इससे उबरने के लिए वह मनोचिकित्सक के पास जा रहे हैं और दवाएं भी ले रहे हैं.
उस घटना को तीन साल से भी ज़्यादा समय हो गया है, जब उन्हें और उनके 32 साथियों को चिली के अटकामा मरुस्थल की सैन होज़े खदान से सुरक्षित बाहर निकाला गया था.
इस घटना ने उस समय दुनिया भर का ध्यान खींचा था. लेकिन इसकी त्रासदी आज भी एलेक्स के ज़हन में मौजूद है.
उन्होंने बीबीसी को बताया, ''अक्सर मैं यह सोचते हुए जाग जाता हूं कि मैं अंधेरी खदान में हूं. मैं चीखते हुए जागता हूं. इससे परेशान होकर मैंने ख़ुद से कहा, मुझे ही इस समस्या से उबरना होगा. इसलिए मैं अपनी पत्नी के भाई के साथ खदान में एक सप्ताह के लिए गया. अपने डर पर क़ाबू पाने के लिए मैं हर दिन थोड़ा-थोड़ा अंदर गया.''
वेगा कहते हैं, ''अब मुझे डरावने सपने काफ़ी कम आते हैं.''
'हम सब ठीक हैं'
ओमर रेगाडास का कहना है कि बड़ी खनन कंपनियां उन्हें नौकरी पर रखने से डरने लगी हैं.
चिली के 33 खनिकों की कहानी साल 2010 में सुर्खियों में रही थी. उस साल अगस्त में सैन होज़े खदान अचानक धंस गई. उसमें काम करने वाले लोग क़रीब 2300 फ़ुट नीचे फंस गए थे.
उनकी 17 दिन तक कोई ख़बर नहीं थी और अधिकतर लोगों ने उन्हें मरा हुआ मान लिया था. उसके बाद एक बचावकर्मी की खुदाई मशीन भूमिगत सुरंग को पार कर गई. उसके बाद जब वो मशीन बाहर निकाली गई तो उस पर एक संदेश लगा था.
उसमें लिखा था, ''यहां हम सब ठीक हैं, सभी 33 लोग.''
ऊपर से भेजे गए भोजन और पानी पर ये खनिक अगले सात हफ़्ते तक जिंदा रहे. इसके बाद एक-एक को बारी-बारी से बाहर निकाला गया जिसे पूरी दुनिया के टीवी दर्शकों ने देखा.
उस समय उन खनिकों के लिए बहुत बड़े-बड़े वादे किए गए थे लेकिन वास्तविकता इससे कहीं ज़्यादा भयावह है.
इनमें से ज़्यादातर खनिक अब भी मनोचिकित्सकों की देख-रेख में हैं.
अधिकतर नौकरी से बाहर हो चुके हैं और आजीविका के लिए अल्पकालिक नौकरियों पर निर्भर हैं. इन्हें अभी तक खदान मालिकों की तरफ़ से मुआवज़ा नहीं मिला है.
अंधेरे का भय
33 खनिकों के जिंदा होने के बारे में पता चलने के बाद उन्हें निकालने में सात हफ़्ते लग गए थे.
दुर्घटना के समय कार्लोस बैरिओस 27 साल के थे. वह कहते हैं, ''घटना के दो साल बाद तक मैं ठीक था, मुझे कोई दर्द नहीं था. मैं फ़ुटबॉल खेल रहा था. मेरे पास नौकरी थी और उसके बाद अचानक सब ध्वस्त हो गया.''
बैरिओस को बीमारी ने फिर से घेर लिया. वह चिली की सबसे बड़ी तांबे की खदान में काम करने लगे थे. मगर इसके बाद उन्हें एक साल तक 'बीमारी के अवकाश' पर रहना पड़ा और अंततः नौकरी छोड़नी पड़ी.
इस खदान के क़रीबी शहर कोपियापो से उन्होंने बीबीसी को बताया, ''मैं मनोचिकित्सक से मिला लेकिन उसने केवल गोलियां दीं. मैं इनका आदी हो गया और मैं अब भी इन्हें ले रहा हूं.''
