पुरस्कार की घोषणा करते वक्त नोबल अकादमी के स्थायी सचिव पीटर इंग्लंड उन्हें 'समकालीन लघु कहानी की मास्टर' करार दिया.
साहित्य के नोबेल पुरस्कार की शुरुआत 1901 से हुई थी. 'डियर लाइफ़' और 'डांस ऑफ़ द हैप्पी शेड्स' जैसी किताबें लिखने वाली 82 वर्षीय एलिस मुनरो इस पुरस्कार को जीतने वाली तेरहवीं महिला हैं.
नोबेल पुरस्कार जीतने की जानकारी मिलने के बाद मुनरो ने कनाडाई मीडिया से कहा, 'मैं जानती थी कि मैं दौड़ में हूँ लेकिन मुझे यह कभी नहीं लगा कि मैं यह पुरस्कार जीत लूंगी.'
नोबेल फाउंडेशन द्वारा प्रदान किए जाने वाला यह पुरस्कार जीवित लेखक को ही दिया जाता है और इसके साथ 80 लाख क्रोनर की धनराशि दी जाती है.
इससे पहले रुडयार्ड किपलिंग, टोनी मॉरिसन और एर्नेस्ट हैमिंग्वे जैसे महान लेखक ये पुरस्कार जीत चुके हैं.
संस्था के स्थायी सचिव पीटर इंग्लंड ने समाचार एजेंसी एपी को बताया कि घोषणा से पहले वे मुनरो को पुरस्कार के बारे में जानकारी नहीं दे पाए थे इसलिए उन्होंने उनकी आंसरिंग मशीन पर संदेश छोड़ दिया था.
किशोरावस्था से लेखन शुरु करने वाली मुनरो ने अपनी पहली कहानी 'द डाइमेंशंस ऑफ ए शेडो' साल 1950 में प्रकाशित की थी.'
वे उस वक्त यूनिवर्सिटी ऑफ़ ओंटारियो में इंगलिश की पढ़ाई कर रही थीं.
1968 में प्रकाशित उनके पहले कहानी संकलन 'डांस ऑफ़ द हैप्पी शेड्स' को कनाडा का सर्वोच्च साहित्य सम्मान पुरस्कार 'द गवर्नर जनरल अवॉर्ड' प्राप्त हुआ था.
साल 2009 में उनके काम के लिए उन्हें मैन बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
बुक लांज को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था, 'मुझे लगता है कि मैं लेखन में इसलिए कामयाब रही क्योंकि मेरे पास और कोई प्रतिभा नहीं थी. मैं कोई बुद्धिजीवी नहीं हूँ. मैं एक अच्छी पत्नी थी लेकिन इतनी भी महान नहीं थी. लेखन से अलग कभी किसी चीज़ में मेरी दिलचस्पी नहीं रही इसलिए कभी कोई चीज़ रास्ते में भी नहीं आई.'
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