भी संभव हो, वो चॉकलेट खाते हैं.

उनके अनुसार, “जब मैं छोटा था तो मेरा एक दोस्त था जिसने मुझे चॉकलेट और बीयर की आदत डाली थी. अब मैं चॉकलेट और रेड वाइन लेता हूं.”

ग्रब्स के ही देश के वैज्ञानिक और 2001 में भौतिकी का नोबेल जीतने वाले एरिक कॉरनेल ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, “मेरी कामयाबी चॉकलेट खाने का बड़ा योगदान है. मेरी राय है कि मिल्क चॉकलेट आपको बुद्धू बनाती है जबकि डार्क चॉकलेट आगे ले जाती है.”

भले इस बारे में सबकी राय अलग अलग हो, लेकिन चॉकलेट के शौकीनों के लिए ये अध्ययन एक और बहाना जरूर होगा.

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