प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले 25 साल में बनी ऐसी पहली सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं, जो गंठबंधन की राजनीति का गुलाम नहीं है.
उन्हें इस बहुमत का प्रयोग अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और उसे कैसे बढ़ाया जाए में करना चाहिए. उन्होंने अपने चुनाव प्रचार के दौरान ग़रीबी हटाने और समृद्धि लाने का वादा किया था.
सरकार को जो पहली चीज करनी चाहिए, वह यह कि उसे अर्थव्यस्था की रफ़्तार को घटाकर आधी करने वाली बाधाओं को दूर करना चाहिए.
पर्यावरण मंत्रालय
इसके लिए एक व्यावहारिक पर्यावरण मंत्री को नियुक्त करने की जरूरत होगी. वर्तमान मंत्री प्रकाश जावडेकर में इसकी पूरी योग्यता है. लेकिन उनके पास इसका अस्थायी प्रभार ही है. वो विकास की जरूरत के खिलाफ पर्यावरण संरक्षण का विवेकपूर्ण ढंग से इस्तेमाल करेंगे.
"मोदी को उन मुख्यमंत्रियों के साथ भागीदारी कायम करनी चाहिए, जो कि अपने राज्य को तेज़ी से आगे बढना देखना चाहते हैं"
-अरविंद पगरिया, अर्थशास्त्री
इसके अलावा यह भी ज़रूरी है कि नौकरशाही को निडर होकर वैध फ़ैसलों को लेकर आगे बढ़ने के लिए आश्वस्त करने की ज़रूरत है.
ईमानदार अधिकारियों की रक्षा और बेईमान अधिकारियों को सज़ा देने में संतुलन बनाए रखने के लिए अगर जरूरी हो तो नियम-क़ानूनों में बदलाव भी किया जाए. इसके साथ ही अड़ियल नौकरशाहों को चेतावनी दी जाए कि अड़गे लगाने वालों पर कार्रवाई होगी.
इसके साथ ही मोदी को उन मुख्यमंत्रियों के साथ भागीदारी कायम करनी चाहिए, जो कि अपने राज्य को तेज़ी से आगे बढ़ता देखना चाहते हैं.
उन्हें इस तरह के राज्यों के साथ सहयोग के लिए एकल खिड़की व्यवस्था का निर्माण करना चाहिए, जिससे कि प्रमुख परियोजनाओं को केंद्र और राज्य सरकारों की मंजूरी समानांतर रूप से मिल सके.
विकास में रुचि रखने वाले मुख्यमंत्रियों को सम्मानित करना चाहिए, न की उन्हें समानता के नाम पर दंडित किया जाए.
ऊर्जा क्षेत्र का विकास
सरकार को कोयले और गैस की आपूर्ति में आने वाली बाधाओं को भी तुरंत दूर करना चाहिए, जिससे बिजली संयंत्र अपनी पूरी क्षमता से चल सकें.
इसके लिए कोयला खनन के क्षेत्र में नई तकनीक के साथ निजी खिलाड़ियों को लाने की ज़रूरत होगी और उन्हें झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्य में दूरदराज की खदानों को मौज़ूदा सड़क परिवहन व्यवस्था से जोड़ने और 300 किमी रेलवे लाइन बिछाने की ज़रूरत होगी. इसके अलावा गैस की क़ीमतों को लेकर जारी गतिरोध को भी तुरंत दूर करने की जरूरत होगी.
साल 2014-2015 का बजट जुलाई के शुरूआत में संसद में पेश किया जाना प्रस्तावित है. देश की अर्थव्यवस्था की नई दिशा तय करने की जानकारी देने के लिए सरकार के पास यह एक महत्वपूर्ण अवसर है.
मोदी सरकार का पहला बजट वस्तु और सेवाकर में दो साल में समानता लाने वाला होना चाहिए. यह एक साल के भीतरकर प्रावधानों का सरलीकरण और संहिताबद्ध बनाने वाला होना चाहिए.
