इस नई तकनीक को क्वांटम क्रिप्टोग्राफ़ी कहा जा रहा है और पारंपरिक क्रिप्टोग्राफी के तरीकों से इसे बिल्कुल अलग माना जा रहा है। चीन की सरकारी मीडिया के अनुसार जिनान प्रांत में इस पर किए जा रहे काम को 'मील का पत्थर' कहा गया है।
लेकिन ये प्रोजेक्ट एक बड़ी कहानी का हिस्सा है- चीन उस तकनीक में आगे बढ़ना चाहता है जिसमें पश्चिमी देश हमेशा से निवेश करने में डरते रहे हैं।
जिनान में बनाए जा रहे इस नेटवर्क में सेना, सरकार, वित्तीय संस्थान और बिजली विभाग से जुड़े करीब 200 कर्मचारी अपने संदेश सुरक्षित तरीके से भेज सकेंगे, इस जानकारी के साथ कि केवल वो ही इन संदेशों को पढ़ पा रहे हैं।
क्वांटम कम्युनिकेशन में चीन के आगे बढ़ने का मतलब है कि वो ऐसे सॉफ़्टवेयर बनाएगा जो इंटरनेट में मौजूद खामियों को दूर कर उसे मज़बूत बनाएंगे। और भविष्य में अन्य देश भी चीन से इस तरह के सॉफ़्टवेयर खरीद सकते हैं।
आख़िर ये तकनीक है जिसमें काफी निवेश चाहिए?
अगर आप इंटरनेट पर सुरक्षित तरीके से संदेश भेजना चाहते हैं तो पारंपरिक एन्क्रिप्शन संदेश पढ़ने के लिए ज़रूरी की (चाबी) को गणित के कठिन आंकड़े के रूप में छिपा देता है।
लेकिन गणित की बात करें तो 'कठिन' की परिभाषा क्या है? इसका मतलब है कि आपको तेज़ी से नंबरों के बड़े संयोजन के बारे में सोचना पड़ेगा। साल 2017 की बात करें तो इसका मतलब है एक फ़ास्ट और बेहतर कंप्यूटर।
जैसे-जैसे कंप्यूटर बेहतर बनते जा रहे हैं नंबरों पर आधारित एन्क्रिप्शन में ये संयोजन भी अब और बड़े होते जा रहे हैं। एन्क्रिप्शन की भी एक सीमा है और धीरे-धीरे ये तरीका भी कमज़ोर होता जा रहा है।
माना जा रहा है कि क्वांटम कंप्यूटर्स के बनने के साथ नंबरों को छोटा करने की तकनीक में बड़ा बदलाव आएगा और इससे आधुनिक एन्क्रिप्शन सॉफ़्टवेयर को और भी मज़बूत किया जा सकेगा।
क्वांटम कम्युनिकेशन अलग तरीके से काम करता है-
अगर आपको एक बेहद सुरक्षित संदेश भेजना है तो आप अलग से इसे खोलने की चाबी भेजेंगे, वो भी लाइट पार्टिकल के रूप में।
इसके बाद ही आप असल संदेश को एन्क्रिप्ट कर उसे भेज सकते हैं। संदेश पाने वाले को पहले से मिली चाबी के ज़रिए आपके संदेश को खोल कर पढ़ना होगा।
क्वांटम 'की' की सबसे बढ़िया बात ये है कि अगर कोई लाइट पार्टिकल्स को पढ़ने की कोशिश करता है तो वो उसके स्परूप को बदले बिना संभव नहीं होगा, यानी हो सकता है कि चाबी बदल जाए या फिर नष्ट ही हो जाए।
इसका मतलब है कि संदेश भेजने वाले और पाने वाले दोनों को ही किसी भी तरह की हैकिंग की कोशिश का तुरंत ही पता लग जाएगा। और इस तरह ये लगभग 'अनहैकेबल' कहा जा सकता है।
पश्चिमी देश इसमें पीछे हैं
सवाल यह उठता है कि अगर क्वांटम कम्युनिकेशन वाकई में इंटरनेट पर भेजे जाने वाले संदेशों को इतना ही सुरक्षित बना देता है तो चीन इसमें सबसे आगे क्यों है?
