डैम के बारे में कुछ खास जानकारियां
चीन की ओर से मिली जानकारी के अनुसार 1.5 अरब डॉलर की लागत से आठ साल में बनकर तैयार हुआ जांगमू हाइड्रोपावर स्टेशन की पहली जनरेटिंग यूनिट समुद्र की सतह से 3300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. बताया जा रहा है कि इसकी पांच अन्य बिजली उत्पादन इकाइयों के निर्माण का काम अगले साल पूरा हो जाएगा. इन छह यूनिटों के पूरी तरह शुरू होने पर विशाल परियोजना की कुल स्थापित क्षमता 5.10 लाख किलोवॉट होगी. गौरतलब है कि चीन ने यह जल विद्युत परियोजना 2.5 अरब किलोवाट सालाना बिजली पैदा करने के लिहाज से बनाई है. चीन ने इस परियोजना की शुरुआत की घोषणा करते हुए कहा कि इससे जांगमू नदी के जल संसाधन का समुचित इस्तेमाल हो सकेगा और बिजली की किल्लत वाले इस इलाके में अब विकास के नए आयाम स्थापित हो सकेंगे.
भारत और बांग्लादेश को है बहुत बड़ा खतरा
गौरतलब है कि ड्रैगन के इस प्रोजक्ट पर भारत सरकार पहले भी कई बार चिंता जाहिर कर चुकी है. इसके बावजूद चीन ने इसे दरकिनार कर दिया. वहीं पर्यावरणविदों का कहना है कि चीन की इस परियोजना से भारत और बांग्लादेश दोनों ही जगहों पर बाढ़ और भूस्खलन का खतरा अब बढ़ जाएगा. वहीं कहा जा रही है कि ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह के साथ छेड़छाड़ का असर असम और अरुणांचल प्रदेश समेत पूरे उत्तर-पूर्व क्षेत्र में पड़ेगा. इन सब जानकारियों से चीन को वाकिफ कराने के बावजूद उसने भारत की एक भी न सुनते हुए उसकी परवाह नहीं की.
अभी तक चीन की ओर से नहीं मिली कोई सफाई
उधर, कुछ सूत्रों का यह भी कहना है कि भारत सरकार इस प्रोजक्ट पर बराबर अपनी नजर बनाए हुए है. फिलहाल अभी तक चीन की ओर से कोई सफाई प्रस्तुत नहीं की गई है. इससे यह भी साफ होता है कि चीन अपने कार्य से पूरी तरह से संतुष्ट है. वहीं दूसरी ओर कई कूटनीतिक मामलों के जानकार भी चीन के ऐसे इरादों पर लगातार सवाल उठाते रहे हैं. जानकारों का कहना है कि तिब्बत के लोगों को बिजली की इतनी ज्यादा जरूरत नहीं है. फिर चीन को तिब्बत में इतने बड़े पैमाने पर बांध बनाने की जरूरत क्या है.
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