इसके अलावा सारिस्का और पन्ना जैसे वन्य अभायरण्य पर बाघों को फिर से बसाया गया है.
बाघों की नई आबादी पैदा हुई है इसलिए इसमें जीरो से पच्चीस फ़ीसदी तक बढ़ोत्तरी हुई है.
मेरी नज़र में स्वंयसेवी संगठनों ने बहुत बढ़िया काम किया है इस मामले में.
ख़ासकर उन्होंने दक्षिण भारत में बहुत बढ़िया काम किया है.
ख़राब प्रबंधन
बाघों की संख्या बढ़ने के बावजूद मैं यह नहीं मानता कि अचानक से फॉरेस्ट सर्विस बहुत बढ़िया काम करने लगी है.
फॉरेस्ट सर्विस अभी और भी बहुत से बदलाव आने ज़रूरी है तब जाकर यह बदलाव संस्थागत होगा.
बाघों की आबादी जितनी तेज़ी से 20-30 फ़ीसदी ऊपर जा सकती है उतनी ही तेज़ी से अचानक नीचे आ सकती है.
2005 में जब बाघों की संख्या कम हो रही थी तो उसका कारण था ख़राब प्रबंधन और शिकार.
वन विभाग की लापरवाही इसकी एक बड़ी वजह रही है. पन्ना और सारिस्का इसके उदाहरण हैं जहां शिकारियों को शिकार करने का मौका मिला.
वन विभाग के अंदर और स्वंयसेवी संगठनों की ओर से जो आंदोलन हुए उससे साथ मिलकर काम करने को बढ़ावा मिला है और शिकार में कमी आई है.
आगे के पांच सालों में बाघ की संख्या में बढ़ोत्तरी के लिए स्वंयसेवी संगठनों और वन्य जीव वैज्ञानिकों के साथ वन विभाग के संबंध को और बढ़ाना पड़ेगा.
इसमें नई पार्टनरशिप लानी होगी. निर्णय लेने में हिस्सेदारी होनी चाहिए. जैसे पासपोर्ट बनाने में टाटा कंसेलटेंसी को लाया गया है वैसे ही फॉरेस्ट सर्विस में प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप(पीपीपी) लानी होगी.
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