1980 में सबसे पहले चीन के चार प्रमुख नेताओं के ख़िलाफ़ मुक़दमा चला था. लेकिन उसके बाद कई बड़े-बड़े नेताओं को अदालत का मुंह देखना पड़ा है.
1980 में जिन पर मुक़दमा चला था उनमें माओत्से तुंग की पत्नी जियांग किंग भी शामिल थीं. उन लोगों को चीन की सांस्कृतिक क्रांति के कारण मारे गए लोगों और उनमें निराशा छाने के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया था.
गैंग ऑफ़ फ़ोर के नाम से चले इस मुक़दमे पर पूरे चीन की नज़र थी.
उनके मुक़दमे की सुनवाई के दौरान आठ सौ लोग और तीन सौ पत्रकार मौजूद थे. इसका टेलीविज़न पर प्रसारण भी किया गया था.
इतिहासकार ज़ैग लिफ़न के अनुसार उस समय ज़्यादा लोगों के पास टेलीविज़न नहीं था इसलिए वे दोस्तों और पड़ोसियों के घर जमाकर उस मुक़दमे की कार्रवाई को देखते थे.
लेकिन इसके बाद चीन में भ्रष्ट और ग़ैर-ज़िम्मेदार अधिकारियों से निपटने के तरीक़े में काफ़ी बदलाव हो गया.
'जो जीता वो राजा, जो हारा वो डाकू'
अब जो नेता पार्टी की अंदुरूनी लड़ाई में हार जाता है उसके ख़िलाफ़ सार्वजनिक तौर पर राजनीतिक मुक़दमा नहीं चलाया जाता बल्कि उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा दिया जाता है.
चीन में एक पुरानी कहावत है, ''जो जीता वो राजा, जो हारा वो डाकू.''
नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापूर में चीनी राजनीति पढ़ाने वाले डॉक्टर बो ज़ियु के अनुसार ये बिल्कुल नया तरीक़ा है. वे कहते हैं, ''1990 के बाद से चीनी नेता अपनी राजनीतिक लड़ाई में क़ानून की मदद लेते हैं. इसलिए जो कोई भी राजनीतिक विरोधी होता है उसे भ्रष्ट अधिकारी क़रार दिया जाता है.''
शिटोंग ने राष्ट्रपति जियांग ज़ेमिन को चुनौती दी थी.
इस नए तरीक़े का इस्तेमाल 1998 में देखा गया जब बीजिंग के पूर्व पार्टी प्रमुख और पोलितब्यूरो नेता चेन शिटोंग को गिरफ़्तार कर लिया गया था.
बहुत तेज़ी से चलाए गए मुक़दमे में चेन शिटोंग को ग़बन का दोषी क़रार दिया गया.
'भ्रष्टाचार या सियासी लड़ाई'
2006 में रिहाई के बाद चेन ने कहा कि उन्हें इसलिए जेल जाना पड़ा क्योंकि वे तत्कालीन चीनी राष्ट्रपति जियांग ज़ेमिन से राजनीतिक लड़ाई हार गए थे.
साल 2008 में शंघाई के पार्टी प्रमुख चेन लिआंगयु के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार का मुक़दमा भी कुछ इसी तरह का था.
चेन लिआंगयु को अपने पद के दुरूपयोग और रिश्वत लेने का दोषी क़रार दिया गया और वो आज भी जेल में अपनी सज़ा भुगत रहे हैं.
बो शिलाई ने भी बीजिंग में बैठे लोगों को चुनौती दी थी.
चीन की राजनीति पर गहरी नज़र रखने वालों का मानना है कि चेन लिआंगयु का असल क़सूर ये था कि वे हू जिंताओ के विरोधी थे.
नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापूर के बो ज़ियु के अनुसार बो शिलाई ने भी चीन के पश्चिमी प्रांत चोंगकिंग में अपनी एक अलग पहचान बना ली थी और बीजिंग में बैठे बड़े नेताओं की सत्ता को चुनौती देने लगे थे.
इसका नतीजा ये हुआ कि शिलाई के तमाम दुश्मन लामबंद हो गए. साल 2012 में उनके पतन के फ़ौरन बाद ही उनकी पत्नी को एक ब्रितानी व्यवसायी नील हेवुड की हत्या का दोषी पाया गया.
चीन की आम जनता आज शायद बो शिलाई के मुक़दमे में उतनी रूचि न दिखाए जितना की 1980 में चार लोगों के ख़िलाफ़ चले मुक़दमे में लोगों की रूचि थी लेकिन बावजूद इसके लाखों लोग अभी भी इस सप्ताह शुरू होने वाले मुक़दमे पर नज़र रखेंगे.
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