वर्तमान कर क़ानूनों को ठीक से परिभाषित नहीं किया गया है और कर अधिकारियों बेतहाशा अधिकार दिए गए हैं. इससे कर अधिकारी अप्रत्याशित मांग करते रहते हैं. इससे विवाद होता है. इसके अलावा पिछले दिनों के सौदों पर कर लगाने की व्यवस्था भी इस बजट में ख़त्म होनी चाहिए, जो कि 2012 में लागू की गई थी. इसमें भारतीय कंपनियों में होने वाले विदेश निवेश पर कर लेने का प्रावधान है. इसके लिए उपयुक्त क़ानून बनाने की ज़रूरत है.
सरकार के लिए यह ज़रूरी है कि वह बुनियादी संरचना निर्माण में तेज़ी लाने के साथ आगे बढ़े.
क़ानूनों में बदलाव
पहली और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वर्तमान कठोर भूमि अधिग्रहण क़ानूनों में बदलाव किया जाए.
बजट में स्वास्थ्य और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बहाल करने की प्रक्रिया भी ज़रूर शुरू होनी चाहिए.
सरकार को इस अवसर का उपयोग पुनर्पूंजीकरण पर विशेष रूप से निर्भर होने की जगह क्षमता बढ़ाने में करना चाहिए. यह वर्तमान के 51 फ़ीसद की इक्वटी से कम होना चाहिए और बैंकों को बाज़ार से पूंजी जुटाने की अनुमति मिलनी चाहिए.
इसके अलावा कुछ कमज़ोर बैंकों का भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) जैसे अन्य मज़बूत बैंकों में विलय भी होना चाहिए.
यह बैंकिंग में एकीकरण और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देगा. अभी देश का बैंकिंग सेक्टर कई छोटे-छोटे बैंकों और विशालकाय एसबीआई में बंटा हुआ है.
इसके अलावा बज़ट में सरकार को राज्यों को और अधिक वित्तीय और वैधानिक स्थान देना चाहिए.
बाद में संविधान की समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर केंद्रीय कानून में संशोधन करने के लिए राज्यों को राष्ट्रपति की समयबद्ध संस्तुति की ज़रूरत होगी.
श्रम क़ानूनों में सुधार
सरकार के पास कम दक्षता वाले और श्रम प्रधान की ज़रूरत वाले क्षेत्रों जैसे कपड़े बनाने, जूता-चपप्ल और इलेक्ट्रानिक सामान को जोड़ने के काम को निवेश के अनुकूल बनाने और सुधार लागू करने के अलावा कोई और चारा नहीं है.
देश में 45 करोड़ से अधिक काम करने वाले और इनमें से अधिकांश अकुशल हैं, इन्हें मज़बूत और दक्ष बनाए बिना विकास आंशिक रहेगा.
कपड़ा निर्यात में भारत का प्रदर्शन काफ़ी ख़राब है. यह चीन के कुल निर्यात के दस फ़ीसद से भी कम है, यहाँ तक की यह बांग्लादेश से भी कम है.
चीन इन उद्योगो से बाहर आ रहा है और अब ये उद्योग वियतनाम, कंबोडिया, बांग्लादेश और इंडोनेशिया जैसे देशों की ओर जा रहे हैं. लेकिन भारत में नहीं आ रहे हैं.
भारत के पास कम विकल्प हैं, लेकिन श्रम क़ानूनों में सुधार को रोजगार प्रधान निर्माण के विकास के बुनियादी बाधा के रूप में पहचान की गई है.
अपेक्षाकृत बड़े असंगठित क्षेत्र की तुलना में संगठित क्षेत्र के कुछ श्रमिकों को उच्च स्तर की सुरक्षा दी गई है, इससे देश को बड़े पैमाने पर नौकरियों को छोड़ना पड़ा है.
इसलिए मोदी सरकार को बड़ी संख्या में अच्छी नौकरियों के सृजन और श्रमिकों की सुरक्षा में संतुलन बनाने के लिए काम करना होगा.
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