वाराणसी: 'ये अंग्रेजों के जमाने का बक्सा है। इसमें हर रोज खजाना भरा जाता है 'यह शोले फिल्म के 'मैं अंग्रेजों के जमाने का जेलर हूं' टाइप डॉयलाग नहीं है। बल्कि ग्रामीण इलाकों के थाने में होने वाली रोजमर्रा की बातचीत का हिस्सा है। दूरदराज वाले इलाकों में डाकघरों में जमा होने वाला लोगों का पैसा, डाक टिकट, मुहरें और अन्य कीमती सामान हर रोज थानों में जमा कराया जाता है। यह प्रक्रिया अंग्रेजी हुकूमत के समय से चल रही है। देश के आजाद होने के बाद भी इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है।
बहुत खास है ये बक्सा
1- खजाना रखने के लिए बने सेफ वाल्ट मोटे लोहे की चादर से बने हैं
2- एक बक्से का वजन लगभग 150 किलो होगा
3- बक्से के ढक्कन का वजन ही अकेले 15 से 20 किलोग्राम तक होता है
4- बक्से जमीन में लगभग दो फुट भीतर तक गाड़े हुए हैं।
5- कुछ थानों में रखे बक्से एक सदी पुराने तक हैं
6- बड़ी कुंड़ी और उसमें बक्से में लगने वाले मोटे ताले जनता का धन सुरक्षित रखते हैं।
7- कोई अनहोनी हुई भी तो थाने के ये बक्से पूरी तरह सुरक्षित हैं
वाराणसी के इन थानों में हैं सेफ वाल्ट - चोलापुर, चौबेपुर, बड़ागांव, रोहनिया, मिर्जामुराद
थाना ही था सबसे सेफ
थानों में सेफ वाल्ट की वजह और इसकी उपयोगिता के बारे में चोलापुर डाकघर के प्रभारी और उप डाकपाल अर्जुन आलोक बताते हैं कि अंग्रेजों के जमाने से यह व्यवस्था लागू है। उस वक्त हर जगह सड़कें थीं न ही संचार केसाधन। ऐसे में डकैत, लुटेरों के गिरोह डाकघरों और सरकारी कार्यालयों को निशाना बनाकर जनता के खून पसीने की कमाई और सरकारी खजाने को लूट लेते थे। चंूकि डाकघरों में 24 घंटे सुरक्षा मुमकिन नहीं थी इसलिए थाने में खजाने को रखने की व्यवस्था बनाई गई।
हर रोज होता है सील
पुलिस रेग्युलेशन के मुताबिक, थाने में जमा कराया जाने वाला डाकघर का माल बाकायदा जीडी में दर्ज किया जाता है। डाकघर के कर्मचारी इसे सुरक्षा गार्ड के सामने सील करते हैं। सुबह सील तोड़कर दो सिपहियों के साथ पूरा माल डाकघरों को पहुंचाया जाता है।
सुरक्षा की नजरिए से यह प्रक्रिया अपनाई जाती है ताकि जनता का पैसा सुरक्षित रहे। यह व्यवस्था अंग्रेजों के समय से स्थापित है। आज भी हर रोज इन बक्सों में डाकखानों का माल जमा किया जाता है। इसका बकायदा रिकार्ड रखा जाता है। - अर्जुन आलोक उप डाकपाल, चोलापुर डाकघर
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