चैत्र नवरात्रि को वासंतीय नवरात्रि भी कहा जाता है, जो इस वर्ष 06 अप्रैल को शनिवार के दिन से प्रारंभ हो रहा है। भगवती देवी दुर्गा का आगमन इस बार अश्व पर हो रहा है, जिसका परिणाम यह होगा कि नेताओं और शासकों को कष्ट हो, अनेक नेता सत्ता से बेदखल हो सकते हैं। भगवती देवी दुर्गा का गमन हाथी पर हो रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप अत्यधिक वर्षा होने की संभावना है।
ज्योतिषाचार्य पं. राजीव शर्मा बता रहे हैं कि नवरात्रि में देवी दुर्गा की अराधना के लिए कलश स्थापना और दीपक-स्थापन कैसे किया जाता है। व्रत की विधि और कुमारी पूजन कैसे करना चाहिए।
कलश स्थापना के लिए पूजन सामग्रीः-
चावल, सुपारी, रोली, मौली, जौ, सुगन्धित पुष्प, केसर, सिन्दूर, लौंग, इलायची, पान, सिंगार सामग्री, दूध, दही, गंगाजल, शहद, शक्कर, शुद्ध घी, वस्त्र, आभूषण, बिल्ब पत्र, यज्ञोपवीत, मिट्टी का कलश, मिट्टी का पात्र, दूर्वा, इत्र, चन्दन, चौकी, लाल वस्त्र, धूप, दीप, फूल, नैवेद्य, अबीर, गुलाल, स्वच्छ मिट्टी, थाली, कटोरी, जल, ताम्र कलश, रूई, नारियल आदि।
कलश पूजन विधि
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से इसका पूजन आरम्भ होता है। सम्मुखी प्रतिपदा शुभ होती है। अतः वही ग्राह्म है। अमायुक्त प्रतिपदा में पूजन नहीं करना चाहिए। नवरात्र व्रत स्त्री-पुरूष दोनों कर सकते हैं। यदि स्वयं न कर सकें तो पति-पत्नी, पुत्र या ब्राह्मण को प्रतिनिध बनाकर व्रत पूर्ण कराया जा सकता है। व्रत में उपवास अयाचित (बिना मांगे प्राप्त भोजन), नक्त या एक भुक्त भोजन करना चाहिए।
उपरोक्त सामग्री एकत्रित कर प्रथम मां दुर्गा का चित्र स्थापित करें एवं पूर्वमुखी होकर मां दुर्गा की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं। फिर मां दुर्गा के बाईं ओर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर चावल के नौ कोष्ठक, नवग्रह एवं लाल वस्त्र पर गेहूं के सोलह कोष्ठक षौडशामृत के बनाएं। एक मिट्टी के कलश पर स्वास्तिक बनाकर उसके गले में मौली बांध कर उसके नीचे गेहूँ अथवा चावल डाल कर रखें। उसके बाद उस पर नारियल भी रखें, नारियल पर मौली भी बांधे, उसके बाद तेल का दीपक एवं शुद्ध घी का दीपक प्रज्जवलित करें एवं मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर हल्का सा गीला करके उसमें जौ के दाने डालें, उसे चौकी के बाईं तरफ कलश के पास स्थापित करें।
संकल्प विधि
अब सर्वप्रथम अपने बाएं हाथ में जल लेकर दाएं हाथ से स्वयं को पवित्र करें और बार-बार प्रणाम करें। उसके बाद दीपक जलाएं एवं दुर्गा पूजन का संकल्प लेकर पूजा आरम्भ करें।
दीपक-स्थापन
पूजा के समय व्रत का दीपक भी जलाना चाहिए तथा उसकी गन्ध, अक्षत, पुष्प आदि से पूजा करें। दीपक स्थापन का मंत्र भी पढ़ना चाहिए।
कुमारी-पूजन
कुमारी-पूजन नवरात्र व्रत का अनिवार्य अंग है, कुमारीकाएं जगतजननी जगदम्बा का प्रत्यक्ष विग्रह हैं। इसमें ब्राह्मण कन्या को प्रशस्त माना जाता है। आसन बिछाकर गणेश, बटुक, कुमारियों को एक पंक्ति में बिठा कर पहले “ऊँ गं गणपतए नमः” से गणेश जी का पंचोपचार पूजन करें, फिर “ऊँ वं वटुकाय नमः” तथा “ऊँ कुमायै नमः” से कुमारियों का पंचोपचार पूजन करें।
इसके बाद हाथ में पुष्प लेकर मंत्र से कुमारियों की प्रार्थना करें। इसके बाद अष्टमी या नवमी के दिन कढ़ाई में हलवा बनाकर उसे देवी जी की प्रतिमा के सम्मुख रखें तथा “ऊँ अन्नपूर्णाय नमः” इस मंत्र से कढ़ाई का पंचोपचार-पूजन करें। तदोपरान्त हलवा निकालकर देवी मां को नैवेद्य लगाएं। इसके बाद कुमारी बालिकाओं को भोजन कराकर उन्हें यथा शक्ति वस्त्रा—भूषण दक्षिणादि देने का विधान है।
विसर्जन
नवरात्रि व्यतीत होने पर दसवें दिन विसर्जन करना चाहिए, विसर्जन से पूर्व भगवती दुर्गा का गन्ध, अक्षत, पुष्प आदि से उत्तर-पूजन कर निम्न प्रार्थना करनी चाहिए।
रूपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवति देहि मे।
पुत्रान्देहि धनंदेहि सर्वान् कामांश्रच्देहि मे।।
महिषघ्रि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनि।
आयुरारोग्यमैश्रच्र्यं देहि देवि नमोऽस्तु ते।।
इस प्रकार प्रार्थना करने के बाद हाथ में अक्षत एवं पुष्प लेकर भगवति का निम्न मंत्र से विसर्जन करना चाहिए। गच्छ-गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्रच्रि। पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च।। “इति”।
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