बैरिओस ने बताया, ''मैं एक दुःस्वप्न से गुज़र रहा हूं, वह है अंधरे का भय. मेरी एक बच्ची है लेकिन मैं उसके और अपनी पत्नी के साथ एक ही बिस्तर पर नहीं सो सकता क्योंकि नींद में अचानक चिल्लाने और हाथ पैर पटकने लगता हूं.''
इन खनिकों में सबसे उम्रदराज़ 59 साल के ओमर रेगाडास पिछले करीब एक साल से बेरोज़गार हैं, उन्हें कोई स्थायी काम नहीं मिला है.
वो कहते हैं, ''दुर्घटना के कारण हमें लोग जानने लगे. मीडिया और सरकार में लोगों के साथ हमारे संबंध हो गए.''
रेगाडास ने बताया, ''खनन कंपनियों को इस बात का डर है कि अगर हम काम करेंगे तो वहां की अनियमितता की शिकायत ऊपर कर देंगे. इसीलिए कंपनियां हमें काम देने से डरने लगी हैं.''
कोई मुआवज़ा नहीं
शुरू के करीब तीन हफ़्ते तक खनिकों ने खदान के अंदर बने पानी के टैंकों से काम चलाया.
अगस्त 2013 में एक अभियोजक ने यह कहते हुए जांच बंद कर दी कि मालिकों पर अभियोग चलाए जाने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हैं. इस फैसले से सरकार और खनिकों दोनों में ही नाराज़गी देखी गई.
चिली के तत्कालीन खनन मंत्री लारेंस गोलबोर्न ने इसे 'अविश्वसनीय' बताया.
वो बताते हैं कि खदान में वैकल्पिक सुरंग ही नहीं थी, जिसे कानूनी रूप से होना चाहिए था. जिस चिमनी का इस्तेमाल फंसे हुए खनिकों को निकालने के लिए किया जा सकता था उसमें सीढ़ियां ही नहीं थीं.
हालांकि अधिकतर खनिक मुआवज़े की उम्मीद में मालिकों के ख़िलाफ़ नागरिक क़ानूनों के तहत मुक़दमा लड़ रहे हैं. लेकिन उन्हें लगता है कि इसमें सालों का समय लगेगा.
वह बताते हैं कि सभी 33 खनिकों को पेंशन का वादा किया गया था लेकिन अंत में केवल 14 सबसे उम्रदराज़ खनिकों को ही पेंशन नसीब हुई.
वे कहते हैं, ''उन्होंने हमें दांत के इलाज का वादा किया था, जो कई दिनों तक खदान के टैंकों का पानी पीने से सड़ गए थे, लेकिन कुछ नहीं हुआ.''
सरकार का कहना है कि उसकी सीमा है. एक निजी संगठन उनकी मानसिक सेहत की देखभाल कर रहा है और मुआवज़े का मामला अदालत में चल रहा है.
हॉलीवुड भी पहुंचा
फिल्म के कुछ दृश्य कोलंबिया की सॉल्ट माइन में शूट किए गए.
हालांकि इस पर हॉलीवुड में एक फिल्म भी बन रही है. इसी संबंध में फ़िल्म का दल चिली आएगा.
ख़बरों के मुताबिक इसमें एंटोनियो बांडेरास, जूलियट बिनोशे और मार्टिन शीन काम कर रहे हैं.
प्रोडक्शन कंपनी ने इन खनिकों को फ़िल्म की कमाई में हिस्सा देने का वादा किया है लेकिन इससे उनकी शांति तो नहीं वापस मिल सकती.
इस त्रासदी के तीन साल बाद भी चिली के ये 33 खनिक मशहूर हस्ती या करोड़पति नहीं बने जैसा कि कुछ लोगों को लगता था. अधिकांश मामलों में वे अपने उस सदमे से उबरने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
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