नेपाल में भूकंप की त्रासदी को लेकर भारत की मदद न सिर्फ मानवीय आधार पर है, बल्कि इसके गहरे रणनीतिक निहितार्थ हैं. एशिया में चीन से प्रतिस्पद्र्धा के बीच नेपाल भारत के लिए बेहद अहम रणनीतिक साझेदार है. तिब्बत पर चीन के आधिपत्य के बाद से ही नेपाल में पांव पसारने के सपने देख रहा चीन आपदा के दौरान भारत की त्वरित मदद से चकित है. राजनयिक व रणनीतिक मामलों के जानकार भी नेपाल को लेकर भारत के रुख को सही ठहरा रहे है. हालांकि, चीन को भारत की त्वरित सहायता चुभने के आरोपों को भारतीय पक्ष में सिरे से खारिज किया है. विदेश एस. सचिव एस. जयशंकर ने कहा कि इस तरह की कोई भी बात सामने नहीं आई है.
उल्लेखनीय है कि नेपाल के अखबारों में प्रकाशित रिपोर्टों में बताया गया है कि चीन ने नेपाल सरकार से भारत के बचाव और राहत अभियान पर ऐतराज जताते हुए भारत पर आरोप लगाया है कि भारतीय हेलीकॉप्टर मैत्री अभियान के बहाने चीनी सीमा क्षेत्र में ताकझांक कर रहे हैं. उन्होंने यह अभियान बंद कराने की मांग की है.
इस रिपोर्टों के बाद नेपाल के विदेश मंत्री महेंद्र बहादुर पांडेय के राहत कार्य का क्षेत्र भारत और चीन के बीच बांटने के बयान पर चीन ने अपनी सफाई दी है. मंगलवार को चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता होंग ली ने नेपाल में राहत कार्य को लेकर भारत-चीन के बीच स्पद्र्धा से इन्कार किया। ली ने कहा कि नेपाल को संकट से उबारने के लिए चीन भारत के साथ सकारात्मक रूप से काम करना चाहता है.
रक्षा विशेषज्ञ ले. जनरल कादियान कहते हैं, ‘नेपाल में हमारी मौजूदगी बेहद जरूरी है, सरकार को यह पता है. हमें इसके लिए लंबे अभियान के लिए खुद को तैयार रखना होगा.’ नेपाल व हिमालय मामलों के विशेषज्ञ व प्रोफेसर माइकल हट का कहना हैं, ‘तेजी से आर्थिक प्रगति कर रहे भारत, चीन में क्षेत्र में लीडर के तौर पर उभरने को लेकर होड़ है. दोनों के बीच में स्थिति नेपाल पर आई आपदा में भारत की त्वरित सहायता महत्वपूर्ण संकेत है.
लंबे समय से नेपाल से संबध बनाने की में है चीन
चीन की नजर नेपाल पर भी है। जहां वह ढांचागत सुविधाओं पर जबर्दस्त निवेश कर रहा है. चीन तिब्बत स्थिति ल्हासा को सडक़ मार्ग से नेपाल को जोड़ रहा है, वही नेपाल से रेल का रिश्ता भी जोडऩे के प्रयास में जुटा है. जबकि, पिछले साल नेपाल में चीन सबसे कड़े निवेशक के रूप में उभरा है. ऐसे में भारत के लिए नेपाल का महत्व और बढ़ जाता है. गौरतलब है कि नेपाल की सीमा चीन की दुखती रग तिब्बत से सटी है. तिब्बत में 2008 में चीन विरोधी आंदोलनों में सक्रिय लोगों में करीब 20000 लोग नेपाल में रहते हैं.
दरअसल नेपाल में चीन राजशाही के दिनों से ही प्रभाव जमाने की कोशिश में लगा था. तत्कालीन नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र ने ढाका में हुए सार्क देशों के तेरहवें सम्मेलन में खुले तौर पर चीन का पक्ष लिया था. हालांकि, 2008 में नेपाल के गणतंत्र घोषित होने और राजशाही के पतन के साथ ही नेपाल में चीन का दखल कमजोर हुआ.Hindi News from World News Desk
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