लंदन के इंपीरियल कॉ़लेज के प्रोफ़ेसर म्यूंगशिक किम कहते हैं, "लंबे समय तक तो लोगों को लगा ही नहीं कि उन्हें इसकी ज़रूरत है।"
वो कहते हैं कि इसके बारे में अधिक जानकारी नहीं थी कि बाज़ार में इस तकनीक की मांग होगी भी या नहीं।
वो कहते हैं, "आज के दौर में संदेशों के एन्क्रिप्ट करने के लिए नंबरों की जो व्यवस्था थी वो इतनी शानदार थी कि किसी ने नई तकनीक के इस्तेमाल के बारे में सोचा ही नहीं।"
इस मामले में शोध पहले से ही मौजूद है और इसमें चीन आगे नहीं है। लेकिन जिस मामले में चीन को बढ़त हासिल है वो है इसका इस्तेमाल।
इस तकनीक पर पहले काम करने वालों में से एक विएना यूनिवर्सिटी में क्वांटम फिज़िसिस्ट प्रोफ़ेसर ऐंटोन ज़ेलिंगर कहते हैं, "यूरोप ने इसके पहले इस्तेमाल का मौक़ा गंवा दिया है।"
वो कहते हैं कि उन्होंने 2014 में यूरोपीय संघ को इस बारे में विश्वास दिलाने की कोशिश की थी ताकि क्वांटम तकनीक पर हो रहे काम के लिए अधिक धम मिल सके लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ।
वो कहते हैं, "अब यूरोप इस मामले में अब पिछड़ गया है और इस कारण हम भी इसमें बराबरी नहीं कर सकते।"
हालांकि अमरीका और यूरोप में क्वांटम की पर आधारित नेटवर्क काम कर रहे हैं, लेकिन इनमें से अधिकतर शोध से जुड़े हैं ना कि व्यावसायिक संस्थाओं से।
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बाजार की ज़रूरत
एक मुश्किल तो ये है कि जिनान नेटवर्क जैसा कार्यक्रम चलाना काफी महंगा काम है। और एगर इसके लिए कोई बाज़ार न ढ़ूंढ़ा गया तो इसके लिए सरकार या निवेशकों से आर्थिक मदद पाना मुश्किल हो सकता है।
सिगापुर के नेशनल यूनिवर्सिटी के सेंटर फ़ॉर क्वांटम टेक्नोल़जी के वैलेरियो स्करानी कहते हैं, "हमें मानना पड़ेगा कि चीन इस काम में निवेश कर रहा है, वो आर्थिक रूप से मज़बूत हैं और उनके पास लोग हैं जो कि शायद
अमरीकी सेना के सिवा और किसी के पास नहीं।"
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चीन ने जो क्वांटम कम्यूनिकेशन सॉफ़्टवेयर बनाए हैं उनमें केवल जिनान नेटवर्क ही नहीं है।
बीते साल चीन से केबल तारों से न नापी जा सकने वाली जगहों के बीच क्वांटम कम्युनिकेश नेटवर्क का परीक्षण करने के लिए एक उपग्रह छोड़ा था। देश के दो मुख्य़ शहरों बीजिंग और शांघाई के बीच एक लिंक भी बनाया गया था ताकि इसका टेस्ट कर हैकिंग का पता लगाया जा सके।
हालांकि क्वांटम कम्युनिकेशन भविष्य में पारंपरिक एन्क्रिप्शन की जगह लेगा या नहीं अभी इस बारे में साफ तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन इसका इस्तेमाल करने वालों को लगता है कि इसकी संभावनाए हैं।
और इसे बनाने और इससे जुड़े सॉफ़्टवेयर को बनाने और उसका परीक्षण करने वालों में चीन सबसे आगे होगा।
प्रोफ़ेसर ज़ेलिंगर कहते हैं, "ये कुछ ऐसा होगा कि जब तकनीक ने अपना बाज़ार खुद ही तलाश लिया हो।"
जब चीनी कंपनियां इस तकनीक को बाज़ार में उतारेंगी तो हो सकता है कि सबसे पहले अंतरराष्ट्रीय बैंक ही इसे खरीदने के लिए पहले आगे आएं।
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